दु:षमा-सुषमा: Difference between revisions
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Revision as of 16:24, 19 August 2020
अवसर्पिणी काल का चतुर्थ और उत्सर्पिणी काल का तीसरा भेद । कर्मभूमि अवसर्पिणी के इसी काल से आरंभ होती है । त्रेसठ शलाकापुरुषों का जन्म इसी काल में होता है । काल की स्थिति बयालीस हजार वर्ष कम एक कोड़ाकोड़ी सागर होती है । इसके आदि में मनुष्यों की आयु एक पूर्व कोटि, शरीर पाँच सौ धनुष उन्नत तथा पंचवर्णों की प्रभा से युक्त होगा । वे प्रतिदिन एक बार आहार करेंगे । महापुराण 3. 17-18, महापुराण 20.81 हरिवंशपुराण 2.22 वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101-104 उत्सर्पिणी के इस तीसरे काल में मनुष्यों का शरीर सात हाथ ऊँचा होगा ओर आयु एक सौ बीस वर्ष होगी । इनमें प्रथम तीर्थंकर सोलह में कुलकर होंगे । सौ वर्ष उनकी आयु होगी और शरीर सात हाथ ऊँचा होगा । अंतिम तीर्थंकर की आयु एक करोड़ वर्ष पूर्व तथा शरीर की अवगाहना पाँच सौ धनुष होगी । चौबीस तीर्थंकर होंगे उनके नाम ये हैं― महापद्म, सुरदेव, सुपार्श्व, स्वयंप्रभा सर्वात्मभूत, देवपुत्र, कुलपुत्र, उदंक, प्रोष्ठिल, जयकीर्ति, मुनिसुव्रत, अरनाथ, अपाय, निष्कषाय, विपुल, निर्मल, चित्रगुप्त, समाधिगुप्त, स्वयंभू, अनिवर्ती, विजय, विमल, देवपाल और अनंतवीर्य । इसी काल में उत्कृष्ट लक्ष्मी के धारक बारह चक्रवर्ती होंगे—भरत, दीर्घदत्त, मुक्तदंत, गुड़दंत, श्रीषेण, श्रीभूति, श्रीकांत, पद्म, महापद्म, विचित्रवाहन, विमलवाहन और अरिष्टसेन । नौ बलभद्र होंगे― चंद्र, महाचंद्र, चक्रधर, हरिचंद्र, सिंहचंद, वरचंद्र, पूर्णचंद्र, सुचंद्र और श्रीचंद्र । इनके अर्चक नौ नारायण होंगे― नंदी, नंदिमित्र, नंदिषेण, नंदिभूति, सुप्रसिद्ध-बल, महाबल, अतिबल, त्रिपृष्ठ और द्विपृष्ठ इनके नौ प्रतिनारायण होंगे । महापुराण 76. 470-489