अजीव: Difference between revisions
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<p class="HindiSentence">= इस प्रकार की उक्त लक्षणवाली चेतना जहाँ नहीं है वह अजीव होता है ऐसा जानना चाहिए।</p> | <p class="HindiSentence">= इस प्रकार की उक्त लक्षणवाली चेतना जहाँ नहीं है वह अजीव होता है ऐसा जानना चाहिए।</p> | ||
<OL start=1 class="HindiNumberList"> <LI> अजीव के दो आध्यात्मिक भेद </LI> </OL> | |||
[[परमात्मप्रकाश]] / मूल या टीका अधिकार संख्या १/३०/३३ तच्च द्विविधम्। जीवसंबन्धमजीवसंबन्धं च। <br> | [[परमात्मप्रकाश]] / मूल या टीका अधिकार संख्या १/३०/३३ तच्च द्विविधम्। जीवसंबन्धमजीवसंबन्धं च। <br> | ||
<p class="HindiSentence">= और वह दो प्रकार का है - जीव सम्बन्ध और अजीव सम्बन्ध।</p> | <p class="HindiSentence">= और वह दो प्रकार का है - जीव सम्बन्ध और अजीव सम्बन्ध।</p> | ||
<OL start=2 class="HindiNumberList"> <LI> अजीव के उपर्युक्त भेदों के लक्षण </LI> </OL> | |||
[[परमात्मप्रकाश]] / मूल या टीका अधिकार संख्या १/३०/३३ देहरागादिरूपं जीवसंबन्धं, पुद्गलादिपञ्चद्रव्यरूपमजीवसंबन्धमजीवलक्षणम्। <br> | [[परमात्मप्रकाश]] / मूल या टीका अधिकार संख्या १/३०/३३ देहरागादिरूपं जीवसंबन्धं, पुद्गलादिपञ्चद्रव्यरूपमजीवसंबन्धमजीवलक्षणम्। <br> | ||
<p class="HindiSentence">= देहादि में राग रूप तो जीव सम्बन्ध अजीव का लक्षण है और पुद्गलादि पंचद्रव्य रूप अजीव सम्बन्ध अजीव का लक्षण है।</p> | <p class="HindiSentence">= देहादि में राग रूप तो जीव सम्बन्ध अजीव का लक्षण है और पुद्गलादि पंचद्रव्य रूप अजीव सम्बन्ध अजीव का लक्षण है।</p> | ||
<OL start=3 class="HindiNumberList"> <LI> पाँच अजीव द्रव्यों का नाम निर्देश </LI> </OL> | |||
[[तत्त्वार्थसूत्र]] अध्याय संख्या ५/१,३९ अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः १। कालश्च। ३९; <br> | [[तत्त्वार्थसूत्र]] अध्याय संख्या ५/१,३९ अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः १। कालश्च। ३९; <br> | ||
<p class="HindiSentence">= धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य पुद्गल द्रव्य और काल द्रव्य ये पाँच अजीवकाय हैं। </p> | <p class="HindiSentence">= धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य पुद्गल द्रव्य और काल द्रव्य ये पाँच अजीवकाय हैं। </p> | ||
([[प्रवचनसार]] / [[ प्रवचनसार तत्त्वप्रदीपिका | तत्त्वप्रदीपिका ]] / गाथा संख्या १२७) ([[द्रव्यसंग्रह]] / मूल या टीका गाथा संख्या १५/५०)।<br> | ([[प्रवचनसार]] / [[ प्रवचनसार तत्त्वप्रदीपिका | तत्त्वप्रदीपिका ]] / गाथा संख्या १२७) ([[द्रव्यसंग्रह]] / मूल या टीका गाथा संख्या १५/५०)।<br> | ||
<OL start=4 class="HindiNumberList"> <LI> अन्य सम्बन्धित विषय </LI> </OL> | |||
<UL start=0 class="BulletedList"> <LI> धर्मादि द्रव्य – <b>देखे </b>[[वह वह नाम]] । </LI> | |||
<LI> जीव को कथंचित् अजीव कहना – <b>देखे </b>[[जीव]] १/३। </LI> | |||
<LI> अजीव-विचय धर्मध्यान का लक्षण – <b>देखे </b>[[धर्मध्यान]] १। </LI> | |||
<LI> षट् द्रव्यों में जीव अजीव विभाग – <b>देखे </b>[[द्रव्य.]] ३। </LI> </UL> | |||
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Revision as of 07:51, 3 May 2009
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या /१/४/१४ तद्विपर्ययलक्षणोऽजीवः।
= जीव से विपरीत लक्षणवाला अजीव है।
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या /५/२/२६६ तेषां धर्मादीनाम् `अजीव' इति सामान्यसंज्ञा जीवलक्षणाभावमुखेन प्रवृत्ता।
= धर्मादिक द्रव्यों में जीव का लक्षण नहीं पाया जाता है इसलिए उनकी अजीव यह सामान्य संज्ञा है।
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा संख्या १२७ यत्र पुनरुपयोगसहचरिताया यथोदितलक्षणायाश्चेतनाया अभावाद् बहिरन्तश्चा चेतनत्वमवतीर्णं प्रतिभाति सोऽजीव।
= जिसमें उपयोग के साथ रहनेवाली, यथोक्त लक्षणवाली चेतना का अभाव होने से बाहर तथा भीतर अचेतनत्व अवतरित प्रतिभासित होता है, वह अजीव है।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा संख्या १५/५० इत्युक्तलक्षणोपयोगश्चेतना च यत्र नास्ति स भवत्यजीव इति विज्ञेयम्।
= इस प्रकार की उक्त लक्षणवाली चेतना जहाँ नहीं है वह अजीव होता है ऐसा जानना चाहिए।
- अजीव के दो आध्यात्मिक भेद
परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार संख्या १/३०/३३ तच्च द्विविधम्। जीवसंबन्धमजीवसंबन्धं च।
= और वह दो प्रकार का है - जीव सम्बन्ध और अजीव सम्बन्ध।
- अजीव के उपर्युक्त भेदों के लक्षण
परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार संख्या १/३०/३३ देहरागादिरूपं जीवसंबन्धं, पुद्गलादिपञ्चद्रव्यरूपमजीवसंबन्धमजीवलक्षणम्।
= देहादि में राग रूप तो जीव सम्बन्ध अजीव का लक्षण है और पुद्गलादि पंचद्रव्य रूप अजीव सम्बन्ध अजीव का लक्षण है।
- पाँच अजीव द्रव्यों का नाम निर्देश
तत्त्वार्थसूत्र अध्याय संख्या ५/१,३९ अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः १। कालश्च। ३९;
= धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य पुद्गल द्रव्य और काल द्रव्य ये पाँच अजीवकाय हैं।
(प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा संख्या १२७) (द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा संख्या १५/५०)।
- अन्य सम्बन्धित विषय