असुर: Difference between revisions
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[[धवला]] पुस्तक संख्या १३/५,५,१४०/३९१/७ अहिंसाद्यनुष्ठानरतयः सुरान नाम। तद्विपरीताः असुराः। < | गपि प्रातिलोम्येन वृत्तिरस्ति। अपि च, वैरकारणाभावात् ।।६।। ततो नासुराः सुरैरुध्यन्ते।<br> | ||
<p class="HindiSentence">= `देवोंके साथ असुरका युद्ध होता है, अतः ये असुर कहलाते हैं' यह देवोंका अवर्णवाद मिथ्यात्वके कारण किया जाता है, क्योंकि, सौधर्मादिक स्वर्गोके देव महाप्रभावशाली हैं। शुभानुष्ठानोंमें रहनेवाले उनके साथ वैरकी कोई सम्भावना नहीं है। निकृष्ट बलवाले असुर उनका किंचित् भी बिगाड़ नहीं कर सकते। इसलिए अल्पप्रभाववाले असुरों से युद्धकी कल्पना ही व्यर्थ है।</p> | |||
<UL start=0 class="BulletedList"> <LI> असुरकुमार देवोंके इन्द्रादि व उनका अवस्थान - <b>देखे </b>[[भवन]] /२,४ </LI> </UL> | |||
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<p class="SanskritPrakritSentence">[[धवला]] पुस्तक संख्या १३/५,५,१४०/३९१/७ अहिंसाद्यनुष्ठानरतयः सुरान नाम। तद्विपरीताः असुराः। </p> | |||
<p class="HindiSentence">= जिनकी अहिंसादिके अनुष्ठानोंमें रति है वे सुर हैं। इनसे विपरीत असुर होते हैं।</p> | <p class="HindiSentence">= जिनकी अहिंसादिके अनुष्ठानोंमें रति है वे सुर हैं। इनसे विपरीत असुर होते हैं।</p> | ||
<OL start=2 class="HindiNumberList"> <LI> असुरकुमार देवोंके भेद </LI> </OL> | <OL start=2 class="HindiNumberList"> <LI> असुरकुमार देवोंके भेद </LI> </OL> | ||
[[तिलोयपण्णत्ति]] अधिकार संख्या २/३४८-३४९ सिकदाणणासिपत्ता महबलकाला य समासबला हि। रुद्दंबरिसा विलसिदणामो महरुद्दखरणामा ।।३४८।। कालग्गिरुद्दणामा कुंभो वेतरणिपहुदिअसुरसुरा। गंतूण बालुकंतं णारइयाणं पकोपंति ।।३४९।।< | <p class="SanskritPrakritSentence">[[तिलोयपण्णत्ति]] अधिकार संख्या २/३४८-३४९ सिकदाणणासिपत्ता महबलकाला य समासबला हि। रुद्दंबरिसा विलसिदणामो महरुद्दखरणामा ।।३४८।। कालग्गिरुद्दणामा कुंभो वेतरणिपहुदिअसुरसुरा। गंतूण बालुकंतं णारइयाणं पकोपंति ।।३४९।।</p> | ||
<p class="HindiSentence">= सिकतानन, असिपत्र, महाबल, महाकाल, श्याम और शबल, रूद्र, अंबरीष, बिलसित, महारूद्र, महाखर, काल तथा अग्निरुद्र, कुम्भ और वैतरणि आदिक असुरकुमार जातिके देव तीसरी बालुकाप्रभा पृथिवी तक जाकर नारकियोंको क्रोधित करते हैं।</p> | <p class="HindiSentence">= सिकतानन, असिपत्र, महाबल, महाकाल, श्याम और शबल, रूद्र, अंबरीष, बिलसित, महारूद्र, महाखर, काल तथा अग्निरुद्र, कुम्भ और वैतरणि आदिक असुरकुमार जातिके देव तीसरी बालुकाप्रभा पृथिवी तक जाकर नारकियोंको क्रोधित करते हैं।</p> | ||
