पूर्णचंद्र: Difference between revisions
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<p id="1">(1) विद्याधर दृढ़रथ का वंशज । यह | <p id="1">(1) विद्याधर दृढ़रथ का वंशज । यह पूश्चंद्र का पुत्र और बालेंदु का पिता था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.47-56 </span></p> | ||
<p id="2">(2) राम का सिहरथवाही | <p id="2">(2) राम का सिहरथवाही सामंत । बहुरूपिणी विद्या के साधक रावण की साधना में विश्व उत्पन्न करने के लिए यह लंका गया था । यह भरत के साथ दीक्षित हो गया । <span class="GRef"> पद्मपुराण 58.9-11 70. 12-16, 88.1-6 </span></p> | ||
<p id="3">(3) भरतक्षेत्र के सिंहपुर नगर के राजा सिंहसेन और उसकी रानी रामदत्ता का छोटा पुत्र । यह | <p id="3">(3) भरतक्षेत्र के सिंहपुर नगर के राजा सिंहसेन और उसकी रानी रामदत्ता का छोटा पुत्र । यह सिंहचंद्र का अनुज था । सिंहसेन के मरने पर सिंहचंद्र राजा और यह युवराज हुआ । सिंहचंद्र के दीक्षित होने पर इसने कुछ समय तक राज्य किया । सिंहचंद्र मुनि से इसे धर्मोपदेश मिला । यह भी विरक्त होकर मुनि हो गया और मरने के पश्चात् महाशुक्र स्वर्ग के वैडूर्य विमान में वैडूर्य देव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 59.146, 192-202, 224-222, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 27.46-59 </span></p> | ||
<p id="4">(4) पोदनपुर का राजा हिरण्यबली इसकी रानी और रामदत्ता इसकी पुत्री थी इसने राहुभद्र मुनि से दीक्षा लेकर अवधिज्ञान प्राप्त किया था । रानी हिरण्यवती ने भी दत्तवती आर्या के समीप आर्यिका के तत धारण किये थे । इसी के उपदेश से रामदत्ता और उसका पुत्र सिंहचक्र दोनों दीक्षित हो गये थे यह स्वयं सम्यग्दर्शन और व्रत से रहित हो जाने के कारण भोगों में आसक्त हो गया था । | <p id="4">(4) पोदनपुर का राजा हिरण्यबली इसकी रानी और रामदत्ता इसकी पुत्री थी इसने राहुभद्र मुनि से दीक्षा लेकर अवधिज्ञान प्राप्त किया था । रानी हिरण्यवती ने भी दत्तवती आर्या के समीप आर्यिका के तत धारण किये थे । इसी के उपदेश से रामदत्ता और उसका पुत्र सिंहचक्र दोनों दीक्षित हो गये थे यह स्वयं सम्यग्दर्शन और व्रत से रहित हो जाने के कारण भोगों में आसक्त हो गया था । अंत में यह रामदत्ता द्वारा समझाये जाने पर दान, पूजा, तप, शील और सम्मान का अच्छी तरह पालन करके सहस्रार स्वर्ग के वैडूर्यप्रभ नामक विमान में देव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 59.207-209, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 27. 55-74 </span></p> | ||
<p id="5">(5) भविष्यत् कालीन सातवां बलभद्र । <span class="GRef"> महापुराण 76.486, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.568 </span></p> | <p id="5">(5) भविष्यत् कालीन सातवां बलभद्र । <span class="GRef"> महापुराण 76.486, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.568 </span></p> | ||
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Revision as of 16:28, 19 August 2020
(1) विद्याधर दृढ़रथ का वंशज । यह पूश्चंद्र का पुत्र और बालेंदु का पिता था । पद्मपुराण 5.47-56
(2) राम का सिहरथवाही सामंत । बहुरूपिणी विद्या के साधक रावण की साधना में विश्व उत्पन्न करने के लिए यह लंका गया था । यह भरत के साथ दीक्षित हो गया । पद्मपुराण 58.9-11 70. 12-16, 88.1-6
(3) भरतक्षेत्र के सिंहपुर नगर के राजा सिंहसेन और उसकी रानी रामदत्ता का छोटा पुत्र । यह सिंहचंद्र का अनुज था । सिंहसेन के मरने पर सिंहचंद्र राजा और यह युवराज हुआ । सिंहचंद्र के दीक्षित होने पर इसने कुछ समय तक राज्य किया । सिंहचंद्र मुनि से इसे धर्मोपदेश मिला । यह भी विरक्त होकर मुनि हो गया और मरने के पश्चात् महाशुक्र स्वर्ग के वैडूर्य विमान में वैडूर्य देव हुआ । महापुराण 59.146, 192-202, 224-222, हरिवंशपुराण 27.46-59
(4) पोदनपुर का राजा हिरण्यबली इसकी रानी और रामदत्ता इसकी पुत्री थी इसने राहुभद्र मुनि से दीक्षा लेकर अवधिज्ञान प्राप्त किया था । रानी हिरण्यवती ने भी दत्तवती आर्या के समीप आर्यिका के तत धारण किये थे । इसी के उपदेश से रामदत्ता और उसका पुत्र सिंहचक्र दोनों दीक्षित हो गये थे यह स्वयं सम्यग्दर्शन और व्रत से रहित हो जाने के कारण भोगों में आसक्त हो गया था । अंत में यह रामदत्ता द्वारा समझाये जाने पर दान, पूजा, तप, शील और सम्मान का अच्छी तरह पालन करके सहस्रार स्वर्ग के वैडूर्यप्रभ नामक विमान में देव हुआ । महापुराण 59.207-209, हरिवंशपुराण 27. 55-74
(5) भविष्यत् कालीन सातवां बलभद्र । महापुराण 76.486, हरिवंशपुराण 60.568