तपोशुद्धि व्रत: Difference between revisions
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हरिवंशपुराण/34/100 मंत्र–2,1,1,5,1,1+19,30,10,5,2,1। विधि–अनशन के 2; अवमौदर्य का 1; वृत्ति परिसंख्यान का 1; रसपरित्याग के 5; विविक्त शय्यासन का 1; कायक्लेश का 1; इस प्रकार बाह्य तप के 11 उपवास। प्रायश्चित्त के 19; विनय के 30, वैयावृत्ति के 10, स्वाध्याय के 5; व्युत्सर्ग के 2; ध्यान का 1; इस प्रकार अंतरंग तप के 67 उपवास। कुल–78 उपवास बीच के 12 स्थानों में एक पारणा। | <span class="GRef"> हरिवंशपुराण/34/100 </span>मंत्र–2,1,1,5,1,1+19,30,10,5,2,1। विधि–अनशन के 2; अवमौदर्य का 1; वृत्ति परिसंख्यान का 1; रसपरित्याग के 5; विविक्त शय्यासन का 1; कायक्लेश का 1; इस प्रकार बाह्य तप के 11 उपवास। प्रायश्चित्त के 19; विनय के 30, वैयावृत्ति के 10, स्वाध्याय के 5; व्युत्सर्ग के 2; ध्यान का 1; इस प्रकार अंतरंग तप के 67 उपवास। कुल–78 उपवास बीच के 12 स्थानों में एक पारणा। | ||
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Revision as of 13:00, 14 October 2020
हरिवंशपुराण/34/100 मंत्र–2,1,1,5,1,1+19,30,10,5,2,1। विधि–अनशन के 2; अवमौदर्य का 1; वृत्ति परिसंख्यान का 1; रसपरित्याग के 5; विविक्त शय्यासन का 1; कायक्लेश का 1; इस प्रकार बाह्य तप के 11 उपवास। प्रायश्चित्त के 19; विनय के 30, वैयावृत्ति के 10, स्वाध्याय के 5; व्युत्सर्ग के 2; ध्यान का 1; इस प्रकार अंतरंग तप के 67 उपवास। कुल–78 उपवास बीच के 12 स्थानों में एक पारणा।