अणु: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
== सिद्धांतकोष से == | |||
<p class="SanskritPrakritSentence">[[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या ५/२५,१/४९१/११ प्रदेशमात्रभाविमिः स्पर्शादिभिः गुणैस्सततं परिणमन्त इत्येवं अण्यन्ते शब्द्यन्ते ये ते अणवः। सौक्ष्म्यादात्मादय आत्ममध्या आत्मान्ताश्च। </p> | <p class="SanskritPrakritSentence">[[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या ५/२५,१/४९१/११ प्रदेशमात्रभाविमिः स्पर्शादिभिः गुणैस्सततं परिणमन्त इत्येवं अण्यन्ते शब्द्यन्ते ये ते अणवः। सौक्ष्म्यादात्मादय आत्ममध्या आत्मान्ताश्च। </p> | ||
<p class="HindiSentence">= प्रदेश मात्र-भावि स्पर्शादि गुणों से जो परिणमन करते हैं और इसी रूप से शब्द के विषय होते हैं वे अणु हैं। वे अत्यन्त सूक्ष्म हैं, इनका आदि मध्य अन्त एक ही है।</p> | <p class="HindiSentence">= प्रदेश मात्र-भावि स्पर्शादि गुणों से जो परिणमन करते हैं और इसी रूप से शब्द के विषय होते हैं वे अणु हैं। वे अत्यन्त सूक्ष्म हैं, इनका आदि मध्य अन्त एक ही है।</p> | ||
Line 13: | Line 14: | ||
[[Category:द्रव्यसंग्रह]] | [[Category:द्रव्यसंग्रह]] | ||
[[Category:तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा]] | [[Category:तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा]] | ||
== पुराणकोष से == | |||
<p> पुद्गल का अविभागी अत्यन्त सूक्ष्म अंश । अणुओं से स्कन्ध बनता है इसमें आठ स्पर्शों में से कोई भी दो अविरुद्ध स्पर्श, एक वर्ण, एक गन्ध और एक रस रहता है । ये आकार में गोल, पर्यायों की अपेक्षा अनित्य, अन्यथा नित्य होते हैं । महापुराण 24.148, हरिवंशपुराण 58.55 वीरवरांग चरित्र, 16.117</p> | |||
<noinclude> | |||
[[ अणीमयान | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ अणुमान | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: पुराण-कोष]] | |||
[[Category: अ]] |
Revision as of 13:41, 5 May 2020
== सिद्धांतकोष से ==
राजवार्तिक अध्याय संख्या ५/२५,१/४९१/११ प्रदेशमात्रभाविमिः स्पर्शादिभिः गुणैस्सततं परिणमन्त इत्येवं अण्यन्ते शब्द्यन्ते ये ते अणवः। सौक्ष्म्यादात्मादय आत्ममध्या आत्मान्ताश्च।
= प्रदेश मात्र-भावि स्पर्शादि गुणों से जो परिणमन करते हैं और इसी रूप से शब्द के विषय होते हैं वे अणु हैं। वे अत्यन्त सूक्ष्म हैं, इनका आदि मध्य अन्त एक ही है।
पंचास्तिकाय संग्रह / तात्पर्यवृत्ति / गाथा संख्या ४/१२ अणुशब्देनात्र प्रदेशा गृह्यन्ते।
= अणु शब्द से यहाँ प्रदेश ग्रहण किये जाते हैं।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा संख्या २६/७३/११ अणुशब्देन व्यवहारेण पुद्गला उच्यन्ते....वस्तुवृत्त्या पुनरणुशब्दः सूक्ष्मवाचकः।
= अणु इस शब्द-द्वारा व्यवहार नय से पुद्गल कहे जाते हैं। वास्तव में अणु शब्द सूक्ष्म का वाचक है।
अणुवयरयणपईव - अपर नाम अणुव्रतरत्नप्रदीप है। कवि लक्खण (वि. १३१३) कृत श्रावकाचार विषयक अपभ्रंश ग्रन्थ।
(तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा, पृष्ठ संख्या ४/१७६)।
पुराणकोष से
पुद्गल का अविभागी अत्यन्त सूक्ष्म अंश । अणुओं से स्कन्ध बनता है इसमें आठ स्पर्शों में से कोई भी दो अविरुद्ध स्पर्श, एक वर्ण, एक गन्ध और एक रस रहता है । ये आकार में गोल, पर्यायों की अपेक्षा अनित्य, अन्यथा नित्य होते हैं । महापुराण 24.148, हरिवंशपुराण 58.55 वीरवरांग चरित्र, 16.117