सर्वतोभद्र: Difference between revisions
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<p id="2">(2) कृष्ण का महल । इसके अठारह | <p id="2">(2) कृष्ण का महल । इसके अठारह खंड थे । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 41.27 </span></p> | ||
<p id="3">(3) द्रौपदी की शय्या । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 54.15 </span></p> | <p id="3">(3) द्रौपदी की शय्या । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 54.15 </span></p> | ||
<p id="4">(4) सुलोचना के स्वयंवर हेतु विचित्रांगद देव द्वारा बनाया गया प्रासाद । <span class="GRef"> पांडवपुराण 3.44 </span></p> | <p id="4">(4) सुलोचना के स्वयंवर हेतु विचित्रांगद देव द्वारा बनाया गया प्रासाद । <span class="GRef"> पांडवपुराण 3.44 </span></p> | ||
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Revision as of 16:38, 19 August 2020
(1) नाभिराय का एक भवन । खंभे स्वर्णमय और दीवालें मणियों से निर्मित थी । यह इक्यासी खंड का था । कोट, वापिका और उद्यानों से अलंकृत था । हरिवंशपुराण 8.3-4
(2) कृष्ण का महल । इसके अठारह खंड थे । हरिवंशपुराण 41.27
(3) द्रौपदी की शय्या । हरिवंशपुराण 54.15
(4) सुलोचना के स्वयंवर हेतु विचित्रांगद देव द्वारा बनाया गया प्रासाद । पांडवपुराण 3.44
(5) एक तप । इसमें पचहत्तर उपवास तथा पच्चीस पारणाएं की जाती है । उपवास और पारणाएँ निम्न प्रस्तार क्रम में होती है—
1 2 3 4 5 15
4 5 1 2 3 15
2 3 4 5 1 15
5 1 2 3 4 15
3 4 5 1 2 15
_________________________________
कुल 15 15 15 15 15 75
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इस प्रस्तार में 1 से 5 तक के अंक पंक्तियों में इस विधि में अंकित है कि उनका हर प्रकार से योग 15 ही आता है । पंक्तियों में अंकित अंक उपवासों के सूचक और स्थान पारणा के प्रतीक है । महापुराण 7.23, हरिवंशपुराण 34. 52-58
(6) चक्रवर्ती भरतेश के क्षितिसार कोट का एक गोपुर । महापुराण 37.146
(7) पूजा का एक भेद । महापुराण 73.58