अनोजीविका: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> सागार धर्मामृत/5/21-23 </span><span class="SanskritText">व्रतयेत्खरकर्मात्र मलान् पंचदश त्यजेत् । वृत्तिं वनाग्ंयनस्स्फोटभाटकैर्यंत्रपीडनम् ।21। निर्लांछनासतीपोषौ सर:-शोषं दवप्रदाम् । विषलाक्षादंतकेशरसवाणिज्यमंगिरुक् ।22। इति केचिन्न तच्चारु लोके सावद्यकर्मणाम् । अगण्यत्वात्प्रणेयं वा तदप्यतिजडान् प्रति।23। </span> | |||
= <span class="HindiText">श्रावकों को प्राणियों को दु:ख देने वाले खर कर्म अर्थात् क्रूर व्यापार सब छोड़ देने चाहिए, तथा उनके पंद्रह अतिचार भी छोड़ने चाहिए। वे 15 कर्म ये हैं-1. वनजीविका, 2.अग्निजीविका, 3. '''अनोजीविका''' (शकटजीविका), 4. स्फोटजीविका, 5. भाटजीविका, 6. यंत्रपीडन, 7. निर्लांछन, 8. असतीपोष, 9. सर:शोष, 10. दवप्रद, 11. विषवाणिज्य, 12. लाक्षावाणिज्य, 13. दंतवाणिज्य, 14. केशवाणिज्य और 15. रस वाणिज्य।21-23।</span></p><br> | |||
<span class="HindiText">स्वयं गाड़ी, रथ तथा उसके चक्र वगैरह बनाना अथवा दूसरों से बनवाना, गाड़ी जोतने का व्यापार स्वयं करना अथवा दूसरों से करवाना, गाड़ी आदि के बेचने का व्यापार करना '''अनोजीविका''' है। </span><br> | |||
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Latest revision as of 16:48, 23 December 2022
सागार धर्मामृत/5/21-23 व्रतयेत्खरकर्मात्र मलान् पंचदश त्यजेत् । वृत्तिं वनाग्ंयनस्स्फोटभाटकैर्यंत्रपीडनम् ।21। निर्लांछनासतीपोषौ सर:-शोषं दवप्रदाम् । विषलाक्षादंतकेशरसवाणिज्यमंगिरुक् ।22। इति केचिन्न तच्चारु लोके सावद्यकर्मणाम् । अगण्यत्वात्प्रणेयं वा तदप्यतिजडान् प्रति।23। = श्रावकों को प्राणियों को दु:ख देने वाले खर कर्म अर्थात् क्रूर व्यापार सब छोड़ देने चाहिए, तथा उनके पंद्रह अतिचार भी छोड़ने चाहिए। वे 15 कर्म ये हैं-1. वनजीविका, 2.अग्निजीविका, 3. अनोजीविका (शकटजीविका), 4. स्फोटजीविका, 5. भाटजीविका, 6. यंत्रपीडन, 7. निर्लांछन, 8. असतीपोष, 9. सर:शोष, 10. दवप्रद, 11. विषवाणिज्य, 12. लाक्षावाणिज्य, 13. दंतवाणिज्य, 14. केशवाणिज्य और 15. रस वाणिज्य।21-23।
स्वयं गाड़ी, रथ तथा उसके चक्र वगैरह बनाना अथवा दूसरों से बनवाना, गाड़ी जोतने का व्यापार स्वयं करना अथवा दूसरों से करवाना, गाड़ी आदि के बेचने का व्यापार करना अनोजीविका है।
- देखें सावद्य - 5।