अर्थांतर: Difference between revisions
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( न्यायदर्शन सूत्र / मूल या टीका अध्याय 5-2/7) प्रकृतार्थादप्रतिसम्बन्धार्थ मर्थान्तरम्।= प्रकृत अर्थसे सम्बन्ध न रखनेवाले अर्थको अर्थान्तर निग्रहस्थान कहते हैं, उदाहरण जैसे कोई कहे कि शब्द नित्य है, अस्पर्शत्व होनेसे। हेतु किसे कहते हैं। `हि' धातुसे `तुनि' प्रत्यय करनेसे हेतु यह कृदन्त पद हुआ और नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात ये पद हैं। यह प्रकृत अर्थ से कुछ सम्बन्ध नहीं रखता।( श्लोकवार्तिक पुस्तक 4/न्या.191/380/7) | <p class="SanskritText">( न्यायदर्शन सूत्र / मूल या टीका अध्याय 5-2/7) प्रकृतार्थादप्रतिसम्बन्धार्थ मर्थान्तरम्।</p> | ||
<p class="HindiText">= प्रकृत अर्थसे सम्बन्ध न रखनेवाले अर्थको अर्थान्तर निग्रहस्थान कहते हैं, उदाहरण जैसे कोई कहे कि शब्द नित्य है, अस्पर्शत्व होनेसे। हेतु किसे कहते हैं। `हि' धातुसे `तुनि' प्रत्यय करनेसे हेतु यह कृदन्त पद हुआ और नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात ये पद हैं। यह प्रकृत अर्थ से कुछ सम्बन्ध नहीं रखता।</p> | |||
<p>( श्लोकवार्तिक पुस्तक 4/न्या.191/380/7)</p> | |||
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Revision as of 22:37, 22 July 2020
( न्यायदर्शन सूत्र / मूल या टीका अध्याय 5-2/7) प्रकृतार्थादप्रतिसम्बन्धार्थ मर्थान्तरम्।
= प्रकृत अर्थसे सम्बन्ध न रखनेवाले अर्थको अर्थान्तर निग्रहस्थान कहते हैं, उदाहरण जैसे कोई कहे कि शब्द नित्य है, अस्पर्शत्व होनेसे। हेतु किसे कहते हैं। `हि' धातुसे `तुनि' प्रत्यय करनेसे हेतु यह कृदन्त पद हुआ और नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात ये पद हैं। यह प्रकृत अर्थ से कुछ सम्बन्ध नहीं रखता।
( श्लोकवार्तिक पुस्तक 4/न्या.191/380/7)