असद्वेद्यास्रव: Difference between revisions
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Revision as of 16:18, 19 August 2020
असाताकारी आस्रव । निज और पर दोनों के विषय में होने व दु:ख, शोक, वध, आक्रंदन, ताप और परिवेदन ये इस आस्रव के द्वार हैं । हरिवंशपुराण 58.93