सराग संयम: Difference between revisions
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देखें [[ चारित्र#1.14 | चारित्र - 1.14]]। | <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/6/12/331/2 </span><span class="SanskritText">संसारकारणविनिवृत्तिं प्रत्यागूर्णोऽक्षीणाशय: सराग इत्युच्छते। प्राणींद्रियेष्वशुभप्रवृत्तेर्विरति: संयम:। सरागस्य संयम: सरागो वा संयम: सरागसंयम:।</span> = <span class="HindiText">जो संसार के कारणों के त्याग के प्रति उत्सुक है, परंतु जिसके मन से राग के संस्कार नष्ट नहीं हुए हैं, वह सराग कहलाता है। प्राणी और इंद्रियों के विषय में अशुभ प्रवृत्ति के त्याग को संयम कहते हैं। सरागी जीव का संयम सराग है।</span><br /> | ||
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Revision as of 15:41, 20 February 2024
सर्वार्थसिद्धि/6/12/331/2 संसारकारणविनिवृत्तिं प्रत्यागूर्णोऽक्षीणाशय: सराग इत्युच्छते। प्राणींद्रियेष्वशुभप्रवृत्तेर्विरति: संयम:। सरागस्य संयम: सरागो वा संयम: सरागसंयम:। = जो संसार के कारणों के त्याग के प्रति उत्सुक है, परंतु जिसके मन से राग के संस्कार नष्ट नहीं हुए हैं, वह सराग कहलाता है। प्राणी और इंद्रियों के विषय में अशुभ प्रवृत्ति के त्याग को संयम कहते हैं। सरागी जीव का संयम सराग है।
अधिक जानकारी के लिये देखें चारित्र - 1.14।