ग्रहण: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong class="HindiText"> ज्ञान के अर्थ में</strong><br /> | <li><strong class="HindiText"> ज्ञान के अर्थ में</strong><br /> | ||
राजवार्तिक/1/1/1/3/25 <span class="SanskritText">आहितमात्मसात्कृतं परिगृहीतम् इत्यनर्थान्तरम् ।</span> =<span class="HindiText">आहित, आत्मसात् किया गया या परिगृहीत ये एकार्थवाची हैं।<br /> | |||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong> इन्द्रिय के अर्थ में</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong> इन्द्रिय के अर्थ में</strong> </span><br /> | ||
राजवार्तिक/2/8/19/122/25 <span class="SanskritText">यान्यमूनि ग्रहणानि पूर्वकृतकर्मनिर्वर्तितानि हिरुक्कृतस्वभावसामर्थ्यजनितभेदानि रूपरसगन्धस्पर्शशब्दग्राहकाणि चक्षुरसनघ्राणत्वक्श्रोत्राणि।</span>=<span class="HindiText"><span class="HindiText">जो यह पूर्वकृतकर्म से निर्मित, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श व शब्द को ग्रहण करने वाली, चक्षु रसन घ्राण त्वक् और श्रोत्ररूप ‘ग्रहणानि’ अर्थात् इन्द्रियाँ हैं।<br /> | |||
</span></span></li> | </span></span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><span class="HindiText"><strong> सूर्य व चन्द्र ग्रहण के अर्थ में</strong></span><strong> <BR> | <li><span class="HindiText"><span class="HindiText"><strong> सूर्य व चन्द्र ग्रहण के अर्थ में</strong></span><strong> <BR> | ||
</strong> | </strong> त्रिलोकसार/339/ भाषा टीका–राहू तो चन्द्रमा को आच्छादे है और केतु सूर्य को आच्छादे है, याही का नाम ग्रहण कहिए है। विशेष देखें [[ ज्योतिषलोक#8 | ज्योतिषलोक - 8]]।</span></li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> |
Revision as of 19:10, 17 July 2020
- ज्ञान के अर्थ में
राजवार्तिक/1/1/1/3/25 आहितमात्मसात्कृतं परिगृहीतम् इत्यनर्थान्तरम् । =आहित, आत्मसात् किया गया या परिगृहीत ये एकार्थवाची हैं।
- इन्द्रिय के अर्थ में
राजवार्तिक/2/8/19/122/25 यान्यमूनि ग्रहणानि पूर्वकृतकर्मनिर्वर्तितानि हिरुक्कृतस्वभावसामर्थ्यजनितभेदानि रूपरसगन्धस्पर्शशब्दग्राहकाणि चक्षुरसनघ्राणत्वक्श्रोत्राणि।=जो यह पूर्वकृतकर्म से निर्मित, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श व शब्द को ग्रहण करने वाली, चक्षु रसन घ्राण त्वक् और श्रोत्ररूप ‘ग्रहणानि’ अर्थात् इन्द्रियाँ हैं।
- सूर्य व चन्द्र ग्रहण के अर्थ में
त्रिलोकसार/339/ भाषा टीका–राहू तो चन्द्रमा को आच्छादे है और केतु सूर्य को आच्छादे है, याही का नाम ग्रहण कहिए है। विशेष देखें ज्योतिषलोक - 8।
- ग्रहण के अवसर पर स्वाध्याय करने का निषेध—देखें स्वाध्याय - 2।