चतुष्टय: Difference between revisions
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<p class="HindiText">चतुष्टय नाम चौकड़ी का है। आगम में कई प्रकार से | <p class="HindiText">चतुष्टय नाम चौकड़ी का है। आगम में कई प्रकार से चौकड़ियाँ प्रसिद्ध हैं–द्रव्य के स्वभावभूत स्व चतुष्टय, द्रव्य में विरोधी धर्मों रूप युग्म चतुष्टय, जीव के ज्ञानादि प्रधान गुणों की अनंत शक्ति व व्यक्ति रूप कारण अनंत चतुष्टय व कार्य अनंत चतुष्टय। <br /> | ||
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राजवार्तिक/4/42/15/254/15 <span class="SanskritText">यदस्ति तत् स्वायत्तद्रव्यक्षेत्रभावरूपेण भवति नेतरेण तस्प्रस्तुतत्वात् । यथा घटो द्रव्यत: पार्थिवत्वेन, क्षेत्रतया इहत्यतया, कालतो | राजवार्तिक/4/42/15/254/15 <span class="SanskritText">यदस्ति तत् स्वायत्तद्रव्यक्षेत्रभावरूपेण भवति नेतरेण तस्प्रस्तुतत्वात् । यथा घटो द्रव्यत: पार्थिवत्वेन, क्षेत्रतया इहत्यतया, कालतो वर्तमानकालसंबंधितया, भावतो रक्तत्वादिना, न परायत्तैर्द्रव्यादिभिस्तेषामप्रसक्तत्वात् इति।...कथम् ? ..</span>.=<span class="HindiText">जो अस्ति है वह अपने द्रव्य क्षेत्रकाल भाव से ही है, इतर द्रव्यादि से नहीं क्योंकि वे अप्रस्तुत हैं। जैसे घड़ा पार्थिवरूप से, इस क्षेत्र से, वर्तमानकाल या पर्यायरूप से तथा रक्तादि वर्तमान भावों से है पर अन्य से नहीं क्योंकि वे अप्रस्तुत हैं। (अर्थात् जलरूप से अन्य क्षेत्र से, अतीतानागत पर्यायोंरूप पिंड कपाल आदि से तथा श्वेतादि भावों से नहीं है। यहाँ पृथिवी उसका स्व द्रव्य है और जलादि पर द्रव्य, उसका अपना क्षेत्र स्वक्षेत्र है और उससे अतिरिक्त अन्य क्षेत्र पर क्षेत्र, वर्तमान पर्याय स्वकाल है और अतीतानागत पर्याय पर काल, रक्तादि भाव स्वभाव है और श्वेतादि भाव परभाव)। (विशेष देखो ‘द्रव्य’, ‘क्षेत्र’, ‘काल’ व ‘भाव’।)। <br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3"> स्वपरचतुष्टय की अपेक्षा वस्तु में भेदाभेद तथा अस्तित्व नास्तित्व</strong>–देखें [[ सप्तभंगी#5 | सप्तभंगी - 5]]। <br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3"> स्वपरचतुष्टय की अपेक्षा वस्तु में भेदाभेद तथा अस्तित्व नास्तित्व</strong>–देखें [[ सप्तभंगी#5 | सप्तभंगी - 5]]। <br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="4" id="4"> स्वकाल और स्वभाव में भिन्नत्व व एकत्व</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="4" id="4"> स्वकाल और स्वभाव में भिन्नत्व व एकत्व</strong> </span><br /> | ||
धवला 9/4,1,2/27/11 <span class="PrakritText">तीदाणागदपज्जायाणं किण्ण भावववएसो। ण, तेसिं कालत्तब्भुवगमादो।</span>=<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–अतीत और अनागत पर्यायों की भाव संज्ञा क्यों नहीं है ? <strong>उत्तर</strong>–नहीं है, क्योंकि, उन्हें काल स्वीकार किया गया है। </span><br /> | धवला 9/4,1,2/27/11 <span class="PrakritText">तीदाणागदपज्जायाणं किण्ण भावववएसो। ण, तेसिं कालत्तब्भुवगमादो।</span>=<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–अतीत और अनागत पर्यायों की भाव संज्ञा क्यों नहीं है ? <strong>उत्तर</strong>–नहीं है, क्योंकि, उन्हें काल स्वीकार किया गया है। </span><br /> | ||
