जटी: Difference between revisions
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<p> परिव्राजक । भगवान् वृषभदेव के साथ दीक्षित हुए वे साधु जो उनके मार्ग से च्युत हो गये थे, जिन्होंने शरीर को भस्मावृत कर अपनी जटाएं बढ़ा ली थी, प्राणों की रक्षा के लिए शीत से पीड़ित होकर वस्त्ररूप में वृक्षों की छाल पहिनने लगे थे, स्वच्छ जल और कंदमूल भक्षण करने लगे थे, वनों में रहने के लिए जिन्होंने कुटियों का निर्माण कर लिया था और फूलों के उपहार से ये भगवान् के चरणों को पूजते थे । वृषभदेव इनके आराध्यदेव थे । <span class="GRef"> महापुराण 18. 49-60 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> परिव्राजक । भगवान् वृषभदेव के साथ दीक्षित हुए वे साधु जो उनके मार्ग से च्युत हो गये थे, जिन्होंने शरीर को भस्मावृत कर अपनी जटाएं बढ़ा ली थी, प्राणों की रक्षा के लिए शीत से पीड़ित होकर वस्त्ररूप में वृक्षों की छाल पहिनने लगे थे, स्वच्छ जल और कंदमूल भक्षण करने लगे थे, वनों में रहने के लिए जिन्होंने कुटियों का निर्माण कर लिया था और फूलों के उपहार से ये भगवान् के चरणों को पूजते थे । वृषभदेव इनके आराध्यदेव थे । <span class="GRef"> महापुराण 18. 49-60 </span></p> | ||
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Revision as of 16:53, 14 November 2020
परिव्राजक । भगवान् वृषभदेव के साथ दीक्षित हुए वे साधु जो उनके मार्ग से च्युत हो गये थे, जिन्होंने शरीर को भस्मावृत कर अपनी जटाएं बढ़ा ली थी, प्राणों की रक्षा के लिए शीत से पीड़ित होकर वस्त्ररूप में वृक्षों की छाल पहिनने लगे थे, स्वच्छ जल और कंदमूल भक्षण करने लगे थे, वनों में रहने के लिए जिन्होंने कुटियों का निर्माण कर लिया था और फूलों के उपहार से ये भगवान् के चरणों को पूजते थे । वृषभदेव इनके आराध्यदेव थे । महापुराण 18. 49-60