एकावली: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p id="1"> (1) निर्मल चिकने मोतियों से गुंफित हार । इस हार में एक ही लड़ होती है । बीच में एक बड़ा मणि लगता है । इसे मणिमध्यमा यष्टि भी कहा है । <span class="GRef"> महापुराण 15.82, 16.50 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) निर्मल चिकने मोतियों से गुंफित हार । इस हार में एक ही लड़ होती है । बीच में एक बड़ा मणि लगता है । इसे मणिमध्यमा यष्टि भी कहा है । <span class="GRef"> महापुराण 15.82, 16.50 </span></p> | ||
<p id="2">(2) एक व्रत । इसमें एक उपवास और एक पारणा के क्रम से चौबीस उपवास और चौबीस ही पारणाएँ की जाती है । इस प्रकार यह व्रत अड़तालीस दिन में समाप्त होता हैं । अखंडसुख की प्राप्ति इसका फल है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.67 </span></p> | <p id="2">(2) एक व्रत । इसमें एक उपवास और एक पारणा के क्रम से चौबीस उपवास और चौबीस ही पारणाएँ की जाती है । इस प्रकार यह व्रत अड़तालीस दिन में समाप्त होता हैं । अखंडसुख की प्राप्ति इसका फल है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.67 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> |
Revision as of 16:52, 14 November 2020
(1) निर्मल चिकने मोतियों से गुंफित हार । इस हार में एक ही लड़ होती है । बीच में एक बड़ा मणि लगता है । इसे मणिमध्यमा यष्टि भी कहा है । महापुराण 15.82, 16.50
(2) एक व्रत । इसमें एक उपवास और एक पारणा के क्रम से चौबीस उपवास और चौबीस ही पारणाएँ की जाती है । इस प्रकार यह व्रत अड़तालीस दिन में समाप्त होता हैं । अखंडसुख की प्राप्ति इसका फल है । हरिवंशपुराण 34.67