वैष्णव दर्शन: Difference between revisions
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इस दर्शन में भक्ति को बहुत महत्त्व दिया जाता है । इसके चार प्रधान विभाग हैं–श्री | इस दर्शन में भक्ति को बहुत महत्त्व दिया जाता है । इसके चार प्रधान विभाग हैं–श्री संप्रदाय, हंस संप्रदाय, ब्रह्म संप्रदाय, रुद्र संप्रदाय । श्री संप्रदाय विशिष्टाद्वैतवादी हैं जो रामानंदी भी कहलाते हैं । (देखें [[ वेदांत#4 | वेदांत - 4]]) । हंस संप्रदाय द्वैताद्वैत या भेदाभेदवादी हैं । इन्हें हरिव्यासी भी कहते हैं (देखें [[ वेदांत#III | वेदांत - III]], त) । ब्रह्म संप्रदाय द्वैतवादी है इन्हें मध्य या गौड़िया भी कहते हैं । (देखें [[ वेदांत#4 | वेदांत - 4]]) । रुद्र संप्रदाय शुद्धाद्वैत वादी है । इसे विष्णु स्वामी या वल्लभ संप्रदाय भी कहते हैं ।–देखें [[ वेदांत#7 | वेदांत - 7 ]]। <br /> | ||
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<li><strong name="2" id="2"> शक्ति व भक्ति आदि की अपेक्षा भेद व परिचय</strong><strong> </strong><br /> | <li><strong name="2" id="2"> शक्ति व भक्ति आदि की अपेक्षा भेद व परिचय</strong><strong> </strong><br /> | ||
शक्तिसंग | शक्तिसंग तंत्र के अनुसार इसके 10 भेद हैं–वैखानस, श्री राधावल्लभी, गोकुलेश, वृंदावनी, रामानंदी, हरिव्यासी, निंबार्क भागवत, पांचरात्र और वीर वैष्णव । | ||
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<li> वैखानस मुनि के उपदेशानुसार दीक्षित होने वाले ये स्मार्त वैष्णव कहे जाते हैं । </li> | <li> वैखानस मुनि के उपदेशानुसार दीक्षित होने वाले ये स्मार्त वैष्णव कहे जाते हैं । </li> | ||
<li> श्री राधावल्लभी के आदिप्रवर्तक 1503 ई. में हरिवंश गोस्वामी हुए । ये लोग जप, त्याग आदि व्यवहार में संलग्न रहते हैं । </li> | <li> श्री राधावल्लभी के आदिप्रवर्तक 1503 ई. में हरिवंश गोस्वामी हुए । ये लोग जप, त्याग आदि व्यवहार में संलग्न रहते हैं । </li> | ||
<li> गोकुलेश कृष्ण की केलि या रासलीला के उपासक हैं । गौओं से प्रेम करते हैं । अपने शरीर को लताओं, आभूषणों व | <li> गोकुलेश कृष्ण की केलि या रासलीला के उपासक हैं । गौओं से प्रेम करते हैं । अपने शरीर को लताओं, आभूषणों व सुगंधित द्रव्यों से सजाते हैं । शक्ति के उपासक हैं । </li> | ||
<li> | <li> वृंदावनी विष्णु के भक्त हैं । अपने को पूर्णकाम मानते हैं । स्त्रियों के ध्यान में रत रहते हैं । शरीर पर सुगंधित द्रव्यों का प्रयोग करते हैं । सारूप्य मुक्ति को स्वीकार करते हैं । </li> | ||
<li> | <li> रामानंदी शक्ति व शिव के सामरस्य प्रयुक्त आनंद में मग्न रहते हैं । रामानंद स्वामी द्वारा ई. 1300 में इसका जन्म हुआ था ।</li> | ||
<li> हरिव्यासी विष्णु भक्त व | <li> हरिव्यासी विष्णु भक्त व जितेंद्रिय हैं । यम नियम आदि अष्टांग योग का अभ्यास करते हैं । ई.1510 में हरिराम शुक्ल ने इसकी स्थापना की थी ।</li> | ||
