अपूर्वार्थ: Difference between revisions
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([[परीक्षामुख]] परिच्छेद संख्या १/४-५)-अनिश्चितोऽपूर्वार्थ ।।४।। दृष्टोऽपि समारोपात्तादृक् ।।५।। < | <p class="SanskritPrakritSentence">([[परीक्षामुख]] परिच्छेद संख्या १/४-५)-अनिश्चितोऽपूर्वार्थ ।।४।। दृष्टोऽपि समारोपात्तादृक् ।।५।। </p> | ||
<p class="HindiSentence">= जो पदार्थ पूर्वमें किसी भी प्रमाण द्वारा निश्चित न हुआ हो उसे अपूर्वार्थ कहते हैं ।।४।। तथथा यदि किसी प्रमाणसे निर्णीत होनेके पश्चात् पुनः उसमें संशय, विपर्यय अथवा अनध्यवसाय हो जाये तो उसे भी अपूर्वार्थ समझना ।।५।।</p> | <p class="HindiSentence">= जो पदार्थ पूर्वमें किसी भी प्रमाण द्वारा निश्चित न हुआ हो उसे अपूर्वार्थ कहते हैं ।।४।। तथथा यदि किसी प्रमाणसे निर्णीत होनेके पश्चात् पुनः उसमें संशय, विपर्यय अथवा अनध्यवसाय हो जाये तो उसे भी अपूर्वार्थ समझना ।।५।।</p> | ||
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Revision as of 20:42, 24 May 2009
(परीक्षामुख परिच्छेद संख्या १/४-५)-अनिश्चितोऽपूर्वार्थ ।।४।। दृष्टोऽपि समारोपात्तादृक् ।।५।।
= जो पदार्थ पूर्वमें किसी भी प्रमाण द्वारा निश्चित न हुआ हो उसे अपूर्वार्थ कहते हैं ।।४।। तथथा यदि किसी प्रमाणसे निर्णीत होनेके पश्चात् पुनः उसमें संशय, विपर्यय अथवा अनध्यवसाय हो जाये तो उसे भी अपूर्वार्थ समझना ।।५।।