असुर: Difference between revisions
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<p class="SanskritText">तिलोयपण्णत्ति अधिकार 2/348-349 सिकदाणणासिपत्ता महबलकाला य समासबला हि। रुद्दंबरिसा विलसिदणामो महरुद्दखरणामा ॥348॥ कालग्गिरुद्दणामा कुंभो वेतरणिपहुदिअसुरसुरा। गंतूण बालुकंतं णारइयाणं पकोपंति ॥349॥</p> | <p class="SanskritText">तिलोयपण्णत्ति अधिकार 2/348-349 सिकदाणणासिपत्ता महबलकाला य समासबला हि। रुद्दंबरिसा विलसिदणामो महरुद्दखरणामा ॥348॥ कालग्गिरुद्दणामा कुंभो वेतरणिपहुदिअसुरसुरा। गंतूण बालुकंतं णारइयाणं पकोपंति ॥349॥</p> | ||
<p class="HindiText">= सिकतानन, असिपत्र, महाबल, महाकाल, श्याम और शबल, रूद्र, अंबरीष, बिलसित, महारूद्र, महाखर, काल तथा अग्निरुद्र, | <p class="HindiText">= सिकतानन, असिपत्र, महाबल, महाकाल, श्याम और शबल, रूद्र, अंबरीष, बिलसित, महारूद्र, महाखर, काल तथा अग्निरुद्र, कुंभ और वैतरणि आदिक असुरकुमार जातिके देव तीसरी बालुकाप्रभा पृथिवी तक जाकर नारकियोंको क्रोधित करते हैं।</p> | ||
<p>3. असुर देव नरकोंमें जाकर नारकियोंको दुख देते हैं। | <p>3. असुर देव नरकोंमें जाकर नारकियोंको दुख देते हैं। परंतु सब नहीं </p> | ||
<p class="SanskritText">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 3/5/209/3 पूर्वजन्मनि भावितेनातितीव्रेण संक्लेशपरिणामेन यदुपार्जितं पापकर्म तस्योदयात्सततं क्लिष्टाः संक्लिष्टाः-इति विशेषणान्न सर्वे असुरा नारकाणां | <p class="SanskritText">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 3/5/209/3 पूर्वजन्मनि भावितेनातितीव्रेण संक्लेशपरिणामेन यदुपार्जितं पापकर्म तस्योदयात्सततं क्लिष्टाः संक्लिष्टाः-इति विशेषणान्न सर्वे असुरा नारकाणां दुःखमुत्पादयंति। किंतर्हि। अंबांबरीषादय एव केचनेति।</p> | ||
<p class="HindiText">= पूर्व जन्ममें किये गये अतितीव्र संक्लेशरूप परिणामोंसे इन्होंने जो पाप कर्म उपार्जित किया उसके उदयसे ये | <p class="HindiText">= पूर्व जन्ममें किये गये अतितीव्र संक्लेशरूप परिणामोंसे इन्होंने जो पाप कर्म उपार्जित किया उसके उदयसे ये निरंतर क्लिष्ट रहते हैं, इसलिए संक्लिष्ट असुर कहलाते हैं। सूत्रमें यद्यपि असुरोंको संक्लिष्ट विशेषण दिया है, पर इसका यह अर्थ नहीं कि सब असुर नारकियोंको दुःख उत्पन्न कराते हैं। किंतु अंबरीष आदि कुछ असुर ही दुःख उत्पन्न कराते हैं।</p> | ||
<p>देखें [[ ऊपर शीर्षकसं#2 | ऊपर शीर्षकसं - 2 ]]- (सिकतानन आदि अनेक प्रकारके असुरदेव तीसरी पृथिवी तक जाकर नारकियोंको क्रोध उत्पन्न कराते हैं।)</p> | <p>देखें [[ ऊपर शीर्षकसं#2 | ऊपर शीर्षकसं - 2 ]]- (सिकतानन आदि अनेक प्रकारके असुरदेव तीसरी पृथिवी तक जाकर नारकियोंको क्रोध उत्पन्न कराते हैं।)</p> | ||