<OL start=3 class="HindiNumberList"> <LI> असुर देव नरकोंमें जाकर नारकियोंको दुख देते हैं। परन्तु सब नहीं </LI> </OL> | <OL start=3 class="HindiNumberList"> <LI> असुर देव नरकोंमें जाकर नारकियोंको दुख देते हैं। परन्तु सब नहीं </LI> </OL> | ||
[[सर्वार्थसिद्धि]] अध्याय संख्या ३/५/२०९/३ पूर्वजन्मनि भावितेनातितीव्रेण संक्लेशपरिणामेन यदुपार्जितं पापकर्म तस्योदयात्सततं क्लिष्टाः संक्लिष्टाः-इति विशेषणान्न सर्वे असुरा नारकाणां दुःखमुत्पादयन्ति। किंतर्हि। अम्बाम्बरीषादय एव केचनेति।< | <p class="SanskritPrakritSentence">[[सर्वार्थसिद्धि]] अध्याय संख्या ३/५/२०९/३ पूर्वजन्मनि भावितेनातितीव्रेण संक्लेशपरिणामेन यदुपार्जितं पापकर्म तस्योदयात्सततं क्लिष्टाः संक्लिष्टाः-इति विशेषणान्न सर्वे असुरा नारकाणां दुःखमुत्पादयन्ति। किंतर्हि। अम्बाम्बरीषादय एव केचनेति।</p> | ||
<p class="HindiSentence">= पूर्व जन्ममें किये गये अतितीव्र संक्लेशरूप परिणामोंसे इन्होंने जो पाप कर्म उपार्जित किया उसके उदयसे ये निरन्तर क्लिष्ट रहते हैं, इसलिए संक्लिष्ट असुर कहलाते हैं। सूत्रमें यद्यपि असुरोंको संक्लिष्ट विशेषण दिया है, पर इसका यह अर्थ नहीं कि सब असुर नारकियोंको दुःख उत्पन्न कराते हैं। किन्तु अम्बरीष आदि कुछ असुर ही दुःख उत्पन्न कराते हैं।</p> | <p class="HindiSentence">= पूर्व जन्ममें किये गये अतितीव्र संक्लेशरूप परिणामोंसे इन्होंने जो पाप कर्म उपार्जित किया उसके उदयसे ये निरन्तर क्लिष्ट रहते हैं, इसलिए संक्लिष्ट असुर कहलाते हैं। सूत्रमें यद्यपि असुरोंको संक्लिष्ट विशेषण दिया है, पर इसका यह अर्थ नहीं कि सब असुर नारकियोंको दुःख उत्पन्न कराते हैं। किन्तु अम्बरीष आदि कुछ असुर ही दुःख उत्पन्न कराते हैं।</p> | ||
<b>देखे </b>[[ऊपर शीर्षकसं.]] २ - (सिकतानन आदि अनेक प्रकारके असुरदेव तीसरी पृथिवी तक जाकर नारकियोंको क्रोध उत्पन्न कराते हैं।)<br> | <b>देखे </b>[[ऊपर शीर्षकसं.]] २ - (सिकतानन आदि अनेक प्रकारके असुरदेव तीसरी पृथिवी तक जाकर नारकियोंको क्रोध उत्पन्न कराते हैं।)<br> | ||
<OL start=4 class="HindiNumberList"> <LI> सुरोंके साथ युद्ध करनेके कारण असुर कहना मिथ्या है </LI> </OL> | <OL start=4 class="HindiNumberList"> <LI> सुरोंके साथ युद्ध करनेके कारण असुर कहना मिथ्या है </LI> </OL> | ||
