अपान: Difference between revisions
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<p class="SanskritText">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 5/19/288 आत्मना बाह्यो | <p class="SanskritText">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 5/19/288 आत्मना बाह्यो वायुरभ्यंतरीक्रियमाणो निःश्वासलक्षणोऽपान इत्याख्यायते।</p> | ||
<p class="HindiText">= आत्मा जिस बाहरी वायुको भीतर करता है निःश्वास लक्षण उस वायुको अपान कहते हैं।</p> | <p class="HindiText">= आत्मा जिस बाहरी वायुको भीतर करता है निःश्वास लक्षण उस वायुको अपान कहते हैं।</p> | ||
<p>(राजवार्तिक अध्याय 5/19/36/473) ( गोम्मट्टसार | <p>(राजवार्तिक अध्याय 5/19/36/473) ( गोम्मट्टसार जीवकांड / गोम्मट्टसार जीवकांड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 606/1062/12)।</p> | ||
Revision as of 16:17, 19 August 2020
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 5/19/288 आत्मना बाह्यो वायुरभ्यंतरीक्रियमाणो निःश्वासलक्षणोऽपान इत्याख्यायते।
= आत्मा जिस बाहरी वायुको भीतर करता है निःश्वास लक्षण उस वायुको अपान कहते हैं।
(राजवार्तिक अध्याय 5/19/36/473) ( गोम्मट्टसार जीवकांड / गोम्मट्टसार जीवकांड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 606/1062/12)।