<p>4. सुरोंके साथ युद्ध करनेके कारण असुर कहना मिथ्या है</p> | <p>4. सुरोंके साथ युद्ध करनेके कारण असुर कहना मिथ्या है</p> | ||
<p class="SanskritText">राजवार्तिक अध्याय 4/10/4/216/7 स्यान्मतं युद्धे देवैः | <p class="SanskritText">राजवार्तिक अध्याय 4/10/4/216/7 स्यान्मतं युद्धे देवैः सहास्यंति प्रहरणादीनित्यसुरा इतिः तन्न, किं कारणम्। अवर्णवादात्। अवर्णवाद एष देवानामुपरि मिथ्याज्ञाननिमित्तः। कुतः। ते हि सौधर्मादयो देवा महाप्रभावाः, न तेषामुपरि इतरेषां निकृष्टबलानां मनागपि प्रातिलोम्येन वृत्तिरस्ति। अपि च, वैरकारणाभावात् ॥6॥ ततो नासुराः सुरैरुध्यंते।</p> | ||
<p class="HindiText">= `देवोंके साथ असुरका युद्ध होता है, अतः ये असुर कहलाते हैं' यह देवोंका अवर्णवाद मिथ्यात्वके कारण किया जाता है, क्योंकि, सौधर्मादिक स्वर्गोके देव महाप्रभावशाली हैं। शुभानुष्ठानोंमें रहनेवाले उनके साथ वैरकी कोई | <p class="HindiText">= `देवोंके साथ असुरका युद्ध होता है, अतः ये असुर कहलाते हैं' यह देवोंका अवर्णवाद मिथ्यात्वके कारण किया जाता है, क्योंकि, सौधर्मादिक स्वर्गोके देव महाप्रभावशाली हैं। शुभानुष्ठानोंमें रहनेवाले उनके साथ वैरकी कोई संभावना नहीं है। निकृष्ट बलवाले असुर उनका किंचित् भी बिगाड़ नहीं कर सकते। इसलिए अल्पप्रभाववाले असुरों से युद्धकी कल्पना ही व्यर्थ है।</p> | ||
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<p id="1"> (1) देव । ये प्रथम तीन नरक-पृथिवियों तक जाकर नारकियों को उनके पूर्वभव | <p id="1"> (1) देव । ये प्रथम तीन नरक-पृथिवियों तक जाकर नारकियों को उनके पूर्वभव संबंधी वैर का स्मरण कराकर परस्पर लड़ाते हैं । ये न केवल स्वयं नारकियों को मारते हैं अपितु सेवकों से भी उन्हें दंडित कराते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 10. 41, 33. 73, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 123. 4-5 </span></p> | ||
<p id="2">(2) विद्याधरों का एक नगर । <span class="GRef"> <span class="GRef"> पद्मपुराण 7.117 </span> </span></p> | <p id="2">(2) विद्याधरों का एक नगर । <span class="GRef"> <span class="GRef"> पद्मपुराण 7.117 </span> </span></p> | ||
<p id="3">(3) असुर नगर के निवासी होने से इस नाम से अभिहित विद्याधर । <span class="GRef"> <span class="GRef"> पद्मपुराण 7.117 </span> </span></p> | <p id="3">(3) असुर नगर के निवासी होने से इस नाम से अभिहित विद्याधर । <span class="GRef"> <span class="GRef"> पद्मपुराण 7.117 </span> </span></p> |
Revision as of 16:18, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से ==
धवला पुस्तक 13/5,5,140/391/7 अहिंसाद्यनुष्ठानरतयः सुरान नाम। तद्विपरीताः असुराः।
= जिनकी अहिंसादिके अनुष्ठानोंमें रति है वे सुर हैं। इनसे विपरीत असुर होते हैं।
