छल: Difference between revisions
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<li><strong name="1" id="1"><span class="HindiText"> छल सामान्य का लक्षण</span></strong><br /> | <li><strong name="1" id="1"><span class="HindiText"> छल सामान्य का लक्षण</span></strong><br /> | ||
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1-2/10<span class="SanskritText"> वचनविघातोऽर्थविकल्पोपपत्त्या छलम् ।</span> =<span class="HindiText">वादी के वचन से दूसरा अर्थ कल्पनाकर उसके वचन में दोष देना छल है। ( राजवार्तिक/1/6/8/36/3 ); ( श्लोकवार्तिक 1/ न्या.278/430/19); ( सिद्धि विनिश्चय/ वृ./5/2/315/7); ( | न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1-2/10<span class="SanskritText"> वचनविघातोऽर्थविकल्पोपपत्त्या छलम् ।</span> =<span class="HindiText">वादी के वचन से दूसरा अर्थ कल्पनाकर उसके वचन में दोष देना छल है। ( राजवार्तिक/1/6/8/36/3 ); ( श्लोकवार्तिक 1/ न्या.278/430/19); ( सिद्धि विनिश्चय/ वृ./5/2/315/7); ( स्याद्वादमंजरी/10/111/19 ); (स.भ.त./79/11)<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> छल के भेद</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> छल के भेद</strong> </span><br /> | ||
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1-2/11 <span class="SanskritText">तत्त्रिविधं वाक्छलं सामान्यच्छलमुपचारच्छलं चेति।11।</span> =<span class="HindiText">वह तीन प्रकार का है–वाक्छल, सामान्य छल व उपचार छल। ( श्लोकवार्तिक/4/ न्या.278/430/21), ( सिद्धि विनिश्चय/ वृ./5/2/317/13); ( | न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1-2/11 <span class="SanskritText">तत्त्रिविधं वाक्छलं सामान्यच्छलमुपचारच्छलं चेति।11।</span> =<span class="HindiText">वह तीन प्रकार का है–वाक्छल, सामान्य छल व उपचार छल। ( श्लोकवार्तिक/4/ न्या.278/430/21), ( सिद्धि विनिश्चय/ वृ./5/2/317/13); ( स्याद्वादमंजरी/10/111/19 )<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3"> वाक्छल का लक्षण</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3"> वाक्छल का लक्षण</strong> </span><br /> | ||
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1-2/12 <span class="SanskritText">अविशेषाभिहितेऽर्थे | न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1-2/12 <span class="SanskritText">अविशेषाभिहितेऽर्थे वक्तुरभिप्रायादर्थांतरकल्पना वाक्छलम् । यथा</span>—<br> स्याद्वादमंजरी/10/111/21 <span class="SanskritText">नवकंबलोऽयं माणवक इति नूतनविवक्षया कथिते, परा संख्यामारोप्य निषेधति कुतोऽस्य नव कंबला: इति।</span> =<span class="HindiText">वक्ता के किसी साधारण शब्द के प्रयोग करने पर उसके विवक्षित अर्थ की जानबूझकर उपेक्षा कर अर्थांतर की कल्पना करके वक्ता के वचन के निषेध करने को वाक्छल कहते हैं। जैसे वक्ता ने कहा कि इस ब्राह्मण के पास नवकंबल है। यहाँ हम जानते हैं कि ‘नव’ कहने से वक्ता का अभिप्राय नूतन से है, फिर भी दुर्भावना से उसके वचनों का निषेध करने के लिए हम ‘नव’ शब्द का अर्थ ‘नौ संख्या‘ करके पूछते हैं कि इस ब्राह्मण के पास नौ कंबल कहाँ हैं। ( श्लोकवार्तिक 4/ न्या.279/431/12), ( सिद्धि विनिश्चय/ वृ./5/2/317/14) </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="4" id="4"> सामान्य छल का लक्षण</strong></span><br> | <li><span class="HindiText"><strong name="4" id="4"> सामान्य छल का लक्षण</strong></span><br> | ||
