स्वार्थ: Difference between revisions
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स्वयम्भू स्तोत्र/ मू./31 <span class="SanskritText">स्वास्थ्यं यदात्यन्तिकमेष पंसां स्वार्थो न भोग: परिभङ्गुरात्मा। तृषोऽनुषङ्गान्न च तापशान्तिरितीदमाख्यद्भगवान् सुपार्श्व:।31।</span> =<span class="HindiText">यह जो आत्यन्तिक स्वास्थ्य है वही पुरुषों का स्वार्थ है, क्षणभंगुर भोग स्वार्थ नहीं है, क्योंकि इन्द्रिय विषय सुख सेवन से उत्तरोत्तर तृष्णा की वृद्धि होती है ताप की शान्ति नहीं होती। यह स्वार्थ और अस्वार्थ का स्वरूप शोभन पार्श्वों के धारक भगवान् सुपार्श्व ने बताया है।31।</span> | |||
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स्याद्वादमञ्जरी/3/15/21 <span class="SanskritText">तेषां (ज्ञानिनां) हि परार्थस्यैव स्वार्थत्वेनाभिमतत्वात् ।</span> =<span class="HindiText">महात्मा लोग दूसरे के स्वार्थ को अपना स्वार्थ समझते हैं।</span></p> | |||
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अनगारधर्मामृत/4/44 <span class="SanskritText">मौनमेव सदा कुर्यार्दाय: स्वार्थैकसिद्धये। स्वैकसाध्ये परार्थे वा ब्रूयात्स्वार्थाविरोधत:।44।</span> =<span class="HindiText">परोपकार की अपेक्षा न करके आत्म कल्याण के लिए निरन्तर मौन धारणा चाहिए। परोपकार का कार्य ऐसा हो जो कि एक अपने द्वारा ही सिद्ध होता हो तो आत्म कल्याण में विरोध न आवे इस तरह बोलना चाहिए।44।</span></p> | |||
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Revision as of 19:17, 17 July 2020
स्वयम्भू स्तोत्र/ मू./31 स्वास्थ्यं यदात्यन्तिकमेष पंसां स्वार्थो न भोग: परिभङ्गुरात्मा। तृषोऽनुषङ्गान्न च तापशान्तिरितीदमाख्यद्भगवान् सुपार्श्व:।31। =यह जो आत्यन्तिक स्वास्थ्य है वही पुरुषों का स्वार्थ है, क्षणभंगुर भोग स्वार्थ नहीं है, क्योंकि इन्द्रिय विषय सुख सेवन से उत्तरोत्तर तृष्णा की वृद्धि होती है ताप की शान्ति नहीं होती। यह स्वार्थ और अस्वार्थ का स्वरूप शोभन पार्श्वों के धारक भगवान् सुपार्श्व ने बताया है।31।
स्याद्वादमञ्जरी/3/15/21 तेषां (ज्ञानिनां) हि परार्थस्यैव स्वार्थत्वेनाभिमतत्वात् । =महात्मा लोग दूसरे के स्वार्थ को अपना स्वार्थ समझते हैं।
अनगारधर्मामृत/4/44 मौनमेव सदा कुर्यार्दाय: स्वार्थैकसिद्धये। स्वैकसाध्ये परार्थे वा ब्रूयात्स्वार्थाविरोधत:।44। =परोपकार की अपेक्षा न करके आत्म कल्याण के लिए निरन्तर मौन धारणा चाहिए। परोपकार का कार्य ऐसा हो जो कि एक अपने द्वारा ही सिद्ध होता हो तो आत्म कल्याण में विरोध न आवे इस तरह बोलना चाहिए।44।