सिंहनंदि: Difference between revisions
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<li> | <li>नंदि संघ बलात्कारगण की सूरत शाखा में मल्लिषेण के शिष्य और ब्र.नेमिदत्त के गुरु। लक्ष्मीचंद (ई.1518) के समय में मालवा के भट्टारक थे। आपकी प्रार्थना पर ही भट्टारक श्रुतसागर ने यशस्तिलक चंद्रिका नामक टीका लिखी थी। समय-वि.1556-1575 (ई.1499-1518)। (देखें [[ इतिहास#7.4 | इतिहास - 7.4]]); (यशस्तिलक चंपू टीका की अंतिम प्रशस्ति का अंत)।-देखें [[ इतिहास#7.4 | इतिहास - 7.4]]।</li> | ||
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Revision as of 16:39, 19 August 2020
- ई.1122 के दो शिलालेखों के अनुसार भानुनंदि के शिष्य आ.सिद्धनंदि योगींद्र गंग राजवंश की स्थापना में सहायक हुए थे। समय-ई.श.2। (ती./2/445)।
- नंदि संघ बलात्कारगण में भानुनंदि के शिष्य और वसुनंदि के गुरु। समय-शक 508-525 (ई.586-613)। (देखें इतिहास - 7.2)।
- सर्वनंदि कृत 'लोक विभाग' के संस्कृत रूपांतर के रचयिता। ( तिलोयपण्णत्ति/ प्र.12/H.L.Jain)।
- गंगवंशीय राजमल्ल के गुरु के गुरु थे। तथा उनके मंत्री चामुंडराय के गुरु अजितसेनाचार्य के गुरु थे। राजा मल के अनुसार इनका समय-वि.सं.1010-1030 (ई.953-973) आता है। (बाहुबलि चरित/श्लो.6911)।
- नंदि संघ बलात्कारगण की सूरत शाखा में मल्लिषेण के शिष्य और ब्र.नेमिदत्त के गुरु। लक्ष्मीचंद (ई.1518) के समय में मालवा के भट्टारक थे। आपकी प्रार्थना पर ही भट्टारक श्रुतसागर ने यशस्तिलक चंद्रिका नामक टीका लिखी थी। समय-वि.1556-1575 (ई.1499-1518)। (देखें इतिहास - 7.4); (यशस्तिलक चंपू टीका की अंतिम प्रशस्ति का अंत)।-देखें इतिहास - 7.4।
- पंच नमस्कार मंत्र माहात्म्य के कर्ता। समय-वि.श.16 (ई.श.16)।