2. असुरकुमार देवोंके भेद
तिलोयपण्णत्ति अधिकार 2/348-349 सिकदाणणासिपत्ता महबलकाला य समासबला हि। रुद्दंबरिसा विलसिदणामो महरुद्दखरणामा ॥348॥ कालग्गिरुद्दणामा कुंभो वेतरणिपहुदिअसुरसुरा। गंतूण बालुकंतं णारइयाणं पकोपंति ॥349॥
= सिकतानन, असिपत्र, महाबल, महाकाल, श्याम और शबल, रूद्र, अंबरीष, बिलसित, महारूद्र, महाखर, काल तथा अग्निरुद्र, कुंभ और वैतरणि आदिक असुरकुमार जातिके देव तीसरी बालुकाप्रभा पृथिवी तक जाकर नारकियोंको क्रोधित करते हैं।
3. असुर देव नरकोंमें जाकर नारकियोंको दुख देते हैं। परंतु सब नहीं
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 3/5/209/3 पूर्वजन्मनि भावितेनातितीव्रेण संक्लेशपरिणामेन यदुपार्जितं पापकर्म तस्योदयात्सततं क्लिष्टाः संक्लिष्टाः-इति विशेषणान्न सर्वे असुरा नारकाणां दुःखमुत्पादयंति। किंतर्हि। अंबांबरीषादय एव केचनेति।
= पूर्व जन्ममें किये गये अतितीव्र संक्लेशरूप परिणामोंसे इन्होंने जो पाप कर्म उपार्जित किया उसके उदयसे ये निरंतर क्लिष्ट रहते हैं, इसलिए संक्लिष्ट असुर कहलाते हैं। सूत्रमें यद्यपि असुरोंको संक्लिष्ट विशेषण दिया है, पर इसका यह अर्थ नहीं कि सब असुर नारकियोंको दुःख उत्पन्न कराते हैं। किंतु अंबरीष आदि कुछ असुर ही दुःख उत्पन्न कराते हैं।
देखें ऊपर शीर्षकसं - 2 - (सिकतानन आदि अनेक प्रकारके असुरदेव तीसरी पृथिवी तक जाकर नारकियोंको क्रोध उत्पन्न कराते हैं।)
4. सुरोंके साथ युद्ध करनेके कारण असुर कहना मिथ्या है
राजवार्तिक अध्याय 4/10/4/216/7 स्यान्मतं युद्धे देवैः सहास्यंति प्रहरणादीनित्यसुरा इतिः तन्न, किं कारणम्। अवर्णवादात्। अवर्णवाद एष देवानामुपरि मिथ्याज्ञाननिमित्तः। कुतः। ते हि सौधर्मादयो देवा महाप्रभावाः, न तेषामुपरि इतरेषां निकृष्टबलानां मनागपि प्रातिलोम्येन वृत्तिरस्ति। अपि च, वैरकारणाभावात् ॥6॥ ततो नासुराः सुरैरुध्यंते।
= `देवोंके साथ असुरका युद्ध होता है, अतः ये असुर कहलाते हैं' यह देवोंका अवर्णवाद मिथ्यात्वके कारण किया जाता है, क्योंकि, सौधर्मादिक स्वर्गोके देव महाप्रभावशाली हैं। शुभानुष्ठानोंमें रहनेवाले उनके साथ वैरकी कोई संभावना नहीं है। निकृष्ट बलवाले असुर उनका किंचित् भी बिगाड़ नहीं कर सकते। इसलिए अल्पप्रभाववाले असुरों से युद्धकी कल्पना ही व्यर्थ है।
• असुरकुमार देवोंके इंद्रादि व उनका अवस्थान - देखें भवन - 2,4
पुराणकोष से
(1) देव । ये प्रथम तीन नरक-पृथिवियों तक जाकर नारकियों को उनके पूर्वभव संबंधी वैर का स्मरण कराकर परस्पर लड़ाते हैं । ये न केवल स्वयं नारकियों को मारते हैं अपितु सेवकों से भी उन्हें दंडित कराते हैं । महापुराण 10. 41, 33. 73, पद्मपुराण 123. 4-5
(2) विद्याधरों का एक नगर । पद्मपुराण 7.117
(3) असुर नगर के निवासी होने से इस नाम से अभिहित विद्याधर । पद्मपुराण 7.117