दत्त: Difference between revisions
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Revision as of 16:24, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से ==
महापुराण/66/103-106 पूर्व के दूसरे भव में पिता का विशेष प्रेम न था। इस कारण युवराजपद प्राप्त न कर सके। इसलिए पिता से द्वेषपूर्वक दीक्षा धारणकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुए। वहाँ से वर्तमान भव में सप्तम नारायण हुए।–देखें शलाका पुरुष - 4।
पुराणकोष से
(1) सातवें नारायण । अपरनाम दत्तक । यह वाराणसी नगरी के राजा अग्निशिख और उसकी दूसरी रानी केशवती का पुत्र तथा सातवें बलभद्र नंदिमित्र का छोटा भाई था । यह तीर्थंकर मल्लिनाथ के तीर्थ में उत्पन्न हुआ था । इसकी आयु बत्तीस हजार वर्ष, शारीरिक अवगाहना बाईस धनुष और वर्ण इंद्रनील मणि के समान था । विद्याधर-नृप बलींद्र इसके भद्रक्षीर नामक हाथी को लेना चाहता था । उसे न देने पर इसके साथ उसका युद्ध हुआ । युद्ध में बलींद्र ने इसे मारने के लिए चक्र चलाया था किंतु चक्र प्रदक्षिणा देकर इसकी दाहिनी भुजा पर आ गया । इसने इसी चक्र से बलींद्र का सिर काटा था । अंत में यह मरकर सातवें नरक गया । आयु में इसने दो सौ वर्ष कुमारकाल में, पचास वर्ष मंडलीक-अवस्था में, पचास वर्ष दिग्विजय में व्यतीत कर इकतीस हजार सात सौ वर्ष तक राज्य किया था । ये दोनों भाई इससे पूर्व तीसरे भव में अयोध्या नगर के राजपुत्र थे । पिता के प्रिय न होने से थे युवराज पद प्राप्त नहीं कर सके । इस पद की प्राप्ति में मंत्री को बाधक जानकर उस पर बैर बाँध संयमी हुए और आयु के अंत में मरकर सौधर्म स्वर्ग में सुविशाल नामक विमान में देव और वहाँ से च्युत होकर बलभद्र हुए । महापुराण 66.102-122, पद्मपुराण 20.207, 212-228, हरिवंशपुराण 53. 38, 60.289, 530, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 112
(2) तीर्थंकर चंद्रप्रभ के प्रथम गणधर । महापुराण 54.244 अपरनाम दत्तक । हरिवंशपुराण 53.38
(3) तीर्थंकर नमिनाथ को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्तकर्त्ता । महापुराण 69.31, 52-56