उपधान: Difference between revisions
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<p class="SanskritText">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 282 आयंविल णिव्वियडी अण्णं वा होदि जस्स कादव्वं। तं तस्स करेमाणो उपहाणजुदो हवदि एसो ।282।</p> | <p class="SanskritText">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 282 आयंविल णिव्वियडी अण्णं वा होदि जस्स कादव्वं। तं तस्स करेमाणो उपहाणजुदो हवदि एसो ।282।</p> | ||
<p class="HindiText">= आचाम्ल आहार (कांजी) निर्विकृति आहार (नीरस), तथा और भी जिस शास्त्रके योग्य जो क्रिया कही हो उसका नियम करना, वह उपधान है। उससे भी शास्त्रका आदर होता है।</p> | <p class="HindiText">= आचाम्ल आहार (कांजी) निर्विकृति आहार (नीरस), तथा और भी जिस शास्त्रके योग्य जो क्रिया कही हो उसका नियम करना, वह उपधान है। उससे भी शास्त्रका आदर होता है।</p> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p> पारिव्राज्य के सत्ताईस सूत्रपदों में एक सूत्रपद । इस सूत्रपद में बताया गया है कि मुनि का उपधान उसकी भुजाएं होती है । <span class="GRef"> महापुराण 39.162-166 179-180 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> पारिव्राज्य के सत्ताईस सूत्रपदों में एक सूत्रपद । इस सूत्रपद में बताया गया है कि मुनि का उपधान उसकी भुजाएं होती है । <span class="GRef"> महापुराण 39.162-166 179-180 </span></p> | ||
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Revision as of 16:52, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 282 आयंविल णिव्वियडी अण्णं वा होदि जस्स कादव्वं। तं तस्स करेमाणो उपहाणजुदो हवदि एसो ।282।
= आचाम्ल आहार (कांजी) निर्विकृति आहार (नीरस), तथा और भी जिस शास्त्रके योग्य जो क्रिया कही हो उसका नियम करना, वह उपधान है। उससे भी शास्त्रका आदर होता है।
भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 113/261/1 उपहाणे अवग्रहः। यावदिदमनुयोगद्वारं निष्ठामुपैति तावदिदं मया न भोक्तव्यं, इदं अनशनं चतुर्थ षष्ठादिकं करिष्यामीति संकल्पः। स च कर्म व्यपनयतोति विनयः।
= विशेष नियय धारण करना। जब तक अनुयोगका प्रकरण समाप्त होगा तब तक मैं उपवास करूँगा, अथवा दो उपवास करूँगा, यह पदार्थ नहीं खाऊँगा या भोगूँगा; इस तरहसे संकल्प करना उपधान है। यह विनय अशुभ कर्मको दूर करता है।
पुराणकोष से
पारिव्राज्य के सत्ताईस सूत्रपदों में एक सूत्रपद । इस सूत्रपद में बताया गया है कि मुनि का उपधान उसकी भुजाएं होती है । महापुराण 39.162-166 179-180