व्रत प्रतिमा: Difference between revisions
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<p> | <p> रत्नकरंड श्रावकाचार/138 <span class="SanskritGatha"> निरतिक्रमणमणुव्रतपंचकमपि शीलसप्तकं चापि। धारयते निःशल्यो योऽसौ व्रतिनां मतो व्रतिकः।138। </span>= <span class="HindiText">जो शल्य रहित होता हुआ अतिचार रहित पाँचों अणुव्रतों को तथा शील सप्तक अर्थात् तीन गुणव्रतों और चार शिक्षव्रतों को भी धारण करता है, ऐसा पुरुष व्रतप्रतिमा का धारी माना गया है। (व.श्रा./207); (का.आ./मू./ 330); ( द्रव्यसंग्रह टीका/45/195/4 )। <br /> | ||
सागार धर्मामृत/4/1-64 का भावार्थ–पूर्ण सम्यग्दर्शन व मूल गुणों सहित निरतिचार उत्तर गुणों को धारण करने वाला व्रतिक श्रावक है।1। तहाँ <strong>अहिंसाणुव्रत</strong>–गौ आदि का वाणिज्य छोड़े। यह न हो सके तो उनका | सागार धर्मामृत/4/1-64 का भावार्थ–पूर्ण सम्यग्दर्शन व मूल गुणों सहित निरतिचार उत्तर गुणों को धारण करने वाला व्रतिक श्रावक है।1। तहाँ <strong>अहिंसाणुव्रत</strong>–गौ आदि का वाणिज्य छोड़े। यह न हो सके तो उनका बंधनादि न करे। यह भी संभव न हो तो निर्दयता से बंधन आदि न करे।16। कषायवश कदाचित् अतिचार लगते हैं।17। रात्रि भोजन का पूर्ण त्याग करता है।27। अंतराय टालकर भोजन करता है।30। भोजन के समय।34। व अन्य आवश्यक क्रियाओं के समय मौन रखता है।38। <strong>सत्याणुव्रत–</strong>झूठ नहीं बोलता, झूठी गवाही नहीं देता, धरोहर संबंधी झूठ नहीं बोलता, परंतु स्वपर आपदा के समय झूठ बोलता है।39। सत्य-सत्य, असत्यसत्य, सत्यासत्य तो बोलता है पर असत्यासत्य नहीं बोलता।40। सावद्य वचन व पाँचों अतिचारों का त्याग करता है।45। <strong>अचौर्याणुव्रत–</strong>कहीं पर भी गड़ा हुआ या पड़ा हुआ धन आदि अदत्त ग्रहण नहीं करता।48। अपने धन में भी संशय हो जाने पर उसे ग्रहण नहीं करता।49। अतिचारों का त्याग करता है।50। <strong>ब्रह्मचर्याणुव्रत–</strong>स्वदार के अतिरिक्त अन्य सब स्त्रियों का त्याग करता है।51-52। इस व्रत के पाँचों अतिचारों का त्याग करता है।58। <strong>परिग्रहपरिमाणव्रत–</strong>एक घर या खेत के साथ अन्य घर या खेत जोड़कर उन्हें एक गिनना, एक गाय रखने के लिए गर्भवती रखना, अपना अधिक धन संबंधियों को दे देना इत्यादि क्रियाओं का त्याग करता है।64। <br /> | ||
सागार धर्मामृत/5/15-23 भोगोपभोग परिमाण व्रत के | सागार धर्मामृत/5/15-23 भोगोपभोग परिमाण व्रत के अंतर्गत सर्व अभक्ष्य का त्याग करता है।15-19। 15 प्रकार के खर कर्मों का त्याग करता है।21-23। <br /> | ||
सागार धर्मामृत/6/18-26 अनवद्य व्यापार करे।18। उद्यान में भोजन करना, पुष्प तोड़ना आदि का त्याग करे।20। अनेक प्रकार के पूजन विधान आदि करे।23। दान देने के पश्चात् स्वयं भोजन करे।24। आगम चर्चा करे ।26। <br /> | सागार धर्मामृत/6/18-26 अनवद्य व्यापार करे।18। उद्यान में भोजन करना, पुष्प तोड़ना आदि का त्याग करे।20। अनेक प्रकार के पूजन विधान आदि करे।23। दान देने के पश्चात् स्वयं भोजन करे।24। आगम चर्चा करे ।26। <br /> | ||
