आसादन: Difference between revisions
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<p class="SanskritText">सू.आ.45 पंचेव अत्थिकाया छज्जीवणिकाया महवया पंच। पवयणादु पदत्था तेतीसच्चासणा भणिया ॥54॥</p> | <p class="SanskritText">सू.आ.45 पंचेव अत्थिकाया छज्जीवणिकाया महवया पंच। पवयणादु पदत्था तेतीसच्चासणा भणिया ॥54॥</p> | ||
<p class="HindiText">= जीव आदि पाँच अस्तिका, पृथ्वीकायादि स्थावर व दो | <p class="HindiText">= जीव आदि पाँच अस्तिका, पृथ्वीकायादि स्थावर व दो इंद्रियसे पाँच इंद्रिय तक त्रसकाय-इस तरह छह जीवनिकाय, अहिंसा आदि पाँच महाव्रत, ईर्या आदि पाँच समिति, व काय गुप्ति आदि तीन गुप्ति-ऐसे आठ प्रवचन माता और जीवादि नव पदार्थ - इस प्रकार ये तेंतीस पदार्थ हैं। इनकी आसादनाके भी ये ही नाम हैं। इन पदार्थोंका स्वरूप अन्यथा कहना, शंका आदि उत्पन्न करना उसे आसादना कहते हैं। ऐसा करनेसे दोष लगता है इसलिए उसका त्याग कराया गया है।</p> | ||
<p class="SanskritText">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 6/10/627/13 कायेन वाचा य परप्रकाशस्य ज्ञानस्य वर्जनमासादनम्।</p> | <p class="SanskritText">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 6/10/627/13 कायेन वाचा य परप्रकाशस्य ज्ञानस्य वर्जनमासादनम्।</p> | ||
<p class="HindiText">= (कोई ज्ञानका प्रकाश कर रहा है) तब शरीर या वचनसे उसका निषेध करना आसादना है।</p> | <p class="HindiText">= (कोई ज्ञानका प्रकाश कर रहा है) तब शरीर या वचनसे उसका निषेध करना आसादना है।</p> | ||
<p>• उपघात और आसादनमें | <p>• उपघात और आसादनमें अंतर - देखें [[ उपघात ]]।</p> | ||
Revision as of 16:19, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से ==
सू.आ.45 पंचेव अत्थिकाया छज्जीवणिकाया महवया पंच। पवयणादु पदत्था तेतीसच्चासणा भणिया ॥54॥
= जीव आदि पाँच अस्तिका, पृथ्वीकायादि स्थावर व दो इंद्रियसे पाँच इंद्रिय तक त्रसकाय-इस तरह छह जीवनिकाय, अहिंसा आदि पाँच महाव्रत, ईर्या आदि पाँच समिति, व काय गुप्ति आदि तीन गुप्ति-ऐसे आठ प्रवचन माता और जीवादि नव पदार्थ - इस प्रकार ये तेंतीस पदार्थ हैं। इनकी आसादनाके भी ये ही नाम हैं। इन पदार्थोंका स्वरूप अन्यथा कहना, शंका आदि उत्पन्न करना उसे आसादना कहते हैं। ऐसा करनेसे दोष लगता है इसलिए उसका त्याग कराया गया है।
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 6/10/627/13 कायेन वाचा य परप्रकाशस्य ज्ञानस्य वर्जनमासादनम्।
= (कोई ज्ञानका प्रकाश कर रहा है) तब शरीर या वचनसे उसका निषेध करना आसादना है।
• उपघात और आसादनमें अंतर - देखें उपघात ।
पुराणकोष से
ज्ञानावरण और दर्शनावरण-आस्रव का हेतु (दूसरे के द्वारा प्रकाश में आने योग्य ज्ञान को काय और वचन से रोक देना) । हरिवंशपुराण 58. 92