धवला 9/4,1,3/43/4 <span class="PrakritText">होदु कालपरूवणा एसा, ण भावपरूवणा; कालभावाणमेयत्तविरोहादो। ण एस दोसो, अदीदाणागयपज्जया तीदाणागयकालो वट्टमाणपज्जया वट्टमाणकालो। तेसिं चेव भावसण्णा वि, वर्तमानपर्यायोपलक्षितं द्रव्यं भाव:’ इदि पओअदंसणादो। तीदाणागयकालेहिंतो वट्टमाणकालो भावसण्णिदो कालत्तणेण अभिण्णो त्ति काल-भावाणमेयत्ताविरोहादो।</span>=<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–यह काल प्ररूपणा भले ही हो, | धवला 9/4,1,3/43/4 <span class="PrakritText">होदु कालपरूवणा एसा, ण भावपरूवणा; कालभावाणमेयत्तविरोहादो। ण एस दोसो, अदीदाणागयपज्जया तीदाणागयकालो वट्टमाणपज्जया वट्टमाणकालो। तेसिं चेव भावसण्णा वि, वर्तमानपर्यायोपलक्षितं द्रव्यं भाव:’ इदि पओअदंसणादो। तीदाणागयकालेहिंतो वट्टमाणकालो भावसण्णिदो कालत्तणेण अभिण्णो त्ति काल-भावाणमेयत्ताविरोहादो।</span>=<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–यह काल प्ररूपणा भले ही हो, किंतु भाव प्ररूपणा नहीं हो सकती, क्योंकि, काल और भाव की एकता का विरोध है? <strong>उत्तर</strong>–यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, अतीत और अनागत पर्यायें अतीत अनागत काल हैं, तथा वर्तमान पर्यायें वर्तमान काल हैं। उन्हीं पर्यायों को ही भाव संज्ञा भी है, क्योंकि ‘वर्तमान पर्याय से उपलक्षित द्रव्य भाव है; ऐसा प्रयोग देखा जाता है। अतीत और अनागतकाल से चूँकि भाव संज्ञा वाला वर्तमान काल स्वरूप से अभिन्न है, अत: काल और भाव की एकता में कोई विरोध नहीं है। <br /> | ||
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<li class="HindiText"><strong name="5" id="5"> स्वपर चतुष्टय ग्राहक द्रव्यार्थिक नय</strong> (देखें [[ नय#IV.2 | नय - IV.2]])। <br /> | <li class="HindiText"><strong name="5" id="5"> स्वपर चतुष्टय ग्राहक द्रव्यार्थिक नय</strong> (देखें [[ नय#IV.2 | नय - IV.2]])। <br /> | ||
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<li class="HindiText"><strong name="6" id="6">युग्मचतुष्टय निर्देश व उनकी योजना विधि</strong>—देखें [[ | <li class="HindiText"><strong name="6" id="6">युग्मचतुष्टय निर्देश व उनकी योजना विधि</strong>—देखें [[ अनेकांत#4 | अनेकांत - 4]],5। <br /> | ||
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नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/15 <span class="SanskritText">सहजशुद्धनिश्चयेन | नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/15 <span class="SanskritText">सहजशुद्धनिश्चयेन अनाद्यनिधनामूर्तातींद्रियस्वभावशुद्धसहजज्ञान-सहजदर्शन-सहजचारित्र-सहजपरमवीतरागसुखात्मकशुद्धांतस्तत्त्वस्वरूपस्वभावानंतचतुष्टयस्वरूपेण...। साद्यनिधनामूर्तातींद्रियस्वभावशुद्धसद्भूतव्यवहारेण केवलज्ञानकेवलदर्शनकेवलसुखकेवलशक्तियुक्तफलरूपानंतचतुष्टयेन...।</span>=<span class="HindiText">सहज शुद्ध निश्चयनय से, अनादि-अनंत, अमूर्त-अतींद्रिय स्वभाव वाले और शुद्ध ऐसे सहजज्ञान, सहजदर्शन, सहजचारित्र और सहजपरमवीतरागसुखात्मकशुद्ध अंत:तत्त्वस्वरूप जो स्वभाव अनंतचतुष्टय का स्वरूप...। तथा सादि, अनंत, अमूर्त, अतींद्रियस्वभाव वाले शुद्धसद्भूत व्यवहार से केवलज्ञान, केवलदर्शन, केवलसुख, केवलशक्तियुक्त फलरूप अनंत चतुष्टय...। </span></li> | ||
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Revision as of 16:22, 19 August 2020
चतुष्टय नाम चौकड़ी का है। आगम में कई प्रकार से चौकड़ियाँ प्रसिद्ध हैं–द्रव्य के स्वभावभूत स्व चतुष्टय, द्रव्य में विरोधी धर्मों रूप युग्म चतुष्टय, जीव के ज्ञानादि प्रधान गुणों की अनंत शक्ति व व्यक्ति रूप कारण अनंत चतुष्टय व कार्य अनंत चतुष्टय।
- स्वचतुष्टय के नामनिर्देश
