गौतम: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<ol class="HindiText"> | <ol class="HindiText"> | ||
<li>श्रुतावतार की गुर्वावली के अनुसार भगवान् वीर के पश्चात् प्रथम केवली हुए। आप भगवान् के गणधर थे। आपका पूर्व का नाम | <li>श्रुतावतार की गुर्वावली के अनुसार भगवान् वीर के पश्चात् प्रथम केवली हुए। आप भगवान् के गणधर थे। आपका पूर्व का नाम इंद्रभूति था।–देखें [[ इंद्रभूति ]]। समय–वी.नि.-12 (ई.पू.527-515)।।–देखें [[ इतिहास#4.4 | इतिहास - 4.4]]। </li> | ||
<li>( हरिवंशपुराण/18/102-109 ) हस्तिनापुर नगरी में कापिष्ठलायन नामक ब्राह्मण का पुत्र था। इसके उत्पन्न होते ही माता पिता मर गये थे। भूखा मरता फिरता था कि एक दिन मुनियों के दर्शन हुए और दीक्षा ले ली (श्लो 50)। हजारवर्ष | <li>( हरिवंशपुराण/18/102-109 ) हस्तिनापुर नगरी में कापिष्ठलायन नामक ब्राह्मण का पुत्र था। इसके उत्पन्न होते ही माता पिता मर गये थे। भूखा मरता फिरता था कि एक दिन मुनियों के दर्शन हुए और दीक्षा ले ली (श्लो 50)। हजारवर्ष पर्यंत तप करके छठें ग्रैवेयक के सुविशाल नामक विमान में उत्पन्न हुआ। यह अंधकवृष्णि का पूर्व भव है–देखें [[ अंधक वृष्णि ]]। </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 18: | Line 18: | ||
<p id="2">(2) कृष्ण का एक पुत्र । यह शास्त्र और शास्त्र में निपुण षा । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 48.70, 72 </span></p> | <p id="2">(2) कृष्ण का एक पुत्र । यह शास्त्र और शास्त्र में निपुण षा । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 48.70, 72 </span></p> | ||
<p id="3">(3) वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 16.265 </span></p> | <p id="3">(3) वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 16.265 </span></p> | ||
<p id="4">(4) | <p id="4">(4) रमणीकमंदिर नगर निवासी एक चित्र । इसकी भार्या कौशिकी के गर्भ से ही मरीचिका जीव अग्निमित्र नाम से उत्पन्न हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 74.77, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 2.121-122 </span></p> | ||
<p id="5">(5) ब्राह्मणों का एक गोत्र । गणधर | <p id="5">(5) ब्राह्मणों का एक गोत्र । गणधर इंद्रभूति (गौतम) इसी गोत्र के थे । <span class="GRef"> महापुराण 74.357 </span></p> | ||
<p id="6">(6) तीर्थंकर महावीर के प्रथम गणधर । | <p id="6">(6) तीर्थंकर महावीर के प्रथम गणधर । इंद्रभूति इनका नाम था । ये वेद और वेदांगों के ज्ञाता थे । इंद्र ने अवधिज्ञान से यह जान लिया था कि गौतम के आने पर ही भगवान् महावीर की दिव्य-ध्वनि हो सकती है । इसलिए यह इनके पास गया और इन्हें किसी प्रकार तीर्थंकर महावीर के निकट ले आया । महावीर के सान्निध्य में आते ही इनको तत्त्वबोध हो गया और ये अपने 500 शिष्यों सहित महावीर के शिष्य हो गये । शिष्य होने पर सौधर्मेंद्र ने इनकी पूजा की । संयम धारण करते ही परिणामिक विशुद्धि के रूप इन्हें सात ऋद्धियाँ प्राप्त हो गयीं । श्रावण के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन पूर्वाह्न वेला में अंगों के तथा अपराह्न वेला में पूर्वों के अर्थ और पदों का इन्हें बोध हो गया । ये चार ज्ञानों के धारक हो गये । इन्होंने अंगों और पूर्वों की रचना की श्रेणिक के अनेक प्रश्नों के उत्तर भी दिये । महावीर के निर्वाण-काल में ही इन्हें केवलज्ञान हो गया । केवलज्ञान होने के बारह वर्ष बाद ये भी निर्वाण को प्राप्त हुए । <span class="GRef"> महापुराण 1. 198-202, 2.45-95, 140, 12.2 43-48, 74. 347-372, 76.38-39, 119, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 2.249, 3.11-13, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1. 56, 2.89, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 1.7, 2.14, 101, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1.41-42, 15. 78-126, 18 </span>पूर्ण, 19.248-249</p> | ||
