देहमान: Difference between revisions
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<p> जीवों की शारीरिक अवगाहना का प्रमाण । सूक्ष्मनिगोदिया लब्धपर्याप्तक जीव का शरीर अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण होता है । एकेंद्रिय से पंचेंद्रिय जीव इससे छोटे नहीं होते । एकेंद्रिय-जीव कमल के देह का उत्कृष्ट प्रमाण एक हजार योजन तथा एक कोस होता है । द्वींद्रिय जीवों में सबसे बड़ी अवगाहना शंख की बारहवें योजन प्रमाण, त्रींद्रिय जीवों में कानखजूरा की तीन कोस प्रमाण, चतुरिंद्रिय जीवों में भ्रमर की एक योजन (चार कोस) प्रमाण तथा पंचेंद्रिय जीवों में सबसे बड़ी स्वयंभू-रमण-समुद्र के राघव-मच्छ की एक हजार योजन प्रमाण होती है । पंचेंद्रियों में सूक्ष्म अवगाहना सिवर्धक मच्छ की है । सम्मूर्च्छन जन्म से उत्पन्न अपर्याप्तक जलचर, थलचर और नभचर तिर्यंचों की जघन्य अवगाहना एक वितस्ति प्रमाण होती है । मनुष्य और तिर्यंच की अवगाहना तीन कोस प्रमाण, नारकी की उत्कृष्ट अवगाहना पाँच सौ धनुष और देवों की पच्चीस धनुष होती है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.72-82 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> जीवों की शारीरिक अवगाहना का प्रमाण । सूक्ष्मनिगोदिया लब्धपर्याप्तक जीव का शरीर अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण होता है । एकेंद्रिय से पंचेंद्रिय जीव इससे छोटे नहीं होते । एकेंद्रिय-जीव कमल के देह का उत्कृष्ट प्रमाण एक हजार योजन तथा एक कोस होता है । द्वींद्रिय जीवों में सबसे बड़ी अवगाहना शंख की बारहवें योजन प्रमाण, त्रींद्रिय जीवों में कानखजूरा की तीन कोस प्रमाण, चतुरिंद्रिय जीवों में भ्रमर की एक योजन (चार कोस) प्रमाण तथा पंचेंद्रिय जीवों में सबसे बड़ी स्वयंभू-रमण-समुद्र के राघव-मच्छ की एक हजार योजन प्रमाण होती है । पंचेंद्रियों में सूक्ष्म अवगाहना सिवर्धक मच्छ की है । सम्मूर्च्छन जन्म से उत्पन्न अपर्याप्तक जलचर, थलचर और नभचर तिर्यंचों की जघन्य अवगाहना एक वितस्ति प्रमाण होती है । मनुष्य और तिर्यंच की अवगाहना तीन कोस प्रमाण, नारकी की उत्कृष्ट अवगाहना पाँच सौ धनुष और देवों की पच्चीस धनुष होती है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.72-82 </span></p> | ||
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Revision as of 16:54, 14 November 2020
जीवों की शारीरिक अवगाहना का प्रमाण । सूक्ष्मनिगोदिया लब्धपर्याप्तक जीव का शरीर अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण होता है । एकेंद्रिय से पंचेंद्रिय जीव इससे छोटे नहीं होते । एकेंद्रिय-जीव कमल के देह का उत्कृष्ट प्रमाण एक हजार योजन तथा एक कोस होता है । द्वींद्रिय जीवों में सबसे बड़ी अवगाहना शंख की बारहवें योजन प्रमाण, त्रींद्रिय जीवों में कानखजूरा की तीन कोस प्रमाण, चतुरिंद्रिय जीवों में भ्रमर की एक योजन (चार कोस) प्रमाण तथा पंचेंद्रिय जीवों में सबसे बड़ी स्वयंभू-रमण-समुद्र के राघव-मच्छ की एक हजार योजन प्रमाण होती है । पंचेंद्रियों में सूक्ष्म अवगाहना सिवर्धक मच्छ की है । सम्मूर्च्छन जन्म से उत्पन्न अपर्याप्तक जलचर, थलचर और नभचर तिर्यंचों की जघन्य अवगाहना एक वितस्ति प्रमाण होती है । मनुष्य और तिर्यंच की अवगाहना तीन कोस प्रमाण, नारकी की उत्कृष्ट अवगाहना पाँच सौ धनुष और देवों की पच्चीस धनुष होती है । हरिवंशपुराण 18.72-82