अवगाहन: Difference between revisions
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<p class="SanskritText">कार्तिकेयानुप्रेक्षा / मूल या टीका गाथा 214-215 सव्वाणं दव्वाणं अवगाहणसत्ति अत्थि परमत्थं। जहभसमपाणियाणं जीव पएसाण बहुयाणं ॥214॥ जदि ण हवदि सा सत्ती सहावभूदा हि सव्वदव्वाणं। एक्केक्कासपएसे कहं ता सव्वाणि वट्टंति ॥215॥</p> | <p class="SanskritText">कार्तिकेयानुप्रेक्षा / मूल या टीका गाथा 214-215 सव्वाणं दव्वाणं अवगाहणसत्ति अत्थि परमत्थं। जहभसमपाणियाणं जीव पएसाण बहुयाणं ॥214॥ जदि ण हवदि सा सत्ती सहावभूदा हि सव्वदव्वाणं। एक्केक्कासपएसे कहं ता सव्वाणि वट्टंति ॥215॥</p> | ||
<p class="HindiText">= वास्तवमें सभी द्रव्योंमें अवकाश देनेकी शक्ति है। जैसे भस्ममें और जलमें अवगाहन शक्ति है, वैसे ही जीवके असंख्यात प्रदेशोंमें जानो ॥214॥ यदि सब द्रव्योंमें स्वभावभूत अवगाहन शक्ति न होती हो एक आकाशके प्रदेशोंमें सब द्रव्य कैसे रहते ॥215॥</p> | <p class="HindiText">= वास्तवमें सभी द्रव्योंमें अवकाश देनेकी शक्ति है। जैसे भस्ममें और जलमें अवगाहन शक्ति है, वैसे ही जीवके असंख्यात प्रदेशोंमें जानो ॥214॥ यदि सब द्रव्योंमें स्वभावभूत अवगाहन शक्ति न होती हो एक आकाशके प्रदेशोंमें सब द्रव्य कैसे रहते ॥215॥</p> | ||
<p class="SanskritText">पंचाध्यायी / पूर्वार्ध श्लोक 186,181 यत्तत्तविसदृशत्वं जातेरनतिक्रमात् क्रमादेव। अवगाहनगुणयोगाद्देशांशानां सतामेव ॥186॥ अंशानामवगाहे | <p class="SanskritText">पंचाध्यायी / पूर्वार्ध श्लोक 186,181 यत्तत्तविसदृशत्वं जातेरनतिक्रमात् क्रमादेव। अवगाहनगुणयोगाद्देशांशानां सतामेव ॥186॥ अंशानामवगाहे दृष्टांतः स्वांशसंस्थितं ज्ञानम्। अतिरिक्तं न्यूनं वा ज्ञेयाकृति तन्मयान्न तु स्वांशैः ॥181॥</p> | ||
<p class="HindiText">= जो उन परिणामोंमें विसदृशता होती रहती है, वह केवल सत्के अंशोंके तदवस्थ रहते हुए भी, अपनी-अपनी जातिको उल्लंघन न करके, उस देशके अंशोंमें ही क्रम पूर्वक आकारसे | <p class="HindiText">= जो उन परिणामोंमें विसदृशता होती रहती है, वह केवल सत्के अंशोंके तदवस्थ रहते हुए भी, अपनी-अपनी जातिको उल्लंघन न करके, उस देशके अंशोंमें ही क्रम पूर्वक आकारसे आकारांतर होनेसे होती है, जो कि अवगाहन गुणके निमित्त से होती है ॥186॥ जैसे कि ज्ञान अपने अंशोंसे ही अधिक न होते हुए भी, ज्ञेयाकार होनेके कारण हीन अधिक होता है ॥181॥</p> | ||
<p>2. सिद्धोंका अवगाहन गुण- </p> | <p>2. सिद्धोंका अवगाहन गुण- </p> | ||
<p class="SanskritText">परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 61/13 एक जीवावगाहप्रदेश | <p class="SanskritText">परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 61/13 एक जीवावगाहप्रदेश अनंतजीववगाहदानसामर्थ्यंमवगाहनत्वं भण्यते।</p> | ||
<p class="HindiText">= एक जीव के अवगाह क्षेत्रमें | <p class="HindiText">= एक जीव के अवगाह क्षेत्रमें अनंते जीव समा जायें, ऐसी अवकाश देनेकी सामर्थ्य अवगाहनगुण है।</p> | ||
