उभय दूषण: Difference between revisions
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<p>न्याय विषयक एक दोष।</p> | <p>न्याय विषयक एक दोष।</p> | ||
<p class="SanskritText"> श्लोकवार्तिक 4/ न्या. 459/551/17 मिथो विरुद्धानां तदीयस्वभावाभावापादनमुभयदोषः।</p> | <p class="SanskritText"> श्लोकवार्तिक 4/ न्या. 459/551/17 मिथो विरुद्धानां तदीयस्वभावाभावापादनमुभयदोषः।</p> | ||
<p class="HindiText">= | <p class="HindiText">= एकांतरूपसे अस्तित्व माननेपर जो दोष नास्तित्वाभावरूप आता है, अथवा नास्तित्वरूप माननेपर जो दोष अस्तित्वाभावस्वरूप आता है वे एकांतवादियोंके ऊपर आनेवाले दोष अनेकांतको माननेवाले जैनके यहाँ भी प्राप्त हो जाते हैं। यह उभय दोष हुआ। (ऐसा सैद्धांतिकजन जैनोंपर आरोप करते हैं।)</p> | ||
Revision as of 16:20, 19 August 2020
न्याय विषयक एक दोष।
श्लोकवार्तिक 4/ न्या. 459/551/17 मिथो विरुद्धानां तदीयस्वभावाभावापादनमुभयदोषः।
= एकांतरूपसे अस्तित्व माननेपर जो दोष नास्तित्वाभावरूप आता है, अथवा नास्तित्वरूप माननेपर जो दोष अस्तित्वाभावस्वरूप आता है वे एकांतवादियोंके ऊपर आनेवाले दोष अनेकांतको माननेवाले जैनके यहाँ भी प्राप्त हो जाते हैं। यह उभय दोष हुआ। (ऐसा सैद्धांतिकजन जैनोंपर आरोप करते हैं।)