जयद्रथ: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
―( | ―( पांडवपुराण/ सर्ग/श्लोक) कौरवों की तरफ से पांडवों के साथ लड़ा था। (19/53)। युद्ध में अभिमन्यु को अन्याय पूर्वक मारा (20/30)। अर्जुन की जयद्रथ वध की प्रतिज्ञा से भयभीत हो जाने पर (20/68) द्रोणाचार्य ने धैर्य बँधाया (20/68)। अंत में अर्जुन द्वारा मारा गया। (20/168)। | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 12: | Line 12: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p id="1">(1) | <p id="1">(1) धातकीखंड द्वीप में स्थित पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी के राजा जयंधर और उसकी रानी जयवती का पुत्र । यह जीवंधर के तीसरे पूर्वभव का जीव था । इसने कौतुकवश एक हंस के बच्चे को पकड़ लिया था किंतु अपनी माता के कुपित होने पर सोलहवें दिन इसने उसे छोड़ भी दिया था । जीवंधर की पर्याय में इसी कारण सोलह वर्ष तक भाई-बंधुओं से इसका वियोग हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 75.533-548 </span></p> | ||
<p id="2">(2) | <p id="2">(2) जरासंध का एक योद्धा । जयार्द्रकुमार इसका दूसरा नाम था । इसने कौरवों की ओर से पांडवों के साथ युद्ध किया था । इसके रथ के घोड़े लाल रंग के थे । ध्वजाएँ शकूरों से अंकित थी । द्रोणाचार्य के यह कहने पर कि अभिमन्यु को सब वीर मिलकर मारें इसने न्याय क्रम का उल्लंघन कर अभिमन्यु का वध किया था । पुत्रवध से दु:खी होकर अर्जुन ने शासन देवी से धनुष बाण प्राप्त किये तथा युद्ध में उनसे इसका मस्तक काट कर वन में तप कर रहे इसके पिता के हाथ की अंजलि मे फेंक दिया था । <span class="GRef"> महापुराण 71.78, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 19.53, 176, 2.030-31, 173-175 </span></p> | ||
Revision as of 16:23, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से == ―( पांडवपुराण/ सर्ग/श्लोक) कौरवों की तरफ से पांडवों के साथ लड़ा था। (19/53)। युद्ध में अभिमन्यु को अन्याय पूर्वक मारा (20/30)। अर्जुन की जयद्रथ वध की प्रतिज्ञा से भयभीत हो जाने पर (20/68) द्रोणाचार्य ने धैर्य बँधाया (20/68)। अंत में अर्जुन द्वारा मारा गया। (20/168)।
पुराणकोष से
(1) धातकीखंड द्वीप में स्थित पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी के राजा जयंधर और उसकी रानी जयवती का पुत्र । यह जीवंधर के तीसरे पूर्वभव का जीव था । इसने कौतुकवश एक हंस के बच्चे को पकड़ लिया था किंतु अपनी माता के कुपित होने पर सोलहवें दिन इसने उसे छोड़ भी दिया था । जीवंधर की पर्याय में इसी कारण सोलह वर्ष तक भाई-बंधुओं से इसका वियोग हुआ था । महापुराण 75.533-548
(2) जरासंध का एक योद्धा । जयार्द्रकुमार इसका दूसरा नाम था । इसने कौरवों की ओर से पांडवों के साथ युद्ध किया था । इसके रथ के घोड़े लाल रंग के थे । ध्वजाएँ शकूरों से अंकित थी । द्रोणाचार्य के यह कहने पर कि अभिमन्यु को सब वीर मिलकर मारें इसने न्याय क्रम का उल्लंघन कर अभिमन्यु का वध किया था । पुत्रवध से दु:खी होकर अर्जुन ने शासन देवी से धनुष बाण प्राप्त किये तथा युद्ध में उनसे इसका मस्तक काट कर वन में तप कर रहे इसके पिता के हाथ की अंजलि मे फेंक दिया था । महापुराण 71.78, पांडवपुराण 19.53, 176, 2.030-31, 173-175