वैतरणी: Difference between revisions
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<p id="2">(2) नरक की नदी । नारकी अग्नि के भय से इस नदी के जल में पहुँचते ही खारी तरंगों के द्वारा और अधिक जलने लगते हैं । इसमें दिक्रियाकृत मकर आदि जल- | <p id="2">(2) नरक की नदी । नारकी अग्नि के भय से इस नदी के जल में पहुँचते ही खारी तरंगों के द्वारा और अधिक जलने लगते हैं । इसमें दिक्रियाकृत मकर आदि जल-जंतु रहते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 74. 182-183, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 26.85, 105, 121-122, 123.14, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 134-136 </span></p> | ||
Revision as of 16:37, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- नरक की एक नदी।
- भरतक्षेत्र आर्य खंड की एक नदी–देखें मनुष्य - 4।
पुराणकोष से
(1) भरतक्षेत्र के आर्यखंड की एक नदी । दिग्विजय के समय भरतेश के सेनापति ने यह नदी ससैन्य पार की थी और यही से वह शुष्क नदी की ओर गया था । महापुराण 29.84
(2) नरक की नदी । नारकी अग्नि के भय से इस नदी के जल में पहुँचते ही खारी तरंगों के द्वारा और अधिक जलने लगते हैं । इसमें दिक्रियाकृत मकर आदि जल-जंतु रहते हैं । महापुराण 74. 182-183, पद्मपुराण 26.85, 105, 121-122, 123.14, वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 134-136