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1-2/13/50<span class="SanskritText"> संभवतोऽर्थस्यातिसामान्ययोगादसंभूतार्थकल्पना सामान्यच्छलम् ।12।</span> न्यायदर्शन सूत्र/ भा./1-2/13/50/4 <span class="SanskritText">अहो खल्वसौ ब्राह्मणो विद्याचरणसंपन्न इत्युत्ते कश्चिदाह संभवति ब्राह्मणे विद्याचरणसंपदिति। अस्य वचनस्य विघातोऽर्थविकल्पोपपत्त्या सभूतार्थकल्पनया क्रियते। यदि ब्राह्मणे विद्याचरणसंपत्संभवति व्रात्येऽपि संभवेत् व्रात्योऽपि ब्राह्मण: सोऽप्यस्तु विद्याचरणसंपन्न इति। </span>=<span class="HindiText"> | न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1-2/13/50<span class="SanskritText"> संभवतोऽर्थस्यातिसामान्ययोगादसंभूतार्थकल्पना सामान्यच्छलम् ।12।</span> न्यायदर्शन सूत्र/ भा./1-2/13/50/4 <span class="SanskritText">अहो खल्वसौ ब्राह्मणो विद्याचरणसंपन्न इत्युत्ते कश्चिदाह संभवति ब्राह्मणे विद्याचरणसंपदिति। अस्य वचनस्य विघातोऽर्थविकल्पोपपत्त्या सभूतार्थकल्पनया क्रियते। यदि ब्राह्मणे विद्याचरणसंपत्संभवति व्रात्येऽपि संभवेत् व्रात्योऽपि ब्राह्मण: सोऽप्यस्तु विद्याचरणसंपन्न इति। </span>=<span class="HindiText">संभावना मात्र से कही गयी बात को सामान्य नियम बनाकर वक्ता के वचनों के निषेध करने को सामान्यछल कहते हैं। जैसे ‘आश्चर्य है, कि यह ब्राह्मण विद्या और आचरण से युक्त है,’ यह कहकर कोई पुरुष ब्राह्मण की स्तुति करता है, इस पर कोई दूसरा पुरुष कहता है कि विद्या और आचरण का ब्राह्मण में होना स्वाभाविक है। यहाँ यद्यपि ब्राह्मणत्व का संभावनामात्र से कथन किया गया है, फिर भी छलवादी ब्राह्मण में विद्या और आचरण के होने के सामान्य नियम बना करके कहता है, कि यदि ब्राह्मण में विद्या और आचरण का होना स्वाभाविक है, तो विद्या और आचरण व्रात्य (पतित) ब्राह्मण में भी होना चाहिए, क्योंकि व्रात्यब्राह्मण भी ब्राह्मण है। ( श्लोकवार्तिक 4/ न्या.299/445/4), ( सिद्धि विनिश्चय/ वृ./5/2/317/19)</span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="5" id="5"> उपचारछल का लक्षण</strong> </span><br> न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1-2/14/51 <span class="SanskritText">धर्मविकल्पनिर्देशेऽर्थसद्भावप्रतिषेध उपचारच्छलम् ।14। </span><br> न्यायदर्शन सूत्र/ भा./1-2/14/51/7 <span class="SanskritText">यथा | <li><span class="HindiText"><strong name="5" id="5"> उपचारछल का लक्षण</strong> </span><br> न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1-2/14/51 <span class="SanskritText">धर्मविकल्पनिर्देशेऽर्थसद्भावप्रतिषेध उपचारच्छलम् ।14। </span><br> न्यायदर्शन सूत्र/ भा./1-2/14/51/7 <span class="SanskritText">यथा मंचा: क्रोशंतीति अर्थसद्भावेन प्रतिषेध:। मंचस्था: पुरुषा: क्रोशंति न तु मंचा: क्रोशंति। </span>=<span class="HindiText">उपचार अर्थ में मुख्य अर्थ का निषेध करके वक्ता के वचनों को निषेध करना उपचार छल है। जैसे कोई कहे, कि मंच रोते हैं, तो छलवादी उत्तर देता है, कहीं मंच जैसे अचेतन पदार्थ भी रो सकते हैं, अतएव यह कहना चाहिए कि मंच पर बैठे हुए आदमी रोते हैं। ( श्लोकवार्तिक 4/ न्या.302/448/21), ( सिद्धि विनिश्चय/ वृ./5/2/317/26) </span></li> | ||
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Revision as of 16:22, 19 August 2020
- छल सामान्य का लक्षण