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<li> भागवत विष्णु के भक्त और शिव के कट्टर द्वेषी हैं । | <li> भागवत विष्णु के भक्त और शिव के कट्टर द्वेषी हैं । इंद्रिय वंशी हैं ।</li> | ||
<li> पांचरात्र शिव के द्वेषी व | <li> पांचरात्र शिव के द्वेषी व ‘रंडा’ को श्रीकृष्ण के नाम से पूजने वाले हैं । पंचरात्रि व्रत करते हैं । </li> | ||
<li> वीर विष्णु केवल विष्णु के भक्त तथा अन्य सर्व देवताओं के द्वेषी हैं । </li> | <li> वीर विष्णु केवल विष्णु के भक्त तथा अन्य सर्व देवताओं के द्वेषी हैं । </li> | ||
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Revision as of 16:37, 19 August 2020
- दर्शन की अपेक्षा भेद परिचय
इस दर्शन में भक्ति को बहुत महत्त्व दिया जाता है । इसके चार प्रधान विभाग हैं–श्री संप्रदाय, हंस संप्रदाय, ब्रह्म संप्रदाय, रुद्र संप्रदाय । श्री संप्रदाय विशिष्टाद्वैतवादी हैं जो रामानंदी भी कहलाते हैं । (देखें वेदांत - 4) । हंस संप्रदाय द्वैताद्वैत या भेदाभेदवादी हैं । इन्हें हरिव्यासी भी कहते हैं (देखें वेदांत - III, त) । ब्रह्म संप्रदाय द्वैतवादी है इन्हें मध्य या गौड़िया भी कहते हैं । (देखें वेदांत - 4) । रुद्र संप्रदाय शुद्धाद्वैत वादी है । इसे विष्णु स्वामी या वल्लभ संप्रदाय भी कहते हैं ।–देखें वेदांत - 7 ।
- शक्ति व भक्ति आदि की अपेक्षा भेद व परिचय
शक्तिसंग तंत्र के अनुसार इसके 10 भेद हैं–वैखानस, श्री राधावल्लभी, गोकुलेश, वृंदावनी, रामानंदी, हरिव्यासी, निंबार्क भागवत, पांचरात्र और वीर वैष्णव ।- वैखानस मुनि के उपदेशानुसार दीक्षित होने वाले ये स्मार्त वैष्णव कहे जाते हैं ।
- श्री राधावल्लभी के आदिप्रवर्तक 1503 ई. में हरिवंश गोस्वामी हुए । ये लोग जप, त्याग आदि व्यवहार में संलग्न रहते हैं ।
- गोकुलेश कृष्ण की केलि या रासलीला के उपासक हैं । गौओं से प्रेम करते हैं । अपने शरीर को लताओं, आभूषणों व सुगंधित द्रव्यों से सजाते हैं । शक्ति के उपासक हैं ।
- वृंदावनी विष्णु के भक्त हैं । अपने को पूर्णकाम मानते हैं । स्त्रियों के ध्यान में रत रहते हैं । शरीर पर सुगंधित द्रव्यों का प्रयोग करते हैं । सारूप्य मुक्ति को स्वीकार करते हैं ।
- रामानंदी शक्ति व शिव के सामरस्य प्रयुक्त आनंद में मग्न रहते हैं । रामानंद स्वामी द्वारा ई. 1300 में इसका जन्म हुआ था ।
- हरिव्यासी विष्णु भक्त व जितेंद्रिय हैं । यम नियम आदि अष्टांग योग का अभ्यास करते हैं । ई.1510 में हरिराम शुक्ल ने इसकी स्थापना की थी ।
- निंबार्क विष्णु के भक्त हैं । पूजा के बाह्य स्वरूप में नियमपूर्वक लगे रहते हैं । शरीर एवं वस्त्रों को स्वच्छ रखते हैं ।
- भागवत विष्णु के भक्त और शिव के कट्टर द्वेषी हैं । इंद्रिय वंशी हैं ।
- पांचरात्र शिव के द्वेषी व ‘रंडा’ को श्रीकृष्ण के नाम से पूजने वाले हैं । पंचरात्रि व्रत करते हैं ।
- वीर विष्णु केवल विष्णु के भक्त तथा अन्य सर्व देवताओं के द्वेषी हैं ।