[[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या ४/१०/४/२१६/७ स्यान्मतं युद्धे देवैः सहास्यन्ति प्रहरणादीनित्यसुरा इतिः तन्न, किं कारणम्। अवर्णवादात्। अवर्णवाद एष देवानामुपरि मिथ्याज्ञाननिमित्तः। कुतः। ते हि सौधर्मादयो देवा महाप्रभावाः, न तेषामुपरि इतरेषां निकृष्टबलानां मनागपि प्रातिलोम्येन वृत्तिरस्ति। अपि च, वैरकारणाभावात् ।।६।। ततो नासुराः सुरैरुध्यन्ते।< | <p class="SanskritPrakritSentence">[[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या ४/१०/४/२१६/७ स्यान्मतं युद्धे देवैः सहास्यन्ति प्रहरणादीनित्यसुरा इतिः तन्न, किं कारणम्। अवर्णवादात्। अवर्णवाद एष देवानामुपरि मिथ्याज्ञाननिमित्तः। कुतः। ते हि सौधर्मादयो देवा महाप्रभावाः, न तेषामुपरि इतरेषां निकृष्टबलानां मनागपि प्रातिलोम्येन वृत्तिरस्ति। अपि च, वैरकारणाभावात् ।।६।। ततो नासुराः सुरैरुध्यन्ते।</p> | ||
<p class="HindiSentence">= `देवोंके साथ असुरका युद्ध होता है, अतः ये असुर कहलाते हैं' यह देवोंका अवर्णवाद मिथ्यात्वके कारण किया जाता है, क्योंकि, सौधर्मादिक स्वर्गोके देव महाप्रभावशाली हैं। शुभानुष्ठानोंमें रहनेवाले उनके साथ वैरकी कोई सम्भावना नहीं है। निकृष्ट बलवाले असुर उनका किंचित् भी बिगाड़ नहीं कर सकते। इसलिए अल्पप्रभाववाले असुरों से युद्धकी कल्पना ही व्यर्थ है।</p> | <p class="HindiSentence">= `देवोंके साथ असुरका युद्ध होता है, अतः ये असुर कहलाते हैं' यह देवोंका अवर्णवाद मिथ्यात्वके कारण किया जाता है, क्योंकि, सौधर्मादिक स्वर्गोके देव महाप्रभावशाली हैं। शुभानुष्ठानोंमें रहनेवाले उनके साथ वैरकी कोई सम्भावना नहीं है। निकृष्ट बलवाले असुर उनका किंचित् भी बिगाड़ नहीं कर सकते। इसलिए अल्पप्रभाववाले असुरों से युद्धकी कल्पना ही व्यर्थ है।</p> | ||
<UL start=0 class="BulletedList"> <LI> असुरकुमार देवोंके इन्द्रादि व उनका अवस्थान - <b>देखे </b>[[भवन]] /२,४ </LI> </UL> | <UL start=0 class="BulletedList"> <LI> असुरकुमार देवोंके इन्द्रादि व उनका अवस्थान - <b>देखे </b>[[भवन]] /२,४ </LI> </UL> |
Revision as of 01:23, 25 May 2009
गपि प्रातिलोम्येन वृत्तिरस्ति। अपि च, वैरकारणाभावात् ।।६।। ततो नासुराः सुरैरुध्यन्ते।
= `देवोंके साथ असुरका युद्ध होता है, अतः ये असुर कहलाते हैं' यह देवोंका अवर्णवाद मिथ्यात्वके कारण किया जाता है, क्योंकि, सौधर्मादिक स्वर्गोके देव महाप्रभावशाली हैं। शुभानुष्ठानोंमें रहनेवाले उनके साथ वैरकी कोई सम्भावना नहीं है। निकृष्ट बलवाले असुर उनका किंचित् भी बिगाड़ नहीं कर सकते। इसलिए अल्पप्रभाववाले असुरों से युद्धकी कल्पना ही व्यर्थ है।
- असुरकुमार देवोंके इन्द्रादि व उनका अवस्थान - देखे भवन /२,४
