अमेचक: Difference between revisions
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<p class="SanskritText">समयसार / आत्मख्याति गाथा 16/क.18 परमार्थेन तु व्यक्तज्ञातृत्वज्योतिषैककः। | <p class="SanskritText">समयसार / आत्मख्याति गाथा 16/क.18 परमार्थेन तु व्यक्तज्ञातृत्वज्योतिषैककः। सर्वभावांतरध्वंसिस्वभावत्वादमेचकः ॥18॥</p> | ||
<p class="HindiText">= शुद्ध निश्चयनयसे देखा जाये तो प्रगट ज्ञायकत्व ज्योतिमात्रसे आत्मा एक स्वरूप है। क्योंकि शुद्ध द्रव्यार्थिक नयसे सर्व अन्य द्रव्यके स्वभाव तथा अन्यके निमित्तके होनेवाले विभावोंको दूर करनेरूप उसका स्वभाव है। इसलिए वह अमेचक है-शुद्ध एकाकार है।</p> | <p class="HindiText">= शुद्ध निश्चयनयसे देखा जाये तो प्रगट ज्ञायकत्व ज्योतिमात्रसे आत्मा एक स्वरूप है। क्योंकि शुद्ध द्रव्यार्थिक नयसे सर्व अन्य द्रव्यके स्वभाव तथा अन्यके निमित्तके होनेवाले विभावोंको दूर करनेरूप उसका स्वभाव है। इसलिए वह अमेचक है-शुद्ध एकाकार है।</p> | ||
Revision as of 16:17, 19 August 2020
समयसार / आत्मख्याति गाथा 16/क.18 परमार्थेन तु व्यक्तज्ञातृत्वज्योतिषैककः। सर्वभावांतरध्वंसिस्वभावत्वादमेचकः ॥18॥
= शुद्ध निश्चयनयसे देखा जाये तो प्रगट ज्ञायकत्व ज्योतिमात्रसे आत्मा एक स्वरूप है। क्योंकि शुद्ध द्रव्यार्थिक नयसे सर्व अन्य द्रव्यके स्वभाव तथा अन्यके निमित्तके होनेवाले विभावोंको दूर करनेरूप उसका स्वभाव है। इसलिए वह अमेचक है-शुद्ध एकाकार है।