आकृति: Difference between revisions
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Revision as of 16:18, 19 August 2020
न्यायदर्शन सूत्र/ मू.व.भा/2/2/65/143 आकृतिर्जातिलिंगाख्या ॥61॥ [सा च नान्यसत्त्वावयवानां तदवयवानां च नियत्ताद् व्यूहादिति।] नियतायवयवव्यूहाः खलु सत्त्वावयवा जातिलिंगः। शिरसा पादेन गामनुमिंवंति। नियते च सत्त्वावयवानां व्यूहे सति गोत्वं प्रख्यायत इति।
= जिससे जाति और उसके लिंग प्रसिद्ध किये जायें उसे आकृति कहते हैं। और उसके अंगोकी नियत रचना जातिका चिह्न हैं। शिर और पादोंसे गायको पहिचानते हैं। अवयवोंके प्रसिद्ध होनेसे गोत्व प्रसिद्ध होता है कि `यह गौ है' इत्यादि।
पंचाध्यायी / पूर्वार्ध श्लोक 48 शक्तिर्लक्ष्मविशेषो धर्मो रूपं गुणः स्वभावश्च। प्रकृतिः शीलं चाकृतिरेकार्थवाचका अमी शब्दाः ॥48॥
= शक्ति लक्ष्मलक्षण विशेषधर्मरूप गुण तथा स्वभाव प्रकृति-शील और आकृति ये सब शब्द एक ही अर्थके वाचक हैं।