धवला पुस्तक संख्या १३/५,५,१४०/३९१/७ अहिंसाद्यनुष्ठानरतयः सुरान नाम। तद्विपरीताः असुराः।
= जिनकी अहिंसादिके अनुष्ठानोंमें रति है वे सुर हैं। इनसे विपरीत असुर होते हैं।
- असुरकुमार देवोंके भेद
तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या २/३४८-३४९ सिकदाणणासिपत्ता महबलकाला य समासबला हि। रुद्दंबरिसा विलसिदणामो महरुद्दखरणामा ।।३४८।। कालग्गिरुद्दणामा कुंभो वेतरणिपहुदिअसुरसुरा। गंतूण बालुकंतं णारइयाणं पकोपंति ।।३४९।।
= सिकतानन, असिपत्र, महाबल, महाकाल, श्याम और शबल, रूद्र, अंबरीष, बिलसित, महारूद्र, महाखर, काल तथा अग्निरुद्र, कुम्भ और वैतरणि आदिक असुरकुमार जातिके देव तीसरी बालुकाप्रभा पृथिवी तक जाकर नारकियोंको क्रोधित करते हैं।
- असुर देव नरकोंमें जाकर नारकियोंको दुख देते हैं। परन्तु सब नहीं
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या ३/५/२०९/३ पूर्वजन्मनि भावितेनातितीव्रेण संक्लेशपरिणामेन यदुपार्जितं पापकर्म तस्योदयात्सततं क्लिष्टाः संक्लिष्टाः-इति विशेषणान्न सर्वे असुरा नारकाणां दुःखमुत्पादयन्ति। किंतर्हि। अम्बाम्बरीषादय एव केचनेति।
= पूर्व जन्ममें किये गये अतितीव्र संक्लेशरूप परिणामोंसे इन्होंने जो पाप कर्म उपार्जित किया उसके उदयसे ये निरन्तर क्लिष्ट रहते हैं, इसलिए संक्लिष्ट असुर कहलाते हैं। सूत्रमें यद्यपि असुरोंको संक्लिष्ट विशेषण दिया है, पर इसका यह अर्थ नहीं कि सब असुर नारकियोंको दुःख उत्पन्न कराते हैं। किन्तु अम्बरीष आदि कुछ असुर ही दुःख उत्पन्न कराते हैं।
देखे ऊपर शीर्षकसं. २ - (सिकतानन आदि अनेक प्रकारके असुरदेव तीसरी पृथिवी तक जाकर नारकियोंको क्रोध उत्पन्न कराते हैं।)
- सुरोंके साथ युद्ध करनेके कारण असुर कहना मिथ्या है
राजवार्तिक अध्याय संख्या ४/१०/४/२१६/७ स्यान्मतं युद्धे देवैः सहास्यन्ति प्रहरणादीनित्यसुरा इतिः तन्न, किं कारणम्। अवर्णवादात्। अवर्णवाद एष देवानामुपरि मिथ्याज्ञाननिमित्तः। कुतः। ते हि सौधर्मादयो देवा महाप्रभावाः, न तेषामुपरि इतरेषां निकृष्टबलानां मनागपि प्रातिलोम्येन वृत्तिरस्ति। अपि च, वैरकारणाभावात् ।।६।। ततो नासुराः सुरैरुध्यन्ते।
= `देवोंके साथ असुरका युद्ध होता है, अतः ये असुर कहलाते हैं' यह देवोंका अवर्णवाद मिथ्यात्वके कारण किया जाता है, क्योंकि, सौधर्मादिक स्वर्गोके देव महाप्रभावशाली हैं। शुभानुष्ठानोंमें रहनेवाले उनके साथ वैरकी कोई सम्भावना नहीं है। निकृष्ट बलवाले असुर उनका किंचित् भी बिगाड़ नहीं कर सकते। इसलिए अल्पप्रभाववाले असुरों से युद्धकी कल्पना ही व्यर्थ है।
- असुरकुमार देवोंके इन्द्रादि व उनका अवस्थान - देखे भवन /२,४