प. धवला/ पू./263 अथ तद्यथा यदस्ति हि तदेव नास्तीति तच्चतुष्कं च। द्रव्येण क्षेत्रेण च कालेन तथाऽथवाऽपिभावेन।263।=द्रव्य के द्वारा, क्षेत्र के द्वारा, काल के द्वारा और भाव के द्वारा जो है वह परद्रव्य क्षेत्रादि से नहीं है, इस प्रकार अस्ति नास्ति आदि का चतुष्टय हो जाता है। और भी देखें श्रुतज्ञान - III में समवायांग।
- स्वपरचतुष्टय के लक्षण व उनकी योजना विधि
राजवार्तिक/4/42/15/254/15 यदस्ति तत् स्वायत्तद्रव्यक्षेत्रभावरूपेण भवति नेतरेण तस्प्रस्तुतत्वात् । यथा घटो द्रव्यत: पार्थिवत्वेन, क्षेत्रतया इहत्यतया, कालतो वर्तमानकालसंबंधितया, भावतो रक्तत्वादिना, न परायत्तैर्द्रव्यादिभिस्तेषामप्रसक्तत्वात् इति।...कथम् ? ...=जो अस्ति है वह अपने द्रव्य क्षेत्रकाल भाव से ही है, इतर द्रव्यादि से नहीं क्योंकि वे अप्रस्तुत हैं। जैसे घड़ा पार्थिवरूप से, इस क्षेत्र से, वर्तमानकाल या पर्यायरूप से तथा रक्तादि वर्तमान भावों से है पर अन्य से नहीं क्योंकि वे अप्रस्तुत हैं। (अर्थात् जलरूप से अन्य क्षेत्र से, अतीतानागत पर्यायोंरूप पिंड कपाल आदि से तथा श्वेतादि भावों से नहीं है। यहाँ पृथिवी उसका स्व द्रव्य है और जलादि पर द्रव्य, उसका अपना क्षेत्र स्वक्षेत्र है और उससे अतिरिक्त अन्य क्षेत्र पर क्षेत्र, वर्तमान पर्याय स्वकाल है और अतीतानागत पर्याय पर काल, रक्तादि भाव स्वभाव है और श्वेतादि भाव परभाव)। (विशेष देखो ‘द्रव्य’, ‘क्षेत्र’, ‘काल’ व ‘भाव’।)।
- स्वपरचतुष्टय की अपेक्षा वस्तु में भेदाभेद तथा अस्तित्व नास्तित्व–देखें सप्तभंगी - 5।
- स्वकाल और स्वभाव में भिन्नत्व व एकत्व
धवला 9/4,1,2/27/11 तीदाणागदपज्जायाणं किण्ण भावववएसो। ण, तेसिं कालत्तब्भुवगमादो।=प्रश्न–अतीत और अनागत पर्यायों की भाव संज्ञा क्यों नहीं है ? उत्तर–नहीं है, क्योंकि, उन्हें काल स्वीकार किया गया है।
धवला 9/4,1,3/43/4 होदु कालपरूवणा एसा, ण भावपरूवणा; कालभावाणमेयत्तविरोहादो। ण एस दोसो, अदीदाणागयपज्जया तीदाणागयकालो वट्टमाणपज्जया वट्टमाणकालो। तेसिं चेव भावसण्णा वि, वर्तमानपर्यायोपलक्षितं द्रव्यं भाव:’ इदि पओअदंसणादो। तीदाणागयकालेहिंतो वट्टमाणकालो भावसण्णिदो कालत्तणेण अभिण्णो त्ति काल-भावाणमेयत्ताविरोहादो।=प्रश्न–यह काल प्ररूपणा भले ही हो, किंतु भाव प्ररूपणा नहीं हो सकती, क्योंकि, काल और भाव की एकता का विरोध है? उत्तर–यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, अतीत और अनागत पर्यायें अतीत अनागत काल हैं, तथा वर्तमान पर्यायें वर्तमान काल हैं। उन्हीं पर्यायों को ही भाव संज्ञा भी है, क्योंकि ‘वर्तमान पर्याय से उपलक्षित द्रव्य भाव है; ऐसा प्रयोग देखा जाता है। अतीत और अनागतकाल से चूँकि भाव संज्ञा वाला वर्तमान काल स्वरूप से अभिन्न है, अत: काल और भाव की एकता में कोई विरोध नहीं है।
- स्वपर चतुष्टय ग्राहक द्रव्यार्थिक नय (देखें नय - IV.2)।
- युग्मचतुष्टय निर्देश व उनकी योजना विधि—देखें अनेकांत - 4,5।
- कारण व कार्यरूप अनंत चतुष्टय निर्देश
नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/15 सहजशुद्धनिश्चयेन अनाद्यनिधनामूर्तातींद्रियस्वभावशुद्धसहजज्ञान-सहजदर्शन-सहजचारित्र-सहजपरमवीतरागसुखात्मकशुद्धांतस्तत्त्वस्वरूपस्वभावानंतचतुष्टयस्वरूपेण...। साद्यनिधनामूर्तातींद्रियस्वभावशुद्धसद्भूतव्यवहारेण केवलज्ञानकेवलदर्शनकेवलसुखकेवलशक्तियुक्तफलरूपानंतचतुष्टयेन...।=सहज शुद्ध निश्चयनय से, अनादि-अनंत, अमूर्त-अतींद्रिय स्वभाव वाले और शुद्ध ऐसे सहजज्ञान, सहजदर्शन, सहजचारित्र और सहजपरमवीतरागसुखात्मकशुद्ध अंत:तत्त्वस्वरूप जो स्वभाव अनंतचतुष्टय का स्वरूप...। तथा सादि, अनंत, अमूर्त, अतींद्रियस्वभाव वाले शुद्धसद्भूत व्यवहार से केवलज्ञान, केवलदर्शन, केवलसुख, केवलशक्तियुक्त फलरूप अनंत चतुष्टय...। - अनंत चतुष्टय में अनंतत्व कैसे है—देखें अनंत - 2।