अभियोगी भावना: Difference between revisions
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([[भगवती आराधना]] / मुल या टीका गाथा संख्या ९२) मंताभिओगकोदुगभूदीयम्मं पउंजदे जो हु। इड्ढिरससादहेदुं अभिओगं भावणं कुणइ ।।१८२।।< | <p class="SanskritPrakritSentence">([[भगवती आराधना]] / मुल या टीका गाथा संख्या ९२) मंताभिओगकोदुगभूदीयम्मं पउंजदे जो हु। इड्ढिरससादहेदुं अभिओगं भावणं कुणइ ।।१८२।।</p> | ||
<p class="HindiSentence">= मन्त्र प्रयोग करना, कौतुककारक अकाल वृष्टि आदि करना तथा ऋद्धि, रस व सात गौरवयुक्त अन्य इसी प्रकारके कार्य करना मुनिके लिए अभियोगी भावना कहलाती है।</p> | <p class="HindiSentence">= मन्त्र प्रयोग करना, कौतुककारक अकाल वृष्टि आदि करना तथा ऋद्धि, रस व सात गौरवयुक्त अन्य इसी प्रकारके कार्य करना मुनिके लिए अभियोगी भावना कहलाती है।</p> | ||
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Revision as of 21:14, 24 May 2009
(भगवती आराधना / मुल या टीका गाथा संख्या ९२) मंताभिओगकोदुगभूदीयम्मं पउंजदे जो हु। इड्ढिरससादहेदुं अभिओगं भावणं कुणइ ।।१८२।।
= मन्त्र प्रयोग करना, कौतुककारक अकाल वृष्टि आदि करना तथा ऋद्धि, रस व सात गौरवयुक्त अन्य इसी प्रकारके कार्य करना मुनिके लिए अभियोगी भावना कहलाती है।