अनगार: Difference between revisions
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[[मूलाचार]] / [[आचारवृत्ति]] / गाथा संख्या ८८६ समणोत्ति संजदोत्ति य रिसिमुणिसाधुत्ति वोदवरागो त्ति। णामाणि सुविहिदाणं अणगार भदंत दंतोत्ति ।।८८६।। < | <p class="SanskritPrakritSentence">[[मूलाचार]] / [[आचारवृत्ति]] / गाथा संख्या ८८६ समणोत्ति संजदोत्ति य रिसिमुणिसाधुत्ति वोदवरागो त्ति। णामाणि सुविहिदाणं अणगार भदंत दंतोत्ति ।।८८६।। </p> | ||
<p class="HindiSentence">= उत्तम चारित्रवाले मुनियों के ये नाम हैं - श्रमण, संयत, ऋषि, मुनि, साधु, वीतराग, अनगार, भदंत, दंत व यति।</p> | <p class="HindiSentence">= उत्तम चारित्रवाले मुनियों के ये नाम हैं - श्रमण, संयत, ऋषि, मुनि, साधु, वीतराग, अनगार, भदंत, दंत व यति।</p> | ||
[[चारित्तपाहुड़]] / मूल या टीका गाथा संख्या २० दुविहं संजमचरणं सायारं तह हवे निरायारं। सायारं सग्गंथे परिग्गहा रहिय खलु निरायारं ।।२०।। < | <p class="SanskritPrakritSentence">[[चारित्तपाहुड़]] / मूल या टीका गाथा संख्या २० दुविहं संजमचरणं सायारं तह हवे निरायारं। सायारं सग्गंथे परिग्गहा रहिय खलु निरायारं ।।२०।। </p> | ||
<p class="HindiSentence">= संयम चारित्र है सो दो प्रकार का होता है - सागर तथा निरागार या अनगार तहां सागार तो परिग्रह सहित श्रावक के होता है और निरागार परिग्रह रहित साधु के होता है।</p> | <p class="HindiSentence">= संयम चारित्र है सो दो प्रकार का होता है - सागर तथा निरागार या अनगार तहां सागार तो परिग्रह सहित श्रावक के होता है और निरागार परिग्रह रहित साधु के होता है।</p> | ||
दे.अगारी। चारित्र मोहनीय का उदय होनेपर जो परिणाम घरसे निवृत्त नहीं है वह भावागार कहा जाता है। वह जिसके है वह वनमें निवास करते हुए भी अगारी है और जिसके इस प्रकार का परिणाम नहीं है वह घरमें वास करते हुए भी अनगार है।<br> | दे.अगारी। चारित्र मोहनीय का उदय होनेपर जो परिणाम घरसे निवृत्त नहीं है वह भावागार कहा जाता है। वह जिसके है वह वनमें निवास करते हुए भी अगारी है और जिसके इस प्रकार का परिणाम नहीं है वह घरमें वास करते हुए भी अनगार है।<br> | ||
[[तत्त्वार्थसार]] अधिकार संख्या ४/७९ अनगारस्तथागारी स द्विधा परिकथ्यते। महाव्रतोऽनगारः स्यादगारी स्यादणुव्रतः ।।७९।। < | <p class="SanskritPrakritSentence">[[तत्त्वार्थसार]] अधिकार संख्या ४/७९ अनगारस्तथागारी स द्विधा परिकथ्यते। महाव्रतोऽनगारः स्यादगारी स्यादणुव्रतः ।।७९।। </p> | ||
<p class="HindiSentence">= वे व्रती अनगार तथा अगारी ऐसे दो प्रकार हैं। महाव्रतधारियों को अनगार कहते हैं।</p> | <p class="HindiSentence">= वे व्रती अनगार तथा अगारी ऐसे दो प्रकार हैं। महाव्रतधारियों को अनगार कहते हैं।</p> | ||
[[प्रवचनसार]] / [[ प्रवचनसार तात्पर्यवृत्ति | तात्पर्यवृत्ति ]] टीका / गाथा संख्या २४९ अनगाराः सामान्यसाधवः। कस्मात्। सर्वेषां सुख-दुःखादि विषये समतापरिणामोऽस्ति। < | <p class="SanskritPrakritSentence">[[प्रवचनसार]] / [[ प्रवचनसार तात्पर्यवृत्ति | तात्पर्यवृत्ति ]] टीका / गाथा संख्या २४९ अनगाराः सामान्यसाधवः। कस्मात्। सर्वेषां सुख-दुःखादि विषये समतापरिणामोऽस्ति। </p> | ||
<p class="HindiSentence">= अनगार सामान्य साधुओं को कहते हैं, क्योंकि, सर्व ही सुख व दुःख रूप विषयों में उनके समता परिणाम रहता है। </p> | <p class="HindiSentence">= अनगार सामान्य साधुओं को कहते हैं, क्योंकि, सर्व ही सुख व दुःख रूप विषयों में उनके समता परिणाम रहता है। </p> | ||
([[चारित्रसार]] पृष्ठ संख्या ४७/४)<br> | ([[चारित्रसार]] पृष्ठ संख्या ४७/४)<br> |
Revision as of 13:54, 24 May 2009
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा संख्या ८८६ समणोत्ति संजदोत्ति य रिसिमुणिसाधुत्ति वोदवरागो त्ति। णामाणि सुविहिदाणं अणगार भदंत दंतोत्ति ।।८८६।।
= उत्तम चारित्रवाले मुनियों के ये नाम हैं - श्रमण, संयत, ऋषि, मुनि, साधु, वीतराग, अनगार, भदंत, दंत व यति।
चारित्तपाहुड़ / मूल या टीका गाथा संख्या २० दुविहं संजमचरणं सायारं तह हवे निरायारं। सायारं सग्गंथे परिग्गहा रहिय खलु निरायारं ।।२०।।
= संयम चारित्र है सो दो प्रकार का होता है - सागर तथा निरागार या अनगार तहां सागार तो परिग्रह सहित श्रावक के होता है और निरागार परिग्रह रहित साधु के होता है।
दे.अगारी। चारित्र मोहनीय का उदय होनेपर जो परिणाम घरसे निवृत्त नहीं है वह भावागार कहा जाता है। वह जिसके है वह वनमें निवास करते हुए भी अगारी है और जिसके इस प्रकार का परिणाम नहीं है वह घरमें वास करते हुए भी अनगार है।
तत्त्वार्थसार अधिकार संख्या ४/७९ अनगारस्तथागारी स द्विधा परिकथ्यते। महाव्रतोऽनगारः स्यादगारी स्यादणुव्रतः ।।७९।।
= वे व्रती अनगार तथा अगारी ऐसे दो प्रकार हैं। महाव्रतधारियों को अनगार कहते हैं।
प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति टीका / गाथा संख्या २४९ अनगाराः सामान्यसाधवः। कस्मात्। सर्वेषां सुख-दुःखादि विषये समतापरिणामोऽस्ति।
= अनगार सामान्य साधुओं को कहते हैं, क्योंकि, सर्व ही सुख व दुःख रूप विषयों में उनके समता परिणाम रहता है।
(चारित्रसार पृष्ठ संख्या ४७/४)
- अनागार का विषय विस्तार – देखे साधु ।