चारित्र शुद्धि व्रत: Difference between revisions
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चारित्र के निम्न 1234 अंगों के उपलक्ष में एक उपवास एक पारणा क्रम से 6 वर्ष, 10 मास 8 दिन में 1234 उपवास पूरे करे–(1) अहिंसाव्रत=14 जीव समास×नवकोटि (मन, वचन, काय×कृत, कारित अनुमोदना=126। (2) सत्यव्रत=भय, ईर्ष्या, स्वपक्षपात, पैशुन्य, क्रोध, लोभ, आत्मप्रशंसा और परनिन्दा ये 8×9कोटि=72। (3) अचौर्यव्रत=ग्राम, अरण्य, खल, एकान्त, अन्यत्र, उपधि, अमुक्त, पृष्ठ ग्रहण ऐसे 8 पदार्थ×9 कोटि =72। (4) ब्रह्मचर्य=मनुष्यणी, देवांगना, तिर्यंचिनी व अचेतनी ये चार | चारित्र के निम्न 1234 अंगों के उपलक्ष में एक उपवास एक पारणा क्रम से 6 वर्ष, 10 मास 8 दिन में 1234 उपवास पूरे करे–(1) अहिंसाव्रत=14 जीव समास×नवकोटि (मन, वचन, काय×कृत, कारित अनुमोदना=126। (2) सत्यव्रत=भय, ईर्ष्या, स्वपक्षपात, पैशुन्य, क्रोध, लोभ, आत्मप्रशंसा और परनिन्दा ये 8×9कोटि=72। (3) अचौर्यव्रत=ग्राम, अरण्य, खल, एकान्त, अन्यत्र, उपधि, अमुक्त, पृष्ठ ग्रहण ऐसे 8 पदार्थ×9 कोटि =72। (4) ब्रह्मचर्य=मनुष्यणी, देवांगना, तिर्यंचिनी व अचेतनी ये चार स्त्रियाँ×9 कोटि×5 इन्द्रिय=180। (5) परिग्रह त्याग=24 प्रकार परिग्रह×9कोटि=216। (6) गुप्ति=3×9कोटि=27। (7) समिति ईर्या, आदान-निक्षेपण व उत्सर्ग ये 3×9 कोटि=27+भाषा समिति के 10 प्रकार सत्य×9 कोटि =90+एषणा समिति के 46 दोष×9 कोटि =414=1234 ओं ह्रीं अ सि आ उ सा चारित्रशुद्धिव्रतेभ्यो नम: इस मंत्र का त्रिकाल जाप्य करे ( हरिवंशपुराण/34/100-110 ), (व्रत विधान संग्रह/पृ.59)। | ||
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Revision as of 14:20, 20 July 2020
चारित्र के निम्न 1234 अंगों के उपलक्ष में एक उपवास एक पारणा क्रम से 6 वर्ष, 10 मास 8 दिन में 1234 उपवास पूरे करे–(1) अहिंसाव्रत=14 जीव समास×नवकोटि (मन, वचन, काय×कृत, कारित अनुमोदना=126। (2) सत्यव्रत=भय, ईर्ष्या, स्वपक्षपात, पैशुन्य, क्रोध, लोभ, आत्मप्रशंसा और परनिन्दा ये 8×9कोटि=72। (3) अचौर्यव्रत=ग्राम, अरण्य, खल, एकान्त, अन्यत्र, उपधि, अमुक्त, पृष्ठ ग्रहण ऐसे 8 पदार्थ×9 कोटि =72। (4) ब्रह्मचर्य=मनुष्यणी, देवांगना, तिर्यंचिनी व अचेतनी ये चार स्त्रियाँ×9 कोटि×5 इन्द्रिय=180। (5) परिग्रह त्याग=24 प्रकार परिग्रह×9कोटि=216। (6) गुप्ति=3×9कोटि=27। (7) समिति ईर्या, आदान-निक्षेपण व उत्सर्ग ये 3×9 कोटि=27+भाषा समिति के 10 प्रकार सत्य×9 कोटि =90+एषणा समिति के 46 दोष×9 कोटि =414=1234 ओं ह्रीं अ सि आ उ सा चारित्रशुद्धिव्रतेभ्यो नम: इस मंत्र का त्रिकाल जाप्य करे ( हरिवंशपुराण/34/100-110 ), (व्रत विधान संग्रह/पृ.59)।