अपूर्वस्पर्धक: Difference between revisions
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<span class="GRef">क्षपणासार/466/542 </span><p class="HindiText">चारित्रमोह की क्षपणा विधि में सभी प्रकृतियों के द्रव्य में से कुछ निषेकों के अनुभाग को अपकर्षण द्वारा घटाकर अनंत गुणा घटता करै है। अर्थात् उन उनके योग्य पूर्व स्पर्धकों में जो सर्व जघन्य अनुभाग के स्पर्धक संसार अवस्था विषै पहिले थे। उनसे भी अनंत गुणा घटता (अनुभाग जो पहले कभी प्राप्त नहीं हुआ था) सहित अपूर्व स्पर्धक की रचना करै है। तहाँ पूर्व स्पर्धकनि की जघन्य वर्गणा से भी अपूर्व स्पर्धक की उत्कृष्ट वर्गणा विषै अनुभाग अनंत भाग मात्र है। ऐसे अपूर्व स्पर्धकों का प्रमाण अनंत होता है। तहाँ अपूर्व स्पर्धकों में भी जघन्य अनुभाग में उत्कृष्ट अनुभाग अनंतगुणा है। अश्वकर्ण करण के प्रथम समय से लगाय उसके अंतिम समय पर्यंत बराबर यह अपूर्व स्पर्धक बनाने का कार्य चलता रहता है। अर्थात् अश्वकर्ण का अंतर्मुहूर्त प्रमाण काल ही इसकी विधि का काल है। इसके ऊपर कृष्टिकरण का काल प्रारंभ होता है।</p> (<span class="GRef"> क्षपणासार/487</span> )। | |||
<p class="HindiText">-देखें [[ स्पर्धक ]]।</p> | |||
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Revision as of 15:21, 24 December 2022
क्षपणासार/466/542
चारित्रमोह की क्षपणा विधि में सभी प्रकृतियों के द्रव्य में से कुछ निषेकों के अनुभाग को अपकर्षण द्वारा घटाकर अनंत गुणा घटता करै है। अर्थात् उन उनके योग्य पूर्व स्पर्धकों में जो सर्व जघन्य अनुभाग के स्पर्धक संसार अवस्था विषै पहिले थे। उनसे भी अनंत गुणा घटता (अनुभाग जो पहले कभी प्राप्त नहीं हुआ था) सहित अपूर्व स्पर्धक की रचना करै है। तहाँ पूर्व स्पर्धकनि की जघन्य वर्गणा से भी अपूर्व स्पर्धक की उत्कृष्ट वर्गणा विषै अनुभाग अनंत भाग मात्र है। ऐसे अपूर्व स्पर्धकों का प्रमाण अनंत होता है। तहाँ अपूर्व स्पर्धकों में भी जघन्य अनुभाग में उत्कृष्ट अनुभाग अनंतगुणा है। अश्वकर्ण करण के प्रथम समय से लगाय उसके अंतिम समय पर्यंत बराबर यह अपूर्व स्पर्धक बनाने का कार्य चलता रहता है। अर्थात् अश्वकर्ण का अंतर्मुहूर्त प्रमाण काल ही इसकी विधि का काल है। इसके ऊपर कृष्टिकरण का काल प्रारंभ होता है।
( क्षपणासार/487 )।
-देखें स्पर्धक ।