आचाम्लवर्धन: Difference between revisions
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<p> एक उपवास । इसे कर्मबंधन-विनाशक, स्वर्ग एव परमपद प्रदायी, परम तप कहा है <span class="GRef"> महापुराण 7.42, 77,71.456 </span>इसमें प्रथम दिन उपवास तथा दूसरे दिन एक बेर बरावर, तीसरे दिन दो बेर बरावर इस प्रकार बढ़ाते हुए ग्यारहवें दिन दस बेर बरावर भोजन बढ़ाया जाता है । पश्चात् एक-एक बेर बरावर भोजन घटाकर अंत मे उपवास किया जाता है । पूर्वार्ध के दस दिनों में नीरस भोजन करना होता है तथा उत्तरार्ध के दस दिनों मे पहली बार जो भोजन परोसा जाये वही ग्रहण किया जाता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.95-96 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> एक उपवास । इसे कर्मबंधन-विनाशक, स्वर्ग एव परमपद प्रदायी, परम तप कहा है <span class="GRef"> महापुराण 7.42, 77,71.456 </span>इसमें प्रथम दिन उपवास तथा दूसरे दिन एक बेर बरावर, तीसरे दिन दो बेर बरावर इस प्रकार बढ़ाते हुए ग्यारहवें दिन दस बेर बरावर भोजन बढ़ाया जाता है । पश्चात् एक-एक बेर बरावर भोजन घटाकर अंत मे उपवास किया जाता है । पूर्वार्ध के दस दिनों में नीरस भोजन करना होता है तथा उत्तरार्ध के दस दिनों मे पहली बार जो भोजन परोसा जाये वही ग्रहण किया जाता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.95-96 </span></p> | ||
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Revision as of 16:52, 14 November 2020
एक उपवास । इसे कर्मबंधन-विनाशक, स्वर्ग एव परमपद प्रदायी, परम तप कहा है महापुराण 7.42, 77,71.456 इसमें प्रथम दिन उपवास तथा दूसरे दिन एक बेर बरावर, तीसरे दिन दो बेर बरावर इस प्रकार बढ़ाते हुए ग्यारहवें दिन दस बेर बरावर भोजन बढ़ाया जाता है । पश्चात् एक-एक बेर बरावर भोजन घटाकर अंत मे उपवास किया जाता है । पूर्वार्ध के दस दिनों में नीरस भोजन करना होता है तथा उत्तरार्ध के दस दिनों मे पहली बार जो भोजन परोसा जाये वही ग्रहण किया जाता है । हरिवंशपुराण 34.95-96