कालानुयोग - ज्ञान मार्गणा: Difference between revisions
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<td width="164" valign="top"><p>8 वर्ष में दीक्षा लेकर शेष उत्कृष्ट आयु | <td width="164" valign="top"><p>8 वर्ष में दीक्षा लेकर शेष उत्कृष्ट आयु पर्यंत </p></td> | ||
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<td width="121" valign="top"><p>इतने काल पश्चात् मरण</p></td> | <td width="121" valign="top"><p>इतने काल पश्चात् मरण</p></td> | ||
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<td width="164" valign="top"><p> " (देखें [[ दर्शन#3.2 | दर्शन - 3.2]]) </p></td> | <td width="164" valign="top"><p> " (देखें [[ दर्शन#3.2 | दर्शन - 3.2]]) </p></td> | ||
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<td width="124" valign="top"><p>263-264</p></td> | <td width="124" valign="top"><p>263-264</p></td> | ||
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<td width="99" valign="top"><p> | <td width="99" valign="top"><p>अंतर्मु.</p></td> | ||
<td width="121" valign="top"><p>गुणस्थान परिवर्तन </p></td> | <td width="121" valign="top"><p>गुणस्थान परिवर्तन </p></td> | ||
<td width="119" valign="top"><p>33 सागर से | <td width="119" valign="top"><p>33 सागर से अंतर्मु.कम अंतर्मुहूर्त </p></td> | ||
<td width="164" valign="top"><p>सप्तम पृथिवी की अपेक्षा</p> | <td width="164" valign="top"><p>सप्तम पृथिवी की अपेक्षा</p> | ||
<p>मनुष्य तिर्यंच की अपेक्षा </p></td> | <p>मनुष्य तिर्यंच की अपेक्षा </p></td> | ||
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<td width="125" valign="top"><p> —</p></td> | <td width="125" valign="top"><p> —</p></td> | ||
<td width="115" valign="top"><p>4 अंत.कम 1 को.पू.</p></td> | <td width="115" valign="top"><p>4 अंत.कम 1 को.पू.</p></td> | ||
<td width="167" valign="top"><p>ओघ से 1 | <td width="167" valign="top"><p>ओघ से 1 अंतर्मु.और भी कम है। क्योंकि सम्यक्त्व अवधि धारने में 1 अंतर्मु. लगा </p></td> | ||
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Revision as of 16:21, 19 August 2020
7. <a name="3.7" id="3.7"></a>ज्ञान मार्गणा
मार्गणा |
गुणस्थान |
नाना जीवापेक्षया |
एक जीवापेक्षया |
||||||||||
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
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नं.1 |
नं.2 |
नं.1 |
नं.3 |
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|
|
सू. |
सू. |
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सू. |
सू. |
|
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|
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|
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|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
मति श्रुतअज्ञान |
|
|
31-32 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
133-135 |
अनंत |
अनादि अनंत व अनादि सांत |
अनंत |
जघन्यवत् |
मति श्रुतज्ञान सादि सांत |
|
|
31-32 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
136-137 |
अंतर्मु. |
ज्ञान परिवर्तन |
कुछ कम अर्ध पु.परि. |
सम्यक्त्व से मिथ्यात्व फिर सम्यक्त्व देव नारकी में उपरोक्त प्रकार |
विभंग सामान्य |
|
|
31-32 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
139-140 |
1 समय |
उप.सम्य. देव नारकीद्विती.समय सासा.हो मरे। |
अंतर्मु.कम 33सा. |
|
विभंग (मनु.तिर्य.) |
|
|
धवला/9/397 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
धवला/9/397 |
1 समय |
औदारिक शरीर की संघातनपरिशातन कृति |
अंतर्मुहूर्त |
|
मतिश्रुत अवधिज्ञान |
|
|
31-32 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
142-143 |
अंतर्मु. |
देव नारकी सम्यक्त्वी हो पुन: मिथ्या। |
66 सागर+4पूर्व को. |
(देखो काल/5) |
मन:पर्यय |
|
|
31-32 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
145-146 |
अंतर्मु. |
इतने काल पश्चात् मरण |
8 वर्ष कम 1को.पू. |
8 वर्ष में दीक्षा लेकर शेष उत्कृष्ट आयु पर्यंत |
केवलज्ञान |
|
|
31-32 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
145-146 ( कषायपाहुड़ ) |
अंतर्मु. |
इतने काल पश्चात् मरण |
अंतर्मुहूर्त |
" (देखें दर्शन - 3.2) |
मतिश्रुत अज्ञान |
1-2 |
260-261 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
260-261 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
विभंग ज्ञान |
1 |
262 |
|
|
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
263-264 |
|
अंतर्मु. |
गुणस्थान परिवर्तन |
33 सागर से अंतर्मु.कम अंतर्मुहूर्त |
सप्तम पृथिवी की अपेक्षा मनुष्य तिर्यंच की अपेक्षा |
|
2 |
265 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
265 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
मतिश्रुतज्ञान |
4-12 |
266 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
266 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
अवधिज्ञान |
1-4 |
266 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
266 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
|
5 |
266 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
266 |
— |
मूलोघवत् |
— |
4 अंत.कम 1 को.पू. |
ओघ से 1 अंतर्मु.और भी कम है। क्योंकि सम्यक्त्व अवधि धारने में 1 अंतर्मु. लगा |
|
6-12 |
266 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
266 |
|
— |
मूलोघवत् |
— |
|
मन:पर्यय |
6-12 |
267 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
267 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
केवल |
13-14 |
268 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
268 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|