<p id="7">(7) एक देव । द्वारिका की रचना के लिए इसने | <p id="7">(7) एक देव । द्वारिका की रचना के लिए इसने इंद्र की आज्ञा से समुद्र का अपहरण किया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1. 99 </span></p> | ||
<p id="8">(8) राजा समुद्रविजय का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 48.44 </span></p> | <p id="8">(8) राजा समुद्रविजय का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 48.44 </span></p> | ||
<p id="9">(9) कृष्ण के कुल का रक्षक एक नृप । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 50. 131 </span></p> | <p id="9">(9) कृष्ण के कुल का रक्षक एक नृप । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 50. 131 </span></p> | ||
<p id="10">(10) वसुदेव का कृत्रिम गोत्र । इस गोत्र को बताकर ही वह | <p id="10">(10) वसुदेव का कृत्रिम गोत्र । इस गोत्र को बताकर ही वह गंधर्वाचार्य सुग्रीव का शिष्य बना था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 19.130-131 </span></p> | ||
Revision as of 16:22, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- श्रुतावतार की गुर्वावली के अनुसार भगवान् वीर के पश्चात् प्रथम केवली हुए। आप भगवान् के गणधर थे। आपका पूर्व का नाम इंद्रभूति था।–देखें इंद्रभूति । समय–वी.नि.-12 (ई.पू.527-515)।।–देखें इतिहास - 4.4।
- ( हरिवंशपुराण/18/102-109 ) हस्तिनापुर नगरी में कापिष्ठलायन नामक ब्राह्मण का पुत्र था। इसके उत्पन्न होते ही माता पिता मर गये थे। भूखा मरता फिरता था कि एक दिन मुनियों के दर्शन हुए और दीक्षा ले ली (श्लो 50)। हजारवर्ष पर्यंत तप करके छठें ग्रैवेयक के सुविशाल नामक विमान में उत्पन्न हुआ। यह अंधकवृष्णि का पूर्व भव है–देखें अंधक वृष्णि ।
पुराणकोष से
(1) देखें गोतम
(2) कृष्ण का एक पुत्र । यह शास्त्र और शास्त्र में निपुण षा । हरिवंशपुराण 48.70, 72
(3) वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 16.265
(4) रमणीकमंदिर नगर निवासी एक चित्र । इसकी भार्या कौशिकी के गर्भ से ही मरीचिका जीव अग्निमित्र नाम से उत्पन्न हुआ था । महापुराण 74.77, वीरवर्द्धमान चरित्र 2.121-122
(5) ब्राह्मणों का एक गोत्र । गणधर इंद्रभूति (गौतम) इसी गोत्र के थे । महापुराण 74.357
(6) तीर्थंकर महावीर के प्रथम गणधर । इंद्रभूति इनका नाम था । ये वेद और वेदांगों के ज्ञाता थे । इंद्र ने अवधिज्ञान से यह जान लिया था कि गौतम के आने पर ही भगवान् महावीर की दिव्य-ध्वनि हो सकती है । इसलिए यह इनके पास गया और इन्हें किसी प्रकार तीर्थंकर महावीर के निकट ले आया । महावीर के सान्निध्य में आते ही इनको तत्त्वबोध हो गया और ये अपने 500 शिष्यों सहित महावीर के शिष्य हो गये । शिष्य होने पर सौधर्मेंद्र ने इनकी पूजा की । संयम धारण करते ही परिणामिक विशुद्धि के रूप इन्हें सात ऋद्धियाँ प्राप्त हो गयीं । श्रावण के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन पूर्वाह्न वेला में अंगों के तथा अपराह्न वेला में पूर्वों के अर्थ और पदों का इन्हें बोध हो गया । ये चार ज्ञानों के धारक हो गये । इन्होंने अंगों और पूर्वों की रचना की श्रेणिक के अनेक प्रश्नों के उत्तर भी दिये । महावीर के निर्वाण-काल में ही इन्हें केवलज्ञान हो गया । केवलज्ञान होने के बारह वर्ष बाद ये भी निर्वाण को प्राप्त हुए । महापुराण 1. 198-202, 2.45-95, 140, 12.2 43-48, 74. 347-372, 76.38-39, 119, पद्मपुराण 2.249, 3.11-13, हरिवंशपुराण 1. 56, 2.89, पांडवपुराण 1.7, 2.14, 101, वीरवर्द्धमान चरित्र 1.41-42, 15. 78-126, 18 पूर्ण, 19.248-249
(7) एक देव । द्वारिका की रचना के लिए इसने इंद्र की आज्ञा से समुद्र का अपहरण किया था । हरिवंशपुराण 1. 99
(8) राजा समुद्रविजय का पुत्र । हरिवंशपुराण 48.44
(9) कृष्ण के कुल का रक्षक एक नृप । हरिवंशपुराण 50. 131
(10) वसुदेव का कृत्रिम गोत्र । इस गोत्र को बताकर ही वह गंधर्वाचार्य सुग्रीव का शिष्य बना था । हरिवंशपुराण 19.130-131