वक्तव्यता: Difference between revisions
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धवला 1/1, 1, 1/82/5 <span class="PrakritText"> वत्तव्वदा तिविहा, ससमयवत्तव्वदा परसमयवत्तव्वदा तदुभयवत्तव्वदा चेदि। जम्हि सत्थम्हि स - समयो चेव वणिज्जदि परूविज्जदि पण्णाविज्जदि तं सत्थं ससमयवत्तव्वं, तस्स भावो ससमयवत्तव्वदा। पर समयो मिच्छत्तं जम्हि पाहुड़े अणियोगे वा वणिज्जदि परूविज्जदि पण्णाविज्जदि तं पाहुडमणियोगो वा परसमयवत्तव्वं, तस्स भावो परसमयवत्तव्वदा णाम। जत्थ दो वि परूवेऊण पर - समयो दूसिज्जदि स - समयो थाविज्जदि तत्थ सा तदुभयवत्तव्वदा णाम भवदि। </span>= <span class="HindiText">वक्तव्यता के तीन प्रकार स्वसमय वक्तव्यता, परसमय वक्तव्यता और तदुभय वक्तव्यता। जिस शास्त्र में स्वसमय का ही वर्णन किया जाता है, प्ररूपण किया जाता है अथवा विशेष रूप से ज्ञान कराया जाता है, उसे स्वसमय वक्तव्य कहते हैं और उसके भाव को अर्थात् उसमें रहने वाली विशेषता को स्वसमय वक्तव्यता कहते हैं। पर समय मिथ्यात्व को कहते हैं, उसका जिस प्राभृत या अनुयोग में वर्णन किया जाता है, प्ररूपण किया जाता है या विशेष ज्ञान कराया जाता है उस प्राभृत या अनुयोग को परसमय वक्तव्य कहते हैं और उसके भाव को अर्थात् उसमें होने वाली विशेषता को परसमय वक्तव्यता कहते हैं। जहाँ पर स्वसमय और परसमय इन दोनों का निरूपण करके परसमय को दोषयुक्त दिखलाया जाता है और स्वसमय की स्थापना की जाती है, उसे तदुभय वक्तव्य कहते हैं और उसके भाव को अर्थात् उसमें रहने वाली विशेषता को तदुभय वक्तव्यता कहते हैं। ( धवला 9/4, 1, 45/140/3 )। <br /> | |||
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<li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> जैनागम में कथंचित् स्वसमय व तदुभय वक्तव्यता</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> जैनागम में कथंचित् स्वसमय व तदुभय वक्तव्यता</strong> </span><br /> | ||
धवला 1/1, 1, 1/82/10 <span class="PrakritText"> एत्थ पुण-जीवट्ठाणे ससमयवत्तव्वदा ससमयस्सेव परूवणदो। </span>=<span class="HindiText"> इस जीवस्थान नामक (धवला) शास्त्र में स्वसमय वक्तव्यता ही समझनी चाहिए, क्योंकि इसमें स्वसमय का ही निरूपण किया गया है। </span><br /> | |||
कषायपाहुड़/1/1, 1/81/97/2 <span class="PrakritText">तत्थ सुदणाणे तदुभयवत्तव्वदाः सुणयदुण्णयाण दोण्हं पि परूव्णाए तत्थ संभवादो।</span> =<span class="HindiText"> श्रुतज्ञान में तदुभय वक्तव्यता समझना चाहिए, क्योंकि श्रुतज्ञान में सुनय और दुर्नय इन दोनों की ही प्ररूपणा संभव है। </span></li> | |||
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Revision as of 19:14, 17 July 2020
- वक्तव्यता
धवला 1/1, 1, 1/82/5 वत्तव्वदा तिविहा, ससमयवत्तव्वदा परसमयवत्तव्वदा तदुभयवत्तव्वदा चेदि। जम्हि सत्थम्हि स - समयो चेव वणिज्जदि परूविज्जदि पण्णाविज्जदि तं सत्थं ससमयवत्तव्वं, तस्स भावो ससमयवत्तव्वदा। पर समयो मिच्छत्तं जम्हि पाहुड़े अणियोगे वा वणिज्जदि परूविज्जदि पण्णाविज्जदि तं पाहुडमणियोगो वा परसमयवत्तव्वं, तस्स भावो परसमयवत्तव्वदा णाम। जत्थ दो वि परूवेऊण पर - समयो दूसिज्जदि स - समयो थाविज्जदि तत्थ सा तदुभयवत्तव्वदा णाम भवदि। = वक्तव्यता के तीन प्रकार स्वसमय वक्तव्यता, परसमय वक्तव्यता और तदुभय वक्तव्यता। जिस शास्त्र में स्वसमय का ही वर्णन किया जाता है, प्ररूपण किया जाता है अथवा विशेष रूप से ज्ञान कराया जाता है, उसे स्वसमय वक्तव्य कहते हैं और उसके भाव को अर्थात् उसमें रहने वाली विशेषता को स्वसमय वक्तव्यता कहते हैं। पर समय मिथ्यात्व को कहते हैं, उसका जिस प्राभृत या अनुयोग में वर्णन किया जाता है, प्ररूपण किया जाता है या विशेष ज्ञान कराया जाता है उस प्राभृत या अनुयोग को परसमय वक्तव्य कहते हैं और उसके भाव को अर्थात् उसमें होने वाली विशेषता को परसमय वक्तव्यता कहते हैं। जहाँ पर स्वसमय और परसमय इन दोनों का निरूपण करके परसमय को दोषयुक्त दिखलाया जाता है और स्वसमय की स्थापना की जाती है, उसे तदुभय वक्तव्य कहते हैं और उसके भाव को अर्थात् उसमें रहने वाली विशेषता को तदुभय वक्तव्यता कहते हैं। ( धवला 9/4, 1, 45/140/3 )।
- जैनागम में कथंचित् स्वसमय व तदुभय वक्तव्यता
धवला 1/1, 1, 1/82/10 एत्थ पुण-जीवट्ठाणे ससमयवत्तव्वदा ससमयस्सेव परूवणदो। = इस जीवस्थान नामक (धवला) शास्त्र में स्वसमय वक्तव्यता ही समझनी चाहिए, क्योंकि इसमें स्वसमय का ही निरूपण किया गया है।
कषायपाहुड़/1/1, 1/81/97/2 तत्थ सुदणाणे तदुभयवत्तव्वदाः सुणयदुण्णयाण दोण्हं पि परूव्णाए तत्थ संभवादो। = श्रुतज्ञान में तदुभय वक्तव्यता समझना चाहिए, क्योंकि श्रुतज्ञान में सुनय और दुर्नय इन दोनों की ही प्ररूपणा संभव है।