अनीकदत्त: Difference between revisions
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<p> हरिवंश पुराण सर्ग 34/श्लोक "पूर्व के चतुर्थ भवमें भानू सेठ के शूर नामक राजपुत्र हुआ (97-98)। फिर पूर्व के तीसरे भव में चित्रचूल विद्याधर का पुत्र `गरुड़ध्वज' हुआ (132-133)। फिर दूसरे भवमें गगदेव राजा का पुत्र `गंगरक्षित' हुआ (142-143)। वर्तमान भवमें वसुदेव का पुत्र तथा कृष्ण का भाई था (34/7)। कंस के भयसे गुप्तरूप में `सुदृष्टि' नामक सेठ के घर पालन-पोषण हुआ था (34/7)। धर्म श्रवण कर दीक्षा धारण कर ली (59/115-120)। अंतमें गिरनार पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया (65/16-17)।"</p> | <p> हरिवंश पुराण सर्ग 34/श्लोक "पूर्व के चतुर्थ भवमें भानू सेठ के शूर नामक राजपुत्र हुआ (97-98)। फिर पूर्व के तीसरे भव में चित्रचूल विद्याधर का पुत्र `गरुड़ध्वज' हुआ (132-133)। फिर दूसरे भवमें गगदेव राजा का पुत्र `गंगरक्षित' हुआ (142-143)। वर्तमान भवमें वसुदेव का पुत्र तथा कृष्ण का भाई था (34/7)। कंस के भयसे गुप्तरूप में `सुदृष्टि' नामक सेठ के घर पालन-पोषण हुआ था (34/7)। धर्म श्रवण कर दीक्षा धारण कर ली (59/115-120)। अंतमें गिरनार पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया (65/16-17)।"</p> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p> वसुदेव और देव की का तृतीय पुत्र । नृपदत्त और देवपाल इसके अग्रज तथा अनीकपाल । शत्रुघ्न, जितशत्रु और कृष्ण अनुज थे । <span class="GRef"> महापुराण 71.295-296, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33.170-171 </span>पाँचवें पूर्वभव में यह मथुरा के करोड़पति भानु सेठ का पुत्र था, और चौथे पूर्वभव में सौधर्म स्वर्ग में देव था, वहाँ से च्युत होकर यह तीसरे पूर्वभव में नित्यालोक नगर के राजा चित्रचूल और उनकी रानी मनोहारी का पुत्र हुआ, दूसरे पूर्वभव में माहेंद्र स्वर्ग में सामानिक जाति का देव और वहाँ से च्युत होकर प्रथम पूर्वभव में यह हस्तिनापुर मे राजा गंगदेव और उसकी रानी नंदयशा का गंगरक्षित नाम का पुत्र हुआ था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33.97-98, 130, 133, 140-143 </span>सुदृष्टि सेठ के घर उसकी अलका सेठानी द्वारा इसका पालन किया गया था । इसकी बत्तीस स्त्रियाँ थीं । अंत में यह नेमिनाथ के समवसरण मे उनसे धर्म श्रवण कर दीक्षित हो गया था गिरिनार पर्वत से इसने मोक्ष प्राप्त किया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 59. 114-124,65.17 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> वसुदेव और देव की का तृतीय पुत्र । नृपदत्त और देवपाल इसके अग्रज तथा अनीकपाल । शत्रुघ्न, जितशत्रु और कृष्ण अनुज थे । <span class="GRef"> महापुराण 71.295-296, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33.170-171 </span>पाँचवें पूर्वभव में यह मथुरा के करोड़पति भानु सेठ का पुत्र था, और चौथे पूर्वभव में सौधर्म स्वर्ग में देव था, वहाँ से च्युत होकर यह तीसरे पूर्वभव में नित्यालोक नगर के राजा चित्रचूल और उनकी रानी मनोहारी का पुत्र हुआ, दूसरे पूर्वभव में माहेंद्र स्वर्ग में सामानिक जाति का देव और वहाँ से च्युत होकर प्रथम पूर्वभव में यह हस्तिनापुर मे राजा गंगदेव और उसकी रानी नंदयशा का गंगरक्षित नाम का पुत्र हुआ था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33.97-98, 130, 133, 140-143 </span>सुदृष्टि सेठ के घर उसकी अलका सेठानी द्वारा इसका पालन किया गया था । इसकी बत्तीस स्त्रियाँ थीं । अंत में यह नेमिनाथ के समवसरण मे उनसे धर्म श्रवण कर दीक्षित हो गया था गिरिनार पर्वत से इसने मोक्ष प्राप्त किया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 59. 114-124,65.17 </span></p> | ||
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Revision as of 16:51, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
हरिवंश पुराण सर्ग 34/श्लोक "पूर्व के चतुर्थ भवमें भानू सेठ के शूर नामक राजपुत्र हुआ (97-98)। फिर पूर्व के तीसरे भव में चित्रचूल विद्याधर का पुत्र `गरुड़ध्वज' हुआ (132-133)। फिर दूसरे भवमें गगदेव राजा का पुत्र `गंगरक्षित' हुआ (142-143)। वर्तमान भवमें वसुदेव का पुत्र तथा कृष्ण का भाई था (34/7)। कंस के भयसे गुप्तरूप में `सुदृष्टि' नामक सेठ के घर पालन-पोषण हुआ था (34/7)। धर्म श्रवण कर दीक्षा धारण कर ली (59/115-120)। अंतमें गिरनार पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया (65/16-17)।"
पुराणकोष से
वसुदेव और देव की का तृतीय पुत्र । नृपदत्त और देवपाल इसके अग्रज तथा अनीकपाल । शत्रुघ्न, जितशत्रु और कृष्ण अनुज थे । महापुराण 71.295-296, हरिवंशपुराण 33.170-171 पाँचवें पूर्वभव में यह मथुरा के करोड़पति भानु सेठ का पुत्र था, और चौथे पूर्वभव में सौधर्म स्वर्ग में देव था, वहाँ से च्युत होकर यह तीसरे पूर्वभव में नित्यालोक नगर के राजा चित्रचूल और उनकी रानी मनोहारी का पुत्र हुआ, दूसरे पूर्वभव में माहेंद्र स्वर्ग में सामानिक जाति का देव और वहाँ से च्युत होकर प्रथम पूर्वभव में यह हस्तिनापुर मे राजा गंगदेव और उसकी रानी नंदयशा का गंगरक्षित नाम का पुत्र हुआ था । हरिवंशपुराण 33.97-98, 130, 133, 140-143 सुदृष्टि सेठ के घर उसकी अलका सेठानी द्वारा इसका पालन किया गया था । इसकी बत्तीस स्त्रियाँ थीं । अंत में यह नेमिनाथ के समवसरण मे उनसे धर्म श्रवण कर दीक्षित हो गया था गिरिनार पर्वत से इसने मोक्ष प्राप्त किया था । हरिवंशपुराण 59. 114-124,65.17