कार्यसमा जाति: Difference between revisions
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न्यायदर्शन सूत्र/ मू. व टी./5/1/37/304<span class="SanskritText"> प्रयत्नकार्यानेकत्वात्कार्यसम:।37। प्रयत्नानंतरीयकत्वादनित्य: शब्द इति यस्य प्रयत्नानंतरमात्मलाभस्तत् खल्वभूत्वा भवति यथा घटादिकार्यमनित्यमिति च भूत्वा न भवतीत्येतद्विज्ञायते। एवमवस्थिते प्रयत्नकार्यानेकत्वादिति प्रतिषेध उच्यते।</span>=<span class="HindiText">प्रयत्न के आनंतरीयकत्व (प्रयत्न से उत्पन्न होने वाला) शब्द अनित्य है जिसके अनंतर स्वरूप का लाभ है, वह न होकर होता है, जैसे घटादि कार्य अनित्य है, और जो होकर नहीं होता है, ऐसी अवस्था रहते</span> <span class="SanskritText">‘प्रयत्नकार्यानेकत्वात्’</span> <span class="HindiText">यह प्रतिषेध कहा जाता है। ( श्लोकवार्तिक 4/ न्या.446/542/5)। </span> | <span class="GRef"> न्यायदर्शन सूत्र/ </span>मू. व टी./5/1/37/304<span class="SanskritText"> प्रयत्नकार्यानेकत्वात्कार्यसम:।37। प्रयत्नानंतरीयकत्वादनित्य: शब्द इति यस्य प्रयत्नानंतरमात्मलाभस्तत् खल्वभूत्वा भवति यथा घटादिकार्यमनित्यमिति च भूत्वा न भवतीत्येतद्विज्ञायते। एवमवस्थिते प्रयत्नकार्यानेकत्वादिति प्रतिषेध उच्यते।</span>=<span class="HindiText">प्रयत्न के आनंतरीयकत्व (प्रयत्न से उत्पन्न होने वाला) शब्द अनित्य है जिसके अनंतर स्वरूप का लाभ है, वह न होकर होता है, जैसे घटादि कार्य अनित्य है, और जो होकर नहीं होता है, ऐसी अवस्था रहते</span> <span class="SanskritText">‘प्रयत्नकार्यानेकत्वात्’</span> <span class="HindiText">यह प्रतिषेध कहा जाता है। (<span class="GRef"> श्लोकवार्तिक 4/ </span>न्या.446/542/5)। </span> | ||
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Revision as of 12:59, 14 October 2020
न्यायदर्शन सूत्र/ मू. व टी./5/1/37/304 प्रयत्नकार्यानेकत्वात्कार्यसम:।37। प्रयत्नानंतरीयकत्वादनित्य: शब्द इति यस्य प्रयत्नानंतरमात्मलाभस्तत् खल्वभूत्वा भवति यथा घटादिकार्यमनित्यमिति च भूत्वा न भवतीत्येतद्विज्ञायते। एवमवस्थिते प्रयत्नकार्यानेकत्वादिति प्रतिषेध उच्यते।=प्रयत्न के आनंतरीयकत्व (प्रयत्न से उत्पन्न होने वाला) शब्द अनित्य है जिसके अनंतर स्वरूप का लाभ है, वह न होकर होता है, जैसे घटादि कार्य अनित्य है, और जो होकर नहीं होता है, ऐसी अवस्था रहते ‘प्रयत्नकार्यानेकत्वात्’ यह प्रतिषेध कहा जाता है। ( श्लोकवार्तिक 4/ न्या.446/542/5)।