विद्युत्केश: Difference between revisions
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== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
परीक्षामुख/6/ श्लोक–भगवान् मुनिसुव्रत के समय लंका का राक्षस वंशीय राजा था। वानर वंशीय महोदधि राजा के साथ परम स्नेह था। | परीक्षामुख/6/ श्लोक–भगवान् मुनिसुव्रत के समय लंका का राक्षस वंशीय राजा था। वानर वंशीय महोदधि राजा के साथ परम स्नेह था। अंत में दीक्ष धारण कर ली (222-225)। | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p> लंका का राजा । यह राक्षसवंशी था । | <p> लंका का राजा । यह राक्षसवंशी था । श्रीचंद्रा आदि इसकी अनेक रानियां थी । श्रीचंद्रा को एक वानर ने नोंच लिया था जिससे कुपित होकर इसने उस वानर को मार कर घायल कर दिया था । यह वानर घायल अवस्था में मुनि संघ के निकट पृथिवी पर भागते हुए गिर गया था । मुनियों के पंच-नमस्कार मंत्र का उपदेश देने से वानर मरकर महोदधिकुमार नामक भवनवासी देव हुआ । इस देव ने इसे कर्त्तव्य-बोध कराया । यह इस अपने गुरु के पास ले गया । वहाँ दोनों ने गुरु से धर्म का उपदेश सुना और अपना पूर्वभव ज्ञात किया । इससे इसे प्रबोध हुआ । अपने पुत्र सुकेश को अपना पद सौंप कर इसने दीक्षा ले ली तथा समाधिमरण के प्रभाव से उत्तम देव हुआ । इसकी दीक्षा के समाचार पाकर महोदधिकुमार ने भी विरक्त होकर दीक्षा ले ली । <span class="GRef"> पद्मपुराण 6.223-350 </span></p> | ||
Revision as of 16:35, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से ==
परीक्षामुख/6/ श्लोक–भगवान् मुनिसुव्रत के समय लंका का राक्षस वंशीय राजा था। वानर वंशीय महोदधि राजा के साथ परम स्नेह था। अंत में दीक्ष धारण कर ली (222-225)।
पुराणकोष से
लंका का राजा । यह राक्षसवंशी था । श्रीचंद्रा आदि इसकी अनेक रानियां थी । श्रीचंद्रा को एक वानर ने नोंच लिया था जिससे कुपित होकर इसने उस वानर को मार कर घायल कर दिया था । यह वानर घायल अवस्था में मुनि संघ के निकट पृथिवी पर भागते हुए गिर गया था । मुनियों के पंच-नमस्कार मंत्र का उपदेश देने से वानर मरकर महोदधिकुमार नामक भवनवासी देव हुआ । इस देव ने इसे कर्त्तव्य-बोध कराया । यह इस अपने गुरु के पास ले गया । वहाँ दोनों ने गुरु से धर्म का उपदेश सुना और अपना पूर्वभव ज्ञात किया । इससे इसे प्रबोध हुआ । अपने पुत्र सुकेश को अपना पद सौंप कर इसने दीक्षा ले ली तथा समाधिमरण के प्रभाव से उत्तम देव हुआ । इसकी दीक्षा के समाचार पाकर महोदधिकुमार ने भी विरक्त होकर दीक्षा ले ली । पद्मपुराण 6.223-350