<p class="SanskritText">द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 14/43/1 एकदीपप्रकाशे नानादीपप्रकाशवदेकसिद्धक्षेत्रे | <p class="SanskritText">द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 14/43/1 एकदीपप्रकाशे नानादीपप्रकाशवदेकसिद्धक्षेत्रे संकरव्यतिकरदोषपरिहारेणानंतसिद्धावकाशदानसामर्थ्यमवगाहनगुणो भण्यते।</p> | ||
<p class="HindiText">= एक दीपके प्रकाशमें जैसे अनेक दीपोंका प्रकाश समा जाता है उसी तरह एक सिद्धके क्षेत्रमें संकर तथा व्यतिकर दोषसे रहित जो | <p class="HindiText">= एक दीपके प्रकाशमें जैसे अनेक दीपोंका प्रकाश समा जाता है उसी तरह एक सिद्धके क्षेत्रमें संकर तथा व्यतिकर दोषसे रहित जो अनंत सिद्धोंको अवकाश देनेकी सामर्थ्य है वह अवगाहन गुण है।</p> | ||
<p>• अवगाहन गुणकी सिद्धि व लोकाकाशमें इसका महत्त्व-देखें [[ आकाश#3 | आकाश - 3]]।</p> | <p>• अवगाहन गुणकी सिद्धि व लोकाकाशमें इसका महत्त्व-देखें [[ आकाश#3 | आकाश - 3]]।</p> | ||
Revision as of 16:18, 19 August 2020
1. सर्व द्रव्योंमें अवगाहन गुण :
कार्तिकेयानुप्रेक्षा / मूल या टीका गाथा 214-215 सव्वाणं दव्वाणं अवगाहणसत्ति अत्थि परमत्थं। जहभसमपाणियाणं जीव पएसाण बहुयाणं ॥214॥ जदि ण हवदि सा सत्ती सहावभूदा हि सव्वदव्वाणं। एक्केक्कासपएसे कहं ता सव्वाणि वट्टंति ॥215॥
= वास्तवमें सभी द्रव्योंमें अवकाश देनेकी शक्ति है। जैसे भस्ममें और जलमें अवगाहन शक्ति है, वैसे ही जीवके असंख्यात प्रदेशोंमें जानो ॥214॥ यदि सब द्रव्योंमें स्वभावभूत अवगाहन शक्ति न होती हो एक आकाशके प्रदेशोंमें सब द्रव्य कैसे रहते ॥215॥
पंचाध्यायी / पूर्वार्ध श्लोक 186,181 यत्तत्तविसदृशत्वं जातेरनतिक्रमात् क्रमादेव। अवगाहनगुणयोगाद्देशांशानां सतामेव ॥186॥ अंशानामवगाहे दृष्टांतः स्वांशसंस्थितं ज्ञानम्। अतिरिक्तं न्यूनं वा ज्ञेयाकृति तन्मयान्न तु स्वांशैः ॥181॥
= जो उन परिणामोंमें विसदृशता होती रहती है, वह केवल सत्के अंशोंके तदवस्थ रहते हुए भी, अपनी-अपनी जातिको उल्लंघन न करके, उस देशके अंशोंमें ही क्रम पूर्वक आकारसे आकारांतर होनेसे होती है, जो कि अवगाहन गुणके निमित्त से होती है ॥186॥ जैसे कि ज्ञान अपने अंशोंसे ही अधिक न होते हुए भी, ज्ञेयाकार होनेके कारण हीन अधिक होता है ॥181॥
2. सिद्धोंका अवगाहन गुण-
परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 61/13 एक जीवावगाहप्रदेश अनंतजीववगाहदानसामर्थ्यंमवगाहनत्वं भण्यते।
= एक जीव के अवगाह क्षेत्रमें अनंते जीव समा जायें, ऐसी अवकाश देनेकी सामर्थ्य अवगाहनगुण है।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 14/43/1 एकदीपप्रकाशे नानादीपप्रकाशवदेकसिद्धक्षेत्रे संकरव्यतिकरदोषपरिहारेणानंतसिद्धावकाशदानसामर्थ्यमवगाहनगुणो भण्यते।
= एक दीपके प्रकाशमें जैसे अनेक दीपोंका प्रकाश समा जाता है उसी तरह एक सिद्धके क्षेत्रमें संकर तथा व्यतिकर दोषसे रहित जो अनंत सिद्धोंको अवकाश देनेकी सामर्थ्य है वह अवगाहन गुण है।
• अवगाहन गुणकी सिद्धि व लोकाकाशमें इसका महत्त्व-देखें आकाश - 3।