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1-2/10 वचनविघातोऽर्थविकल्पोपपत्त्या छलम् । =वादी के वचन से दूसरा अर्थ कल्पनाकर उसके वचन में दोष देना छल है। ( राजवार्तिक/1/6/8/36/3 ); ( श्लोकवार्तिक 1/ न्या.278/430/19); ( सिद्धि विनिश्चय/ वृ./5/2/315/7); ( स्याद्वादमंजरी/10/111/19 ); (स.भ.त./79/11)
- छल के भेद
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1-2/11 तत्त्रिविधं वाक्छलं सामान्यच्छलमुपचारच्छलं चेति।11। =वह तीन प्रकार का है–वाक्छल, सामान्य छल व उपचार छल। ( श्लोकवार्तिक/4/ न्या.278/430/21), ( सिद्धि विनिश्चय/ वृ./5/2/317/13); ( स्याद्वादमंजरी/10/111/19 )
- वाक्छल का लक्षण
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1-2/12 अविशेषाभिहितेऽर्थे वक्तुरभिप्रायादर्थांतरकल्पना वाक्छलम् । यथा—
स्याद्वादमंजरी/10/111/21 नवकंबलोऽयं माणवक इति नूतनविवक्षया कथिते, परा संख्यामारोप्य निषेधति कुतोऽस्य नव कंबला: इति। =वक्ता के किसी साधारण शब्द के प्रयोग करने पर उसके विवक्षित अर्थ की जानबूझकर उपेक्षा कर अर्थांतर की कल्पना करके वक्ता के वचन के निषेध करने को वाक्छल कहते हैं। जैसे वक्ता ने कहा कि इस ब्राह्मण के पास नवकंबल है। यहाँ हम जानते हैं कि ‘नव’ कहने से वक्ता का अभिप्राय नूतन से है, फिर भी दुर्भावना से उसके वचनों का निषेध करने के लिए हम ‘नव’ शब्द का अर्थ ‘नौ संख्या‘ करके पूछते हैं कि इस ब्राह्मण के पास नौ कंबल कहाँ हैं। ( श्लोकवार्तिक 4/ न्या.279/431/12), ( सिद्धि विनिश्चय/ वृ./5/2/317/14) - सामान्य छल का लक्षण
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1-2/13/50 संभवतोऽर्थस्यातिसामान्ययोगादसंभूतार्थकल्पना सामान्यच्छलम् ।12। न्यायदर्शन सूत्र/ भा./1-2/13/50/4 अहो खल्वसौ ब्राह्मणो विद्याचरणसंपन्न इत्युत्ते कश्चिदाह संभवति ब्राह्मणे विद्याचरणसंपदिति। अस्य वचनस्य विघातोऽर्थविकल्पोपपत्त्या सभूतार्थकल्पनया क्रियते। यदि ब्राह्मणे विद्याचरणसंपत्संभवति व्रात्येऽपि संभवेत् व्रात्योऽपि ब्राह्मण: सोऽप्यस्तु विद्याचरणसंपन्न इति। =संभावना मात्र से कही गयी बात को सामान्य नियम बनाकर वक्ता के वचनों के निषेध करने को सामान्यछल कहते हैं। जैसे ‘आश्चर्य है, कि यह ब्राह्मण विद्या और आचरण से युक्त है,’ यह कहकर कोई पुरुष ब्राह्मण की स्तुति करता है, इस पर कोई दूसरा पुरुष कहता है कि विद्या और आचरण का ब्राह्मण में होना स्वाभाविक है। यहाँ यद्यपि ब्राह्मणत्व का संभावनामात्र से कथन किया गया है, फिर भी छलवादी ब्राह्मण में विद्या और आचरण के होने के सामान्य नियम बना करके कहता है, कि यदि ब्राह्मण में विद्या और आचरण का होना स्वाभाविक है, तो विद्या और आचरण व्रात्य (पतित) ब्राह्मण में भी होना चाहिए, क्योंकि व्रात्यब्राह्मण भी ब्राह्मण है। ( श्लोकवार्तिक 4/ न्या.299/445/4), ( सिद्धि विनिश्चय/ वृ./5/2/317/19) - उपचारछल का लक्षण
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1-2/14/51 धर्मविकल्पनिर्देशेऽर्थसद्भावप्रतिषेध उपचारच्छलम् ।14।
न्यायदर्शन सूत्र/ भा./1-2/14/51/7 यथा मंचा: क्रोशंतीति अर्थसद्भावेन प्रतिषेध:। मंचस्था: पुरुषा: क्रोशंति न तु मंचा: क्रोशंति। =उपचार अर्थ में मुख्य अर्थ का निषेध करके वक्ता के वचनों को निषेध करना उपचार छल है। जैसे कोई कहे, कि मंच रोते हैं, तो छलवादी उत्तर देता है, कहीं मंच जैसे अचेतन पदार्थ भी रो सकते हैं, अतएव यह कहना चाहिए कि मंच पर बैठे हुए आदमी रोते हैं। ( श्लोकवार्तिक 4/ न्या.302/448/21), ( सिद्धि विनिश्चय/ वृ./5/2/317/26)