सूक्ष्म क्रिया अप्रतिपत्ति शुक्लध्यान: Difference between revisions
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<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/9/44/456/8 </span><span class="SanskritText">एवमेकत्ववितर्कशुक्लध्यानवैश्वानरनिर्दग्धवातिकर्मेंधन...स यदांतर्मुहूर्तशेषायुष्क:...तदा सर्वं वाङ्मनसयोगं बादरकाययोगं च परिहाप्य सूक्ष्मकाययोगालंबन: सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति ध्यानमास्कंदितुमर्हतीति।...समीकृतस्थितिशेषकर्मचतुष्टय: पूर्वशरीरप्रमाणो भूत्वा सूक्ष्मकाययोगेन सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति ध्यानं ध्यायति।</span> =<span class="HindiText">इस प्रकार एकत्व वितर्क शुक्लध्यानरूपी अग्नि के द्वारा जिसने चार घातिया कर्म रूपी ईंधन को जला दिया है।...वह जब आयु कर्म में अंतर्मुहूर्त काल शेष रहता है...तब सब प्रकार के वचन योग, मनोयोग, और बादर काययोग को त्यागकर सूक्ष्म काययोग का आलंबन लेकर सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाती ध्यान को स्वीकार करते हैं। परंतु जब उनकी सयोगी जिनकी आयु अंतर्मुहूर्त शेष रहती है।...तब (समुद्घात के द्वारा) चार कर्मों की स्थिति को समान करके अपने पूर्व शरीर प्रमाण होकर सूक्ष्म काययोग के द्वारा '''सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति''' ध्यान को स्वीकार करते हैं <span class="GRef"> (राजवार्तिक/9/44/1/635/1), (धवला 13/5,4,26/83-86/12), (चारित्रसार/207/3)</span></span></p> | |||
<span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ शुक्लध्यान#1.7 | शुक्लध्यान - 1.7]]।</span> | |||
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Revision as of 17:26, 24 February 2024
सर्वार्थसिद्धि/9/44/456/8 एवमेकत्ववितर्कशुक्लध्यानवैश्वानरनिर्दग्धवातिकर्मेंधन...स यदांतर्मुहूर्तशेषायुष्क:...तदा सर्वं वाङ्मनसयोगं बादरकाययोगं च परिहाप्य सूक्ष्मकाययोगालंबन: सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति ध्यानमास्कंदितुमर्हतीति।...समीकृतस्थितिशेषकर्मचतुष्टय: पूर्वशरीरप्रमाणो भूत्वा सूक्ष्मकाययोगेन सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति ध्यानं ध्यायति। =इस प्रकार एकत्व वितर्क शुक्लध्यानरूपी अग्नि के द्वारा जिसने चार घातिया कर्म रूपी ईंधन को जला दिया है।...वह जब आयु कर्म में अंतर्मुहूर्त काल शेष रहता है...तब सब प्रकार के वचन योग, मनोयोग, और बादर काययोग को त्यागकर सूक्ष्म काययोग का आलंबन लेकर सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाती ध्यान को स्वीकार करते हैं। परंतु जब उनकी सयोगी जिनकी आयु अंतर्मुहूर्त शेष रहती है।...तब (समुद्घात के द्वारा) चार कर्मों की स्थिति को समान करके अपने पूर्व शरीर प्रमाण होकर सूक्ष्म काययोग के द्वारा सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति ध्यान को स्वीकार करते हैं (राजवार्तिक/9/44/1/635/1), (धवला 13/5,4,26/83-86/12), (चारित्रसार/207/3)
अधिक जानकारी के लिये देखें शुक्लध्यान - 1.7।