अधर्म: Difference between revisions
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<p id="1">(1) जीव तथा पुदगल की स्थिति में सहायक एक द्रव्य, अपरनाम अधर्मास्तिकाय । यह जीव और पुद्गल की स्थिति में वैसे ही सहकारी हाता है जैसे पथिक के ठहरने में वृक्ष की छाया । यह द्रव्य उदासीन भाव से जीव और पुद्गल की स्थिति में सहायक तो होता है किंतु प्रेरक नहीं होता <span class="GRef"> महापुराण 24.133, 137, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.3 ,7.2 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 16.130 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1">(1) जीव तथा पुदगल की स्थिति में सहायक एक द्रव्य, अपरनाम अधर्मास्तिकाय । यह जीव और पुद्गल की स्थिति में वैसे ही सहकारी हाता है जैसे पथिक के ठहरने में वृक्ष की छाया । यह द्रव्य उदासीन भाव से जीव और पुद्गल की स्थिति में सहायक तो होता है किंतु प्रेरक नहीं होता <span class="GRef"> महापुराण 24.133, 137, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.3 ,7.2 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 16.130 </span></p> | ||
<p id="2">(2) सुखोपलब्धि में बाधक और नरक का कारण― पाप । दया, सत्य, क्षमा, शौच, वितृष्णा, ज्ञान, और वैराग्य, ये तो धर्म है, इनसे विपरीत बातें अधर्म है । <span class="GRef"> महापुराण 5.19,114,10.15, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 6.304 </span></p> | <p id="2">(2) सुखोपलब्धि में बाधक और नरक का कारण― पाप । दया, सत्य, क्षमा, शौच, वितृष्णा, ज्ञान, और वैराग्य, ये तो धर्म है, इनसे विपरीत बातें अधर्म है । <span class="GRef"> महापुराण 5.19,114,10.15, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 6.304 </span></p> | ||
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Revision as of 16:51, 14 November 2020
(1) जीव तथा पुदगल की स्थिति में सहायक एक द्रव्य, अपरनाम अधर्मास्तिकाय । यह जीव और पुद्गल की स्थिति में वैसे ही सहकारी हाता है जैसे पथिक के ठहरने में वृक्ष की छाया । यह द्रव्य उदासीन भाव से जीव और पुद्गल की स्थिति में सहायक तो होता है किंतु प्रेरक नहीं होता महापुराण 24.133, 137, हरिवंशपुराण 4.3 ,7.2 वीरवर्द्धमान चरित्र 16.130
(2) सुखोपलब्धि में बाधक और नरक का कारण― पाप । दया, सत्य, क्षमा, शौच, वितृष्णा, ज्ञान, और वैराग्य, ये तो धर्म है, इनसे विपरीत बातें अधर्म है । महापुराण 5.19,114,10.15, पद्मपुराण 6.304