विरुद्ध हेत्वाभास: Difference between revisions
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परीक्षामुख/6/29 <span class="SanskritText"> विपरीतनिश्चिताविनाभावो विरुद्धोऽपरिणामी शब्दः कुतकत्वात्।</span> = <span class="HindiText">जिस हेतु की व्याप्ति या अविनाभाव | परीक्षामुख/6/29 <span class="SanskritText"> विपरीतनिश्चिताविनाभावो विरुद्धोऽपरिणामी शब्दः कुतकत्वात्।</span> = <span class="HindiText">जिस हेतु की व्याप्ति या अविनाभाव संबंध साध्य से विपरीत के साथ निश्चित हो उसे विरुद्धहेत्वाभास कहते हैं। जैसे–शब्द परिणामी नहीं है, क्योंकि कृतक है। यहाँ पर कृतकत्व हेतु की व्याप्ति अपरिणामित्व से विपरीत परिणामित्व के साथ है, इसलिए कृतकत्व हेतु विरुद्धहेत्वाभास है। ( न्यायदीपिका/3/40/86; 61/101 )। </span><br /> | ||
न्यायविनिश्चय/ वृ./2/197/226/1<span class="SanskritText"> विरुद्धो नाम साध्यासंभव एव भावी।</span> = <span class="HindiText">जो हेतु अपने साध्य के प्रति | न्यायविनिश्चय/ वृ./2/197/226/1<span class="SanskritText"> विरुद्धो नाम साध्यासंभव एव भावी।</span> = <span class="HindiText">जो हेतु अपने साध्य के प्रति असंभव भावी है वह विरुद्ध कहलाता है। </span><br /> | ||
न्यायदीपिका/3/ ञ्च्21/70 <span class="SanskritText">विरुद्धं प्रत्यक्षादिबाधितम्।</span> = <span class="HindiText">प्रत्यक्षादिसे बाधित को विरुद्ध कहते हैं। </span><br /> | न्यायदीपिका/3/ ञ्च्21/70 <span class="SanskritText">विरुद्धं प्रत्यक्षादिबाधितम्।</span> = <span class="HindiText">प्रत्यक्षादिसे बाधित को विरुद्ध कहते हैं। </span><br /> | ||
न्या.सू/मू./1/2/3 <span class="SanskritText"> | न्या.सू/मू./1/2/3 <span class="SanskritText">सिद्धांतमभ्युपेत्य तद्विरोधी विरुद्धः। </span>= <span class="HindiText">जिस सिद्धांत को स्वीकार करके प्रवृत्त हो, उसी सिद्धांत का जो विरोधी (दूषक) हो वह, विरुद्ध हेत्वाभास है। ( श्लोकवार्तिक/4/ भाषा/1/33/न्या./273/426/16)। <br /> | ||
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न्यायविनिश्चय/ वृ./2/197/226/1 <span class="SanskritText">स च द्वेधा विपक्षव्यापी तदेकदेशवृत्तिश्चेति। तत्र तद्वयापि निरन्वयविनाशसाधनः, सत्त्वकृतकत्वादि तेन परिणामस्यैव तद्विपक्षस्यैव साधनात्, सर्वत्र च परिणामिनि भावात्। तदेकदेशवृत्तिः | न्यायविनिश्चय/ वृ./2/197/226/1 <span class="SanskritText">स च द्वेधा विपक्षव्यापी तदेकदेशवृत्तिश्चेति। तत्र तद्वयापि निरन्वयविनाशसाधनः, सत्त्वकृतकत्वादि तेन परिणामस्यैव तद्विपक्षस्यैव साधनात्, सर्वत्र च परिणामिनि भावात्। तदेकदेशवृत्तिः प्रयत्नानंतरीयकत्वश्रावणत्वादिः तस्य तत्साधनस्यापि विद्युदादौ परिणामिन्यप्यभावात्। </span>=<span class="HindiText"> विरुद्ध हेत्वाभास दो प्रकार का है-विपक्ष व्यापी और तदेकदेशवृत्ति। निरन्वय विनाश के साधन सत्त्व, कृतकत्व आदि विपक्षव्यापी हैं। क्योंकि उनसे निरन्वय विनाश के विपक्षी परिणाम की ही सिद्धि होती है, सभी परिणामी वस्तुओं में सत्त्व पाया जाता है। तदेक-देशवृत्ति इस प्रकार है जैसे कि उसी शब्द को नित्य सिद्ध करने के लिए दिया गया प्रयत्नानंतरीयकत्व व श्रावणत्व हेतु, क्योंकि विद्युत आदि अनित्य पदार्थों में भी उसका अभाव है। </span></li> | ||
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Revision as of 16:35, 19 August 2020
- विरुद्ध हेत्वाभास
परीक्षामुख/6/29 विपरीतनिश्चिताविनाभावो विरुद्धोऽपरिणामी शब्दः कुतकत्वात्। = जिस हेतु की व्याप्ति या अविनाभाव संबंध साध्य से विपरीत के साथ निश्चित हो उसे विरुद्धहेत्वाभास कहते हैं। जैसे–शब्द परिणामी नहीं है, क्योंकि कृतक है। यहाँ पर कृतकत्व हेतु की व्याप्ति अपरिणामित्व से विपरीत परिणामित्व के साथ है, इसलिए कृतकत्व हेतु विरुद्धहेत्वाभास है। ( न्यायदीपिका/3/40/86; 61/101 )।
न्यायविनिश्चय/ वृ./2/197/226/1 विरुद्धो नाम साध्यासंभव एव भावी। = जो हेतु अपने साध्य के प्रति असंभव भावी है वह विरुद्ध कहलाता है।
न्यायदीपिका/3/ ञ्च्21/70 विरुद्धं प्रत्यक्षादिबाधितम्। = प्रत्यक्षादिसे बाधित को विरुद्ध कहते हैं।
न्या.सू/मू./1/2/3 सिद्धांतमभ्युपेत्य तद्विरोधी विरुद्धः। = जिस सिद्धांत को स्वीकार करके प्रवृत्त हो, उसी सिद्धांत का जो विरोधी (दूषक) हो वह, विरुद्ध हेत्वाभास है। ( श्लोकवार्तिक/4/ भाषा/1/33/न्या./273/426/16)।
- भेद व उनके लक्षण
न्यायविनिश्चय/ वृ./2/197/226/1 स च द्वेधा विपक्षव्यापी तदेकदेशवृत्तिश्चेति। तत्र तद्वयापि निरन्वयविनाशसाधनः, सत्त्वकृतकत्वादि तेन परिणामस्यैव तद्विपक्षस्यैव साधनात्, सर्वत्र च परिणामिनि भावात्। तदेकदेशवृत्तिः प्रयत्नानंतरीयकत्वश्रावणत्वादिः तस्य तत्साधनस्यापि विद्युदादौ परिणामिन्यप्यभावात्। = विरुद्ध हेत्वाभास दो प्रकार का है-विपक्ष व्यापी और तदेकदेशवृत्ति। निरन्वय विनाश के साधन सत्त्व, कृतकत्व आदि विपक्षव्यापी हैं। क्योंकि उनसे निरन्वय विनाश के विपक्षी परिणाम की ही सिद्धि होती है, सभी परिणामी वस्तुओं में सत्त्व पाया जाता है। तदेक-देशवृत्ति इस प्रकार है जैसे कि उसी शब्द को नित्य सिद्ध करने के लिए दिया गया प्रयत्नानंतरीयकत्व व श्रावणत्व हेतु, क्योंकि विद्युत आदि अनित्य पदार्थों में भी उसका अभाव है।