चामुंडराय १: Difference between revisions
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<p class="HindiText">आपका घरू नाम गोमट्ट था, | <p class="HindiText">आपका घरू नाम गोमट्ट था, <span class="GRef"> गोम्मटसार जीवकांड 735 </span>में आपको इस नाम से आर्शीवाद दिया गया है। इसी के कारण श्रवणबेलगोल पर इनके द्वारा स्थापित विशालकाय भगवान् बाहुबली की प्रतिमा का नाम गोमटेश्वर पड़ गया, और इनकी प्रेरणा से आचार्य नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती द्वारा रचित सिद्धांत ग्रंथ का नाम भी गोमट्टसार पड़ गया। (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/967-971 </span>) (जै./1/389), ती./4/27)। आप गंगवंशी राजा राजमल्ल के मंत्री थे, तथा एक महान् योद्धा भी। आप आचार्य अजितसेन के शिष्य थे तथा स्वयं बड़े सिद्धांतवेत्ता थे। पीछे से आ.नेमिचंद्र के भी शिष्य रहे हैं। इन्हीं के निमित्त गोमट्टासार ग्रंथ की रचना हुई थी। निम्न रचनाएँ इनकी अपूर्व देन हैं–वीरमातंडी (गोमट्टसार की कन्नड़ वृत्ति); तत्त्वार्थ राजवार्तिक संग्रह; चारित्रसार; त्रिपष्टि शलाका पुरुष चरित। </p> | ||
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Revision as of 12:59, 14 October 2020
आपका घरू नाम गोमट्ट था, गोम्मटसार जीवकांड 735 में आपको इस नाम से आर्शीवाद दिया गया है। इसी के कारण श्रवणबेलगोल पर इनके द्वारा स्थापित विशालकाय भगवान् बाहुबली की प्रतिमा का नाम गोमटेश्वर पड़ गया, और इनकी प्रेरणा से आचार्य नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती द्वारा रचित सिद्धांत ग्रंथ का नाम भी गोमट्टसार पड़ गया। ( गोम्मटसार कर्मकांड/967-971 ) (जै./1/389), ती./4/27)। आप गंगवंशी राजा राजमल्ल के मंत्री थे, तथा एक महान् योद्धा भी। आप आचार्य अजितसेन के शिष्य थे तथा स्वयं बड़े सिद्धांतवेत्ता थे। पीछे से आ.नेमिचंद्र के भी शिष्य रहे हैं। इन्हीं के निमित्त गोमट्टासार ग्रंथ की रचना हुई थी। निम्न रचनाएँ इनकी अपूर्व देन हैं–वीरमातंडी (गोमट्टसार की कन्नड़ वृत्ति); तत्त्वार्थ राजवार्तिक संग्रह; चारित्रसार; त्रिपष्टि शलाका पुरुष चरित।
समय–
- राजा राजमल्ल (वि.सं.1031-1040) के समय के अनुसार आपका समय वि.श.11 का पूर्वार्ध (ई.श.10-11) आता है।
- बाहुबलि चरित श्लो नं.43 में कल्की शक सं.600 (ई.981) में बाहुबली भगवान् की प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराने का उल्लेख है। उसके अनुसार भी लगभग यही समय सिद्ध होता है, क्योंकि एक दृष्टि से कल्की का राज्य वी.नि.908 में प्रारंभ हुआ था। (ती./4/27)।
- शक सं.900 (ई.978) में लिखा इनका चामुंडराय पुराण प्रसिद्ध है। (ती./4/28)।
- परंतु थामस सी राइस के अनुसार इनके द्वारा मैसूर प्रांत में विल्लाल नामक राज्यवंश की स्थापना घटित नहीं होती क्योंकि उस का अस्तित्व ई.714 में पाया जाता है (जैन साहित्य इति./पृ.267)।