अनध्यवसाय: Difference between revisions
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<p class="HindiSentence">= अनध्यवसाय रूप प्रतिभास प्रमाण भी है और अप्रमाण भी है, क्योंकि, उसमें विसंवाद अर्थात् `यह क्या है' ऐसा अनिश्चय तथा अविसंवाद अर्थात् `कुछ है अवश्य' ऐसा निश्चय दोनों पाये जाते हैं।</p> | <p class="HindiSentence">= अनध्यवसाय रूप प्रतिभास प्रमाण भी है और अप्रमाण भी है, क्योंकि, उसमें विसंवाद अर्थात् `यह क्या है' ऐसा अनिश्चय तथा अविसंवाद अर्थात् `कुछ है अवश्य' ऐसा निश्चय दोनों पाये जाते हैं।</p> | ||
[[राजवार्तिक हिन्दी| राजवार्तिक]] अध्याय संख्या १/३२/१९२ काहै तै निर्णय कीजिये? हेतुवाद तर्कशास्त्र है ते तो कहीं ठहरे नाहीं। बहुरि आगम हैं वे जुदे जुदे हैं। कोई कछु कहे कोई कछु कहे तिनि का ठिकाना नाहीं। बहुरि सर्व का ज्ञाता मुनि कोई प्रत्यक्ष नाहीं, जाके वचन प्रमाण कीजिये। बहुरि धर्म का स्वरूप यथार्थ सूक्ष्म है, सो कैसे निर्णय होय। तातैं जो बड़ा मार्ग चला आवे तैसे चलना, प्रवर्तना। निर्णय होता नाहीं, ऐसे अनध्यवसाय है।<br> | [[राजवार्तिक हिन्दी| राजवार्तिक]] अध्याय संख्या १/३२/१९२ काहै तै निर्णय कीजिये? हेतुवाद तर्कशास्त्र है ते तो कहीं ठहरे नाहीं। बहुरि आगम हैं वे जुदे जुदे हैं। कोई कछु कहे कोई कछु कहे तिनि का ठिकाना नाहीं। बहुरि सर्व का ज्ञाता मुनि कोई प्रत्यक्ष नाहीं, जाके वचन प्रमाण कीजिये। बहुरि धर्म का स्वरूप यथार्थ सूक्ष्म है, सो कैसे निर्णय होय। तातैं जो बड़ा मार्ग चला आवे तैसे चलना, प्रवर्तना। निर्णय होता नाहीं, ऐसे अनध्यवसाय है।<br> | ||
<UL start=0 class="BulletedList"> <LI> अनध्यवसाय, संशय व विपर्यय में अन्तर – <b>देखे </b>[[संशय]] ४। </LI> </UL> | |||
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Revision as of 08:49, 3 May 2009
न्यायदीपिका अधिकार १/$९/८ किमित्यालोचनमात्रमनध्यवसायः। यथा पथि गच्छतस्तृणस्पर्शादि ज्ञानम्।
= `यह क्या है' इस प्रकार का जो ज्ञान होता है, उसको अनध्यवसाय कहते हैं। जैसे-रास्ता चलनेवाले को तृण या काँटे आदि के स्पर्श मात्रसे यह कुछ पदार्थ है, ऐसा ज्ञान होता है उसको अनध्यवसाय कहते हैं।
धवला पुस्तक संख्या १/१,१,४/१४८/५ प्रतिभासः प्रमाणञ्चाप्रमाणञ्च विसंवादाविसंवादोभयरूपस्य तत्रोपलम्भात्।
= अनध्यवसाय रूप प्रतिभास प्रमाण भी है और अप्रमाण भी है, क्योंकि, उसमें विसंवाद अर्थात् `यह क्या है' ऐसा अनिश्चय तथा अविसंवाद अर्थात् `कुछ है अवश्य' ऐसा निश्चय दोनों पाये जाते हैं।
राजवार्तिक अध्याय संख्या १/३२/१९२ काहै तै निर्णय कीजिये? हेतुवाद तर्कशास्त्र है ते तो कहीं ठहरे नाहीं। बहुरि आगम हैं वे जुदे जुदे हैं। कोई कछु कहे कोई कछु कहे तिनि का ठिकाना नाहीं। बहुरि सर्व का ज्ञाता मुनि कोई प्रत्यक्ष नाहीं, जाके वचन प्रमाण कीजिये। बहुरि धर्म का स्वरूप यथार्थ सूक्ष्म है, सो कैसे निर्णय होय। तातैं जो बड़ा मार्ग चला आवे तैसे चलना, प्रवर्तना। निर्णय होता नाहीं, ऐसे अनध्यवसाय है।
- अनध्यवसाय, संशय व विपर्यय में अन्तर – देखे संशय ४।