कृतयुग: Difference between revisions
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<p> युग के आदि ब्रह्मा वृषभदेव द्वारा प्रारंभ किया गया कर्मयुग । तृतीय काल के अंत में आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन इसका शुभारंभ हुआ था । इस काल में असि-मसि आदि छ: कर्मों द्वारा प्रजा के अत्यंत संतुष्ट एवं सुखी होने के कारण यह युग कृतयुग कहलाया । <span class="GRef"> महापुराण 3.204, 16.189-190, 41.5, 46, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 3.259, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 9.40 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> युग के आदि ब्रह्मा वृषभदेव द्वारा प्रारंभ किया गया कर्मयुग । तृतीय काल के अंत में आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन इसका शुभारंभ हुआ था । इस काल में असि-मसि आदि छ: कर्मों द्वारा प्रजा के अत्यंत संतुष्ट एवं सुखी होने के कारण यह युग कृतयुग कहलाया । <span class="GRef"> महापुराण 3.204, 16.189-190, 41.5, 46, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 3.259, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 9.40 </span></p> | ||
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Revision as of 16:53, 14 November 2020
युग के आदि ब्रह्मा वृषभदेव द्वारा प्रारंभ किया गया कर्मयुग । तृतीय काल के अंत में आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन इसका शुभारंभ हुआ था । इस काल में असि-मसि आदि छ: कर्मों द्वारा प्रजा के अत्यंत संतुष्ट एवं सुखी होने के कारण यह युग कृतयुग कहलाया । महापुराण 3.204, 16.189-190, 41.5, 46, पद्मपुराण 3.259, हरिवंशपुराण 9.40