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<li><span class="HindiText"> व्रत व अन्य प्रतिमाओं में | <li><span class="HindiText"> व्रत व अन्य प्रतिमाओं में अंतर–देखें [[ वह वह नाम ]]। </span></li> | ||
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Revision as of 16:37, 19 August 2020
रत्नकरंड श्रावकाचार/138 निरतिक्रमणमणुव्रतपंचकमपि शीलसप्तकं चापि। धारयते निःशल्यो योऽसौ व्रतिनां मतो व्रतिकः।138। = जो शल्य रहित होता हुआ अतिचार रहित पाँचों अणुव्रतों को तथा शील सप्तक अर्थात् तीन गुणव्रतों और चार शिक्षव्रतों को भी धारण करता है, ऐसा पुरुष व्रतप्रतिमा का धारी माना गया है। (व.श्रा./207); (का.आ./मू./ 330); ( द्रव्यसंग्रह टीका/45/195/4 )।
सागार धर्मामृत/4/1-64 का भावार्थ–पूर्ण सम्यग्दर्शन व मूल गुणों सहित निरतिचार उत्तर गुणों को धारण करने वाला व्रतिक श्रावक है।1। तहाँ अहिंसाणुव्रत–गौ आदि का वाणिज्य छोड़े। यह न हो सके तो उनका बंधनादि न करे। यह भी संभव न हो तो निर्दयता से बंधन आदि न करे।16। कषायवश कदाचित् अतिचार लगते हैं।17। रात्रि भोजन का पूर्ण त्याग करता है।27। अंतराय टालकर भोजन करता है।30। भोजन के समय।34। व अन्य आवश्यक क्रियाओं के समय मौन रखता है।38। सत्याणुव्रत–झूठ नहीं बोलता, झूठी गवाही नहीं देता, धरोहर संबंधी झूठ नहीं बोलता, परंतु स्वपर आपदा के समय झूठ बोलता है।39। सत्य-सत्य, असत्यसत्य, सत्यासत्य तो बोलता है पर असत्यासत्य नहीं बोलता।40। सावद्य वचन व पाँचों अतिचारों का त्याग करता है।45। अचौर्याणुव्रत–कहीं पर भी गड़ा हुआ या पड़ा हुआ धन आदि अदत्त ग्रहण नहीं करता।48। अपने धन में भी संशय हो जाने पर उसे ग्रहण नहीं करता।49। अतिचारों का त्याग करता है।50। ब्रह्मचर्याणुव्रत–स्वदार के अतिरिक्त अन्य सब स्त्रियों का त्याग करता है।51-52। इस व्रत के पाँचों अतिचारों का त्याग करता है।58। परिग्रहपरिमाणव्रत–एक घर या खेत के साथ अन्य घर या खेत जोड़कर उन्हें एक गिनना, एक गाय रखने के लिए गर्भवती रखना, अपना अधिक धन संबंधियों को दे देना इत्यादि क्रियाओं का त्याग करता है।64।
सागार धर्मामृत/5/15-23 भोगोपभोग परिमाण व्रत के अंतर्गत सर्व अभक्ष्य का त्याग करता है।15-19। 15 प्रकार के खर कर्मों का त्याग करता है।21-23।
सागार धर्मामृत/6/18-26 अनवद्य व्यापार करे।18। उद्यान में भोजन करना, पुष्प तोड़ना आदि का त्याग करे।20। अनेक प्रकार के पूजन विधान आदि करे।23। दान देने के पश्चात् स्वयं भोजन करे।24। आगम चर्चा करे ।26।
- व्रत व अन्य प्रतिमाओं में अंतर–देखें वह वह नाम ।